जब राज्य का राजा न्यायप्रिय होता है तो उसके राज्य में अनीति व अन्याय सिर नहीं उठा पाते । प्रजा भी न्याय की राह पर, नीति के पथ पर बढ़ने के लिए प्रेरित होती है और राज्य में चारों ओर सुख , शांति एवं सम्रद्धि का वातावरण विनिर्मित होता है तथा प्रजा, राज्य एवं राजा सभी के विकास के कई आयाम खुलते चले जाते हैं ।
आसुरी बल की तुलना में सत्कर्मों का, भगवता का बल ज्यादा है । जब यह बल-सामर्थ्य दूसरों की रक्षा में, समाज में पीड़ितों, आपदा से त्रसित लोगों को राहत देने में नियोजित होती है तो ऐसे व्यक्ति की सामर्थ्य बढ़ती है, उसका बल जो बढ़ता है उससे वह शक्तिवान हो अपनी व औरों की रक्षा करता है । ऐसे कामनाओं से रहित, निष्काम बल को श्रीमदभगवद्गीता में भगवान की विभूति कहा गया है ।
आसुरी बल की तुलना में सत्कर्मों का, भगवता का बल ज्यादा है । जब यह बल-सामर्थ्य दूसरों की रक्षा में, समाज में पीड़ितों, आपदा से त्रसित लोगों को राहत देने में नियोजित होती है तो ऐसे व्यक्ति की सामर्थ्य बढ़ती है, उसका बल जो बढ़ता है उससे वह शक्तिवान हो अपनी व औरों की रक्षा करता है । ऐसे कामनाओं से रहित, निष्काम बल को श्रीमदभगवद्गीता में भगवान की विभूति कहा गया है ।
No comments:
Post a Comment