' जीवित शहीद गैरिसन आत्मविश्वास की सजीव मूर्ति थे । उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि दूसरों से सहायता की अपेक्षा न करके भी , यदि व्यक्ति अपनी शक्ति को पहचान ले तो किसी व्यक्ति से , किसी समस्या से ही नहीं , एक सशक्त समाज से भी टक्कर ले सकता है इस सिद्धांत को उन्होंने व्याख्यानों और लेखों से ही नहीं अपने जीवन को एक प्रत्यक्ष उदाहरण बनाकर स्पष्ट कर दिखाया । '
उन दिनों अमेरिका में गुलामों को खरीदने -बेचने का व्यापार खूब फल -फूल रहा था , गुलामों के साथ बहुत निर्दयतापूर्ण व्यवहार होता था , इस अन्याय के कई दृश्य गैरीसन ने अपनी आँखों से देखे थे उन्हें इस प्रथा के विरुद्ध इतनी तीव्र घृणा हुई कि उन्होंने अपना जीवन इसी के विरुद्ध संघर्ष करने में लगा देने की ठानी ।
गैरीसन को जीवित शहीद कहा जा सकता है । फांसी या गोली से थोड़ी देर कष्ट सहकर प्राण विसर्जन कर देना सरल है , पर तिल -तिल करके सारे जीवन को किसी आदर्श के लिए उत्सर्ग करना और उसके लिए निरंतर अभावों , कष्टों और आपत्तियों को सहन करते रहना कठिन हैं । इस कठिन कार्य को उस महापुरुष ने हँसते -हँसते संपन्न कर दिया ।
विलियम गैरिसन के पिता मल्लाह थे जो समुद्र यात्रा में तूफान में डूब गये , माँ दाई का काम करती थीं । दस वर्ष के भी नहीं थे कि पेट भरने के लिये मोची व बढ़ई के यहां कार्य किया । थोड़े बड़े हुए तो एक छापेखाने में अक्षर जोड़ने का काम सीखा । जो किताबें छपने आतीं उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़ते और जो छपाने आते उनसे मेलजोल बढ़ाकर पुस्तकें मांग कर पढ़ते । सोलह वर्ष की आयु तक पहुँचते -पहुँचते उनने इतना ज्ञान बढ़ा लिया कि अखबारों में छपने लायक लेख लिख सकें । वे कल्पित नाम 'बूढ़ा ब्रह्मचारी ' नाम से लेख लिखने लगे । 1831 में उन्होंने ' मुक्तिदाता ' नामक एक अखबार निकाला उसमे दास प्रथा के विरोध में इतने कठोर शब्द इस्तेमाल किये गये कि तहलका मच गया । उनके नाम वारन्ट निकाला , उन्हें पकड़ने के लिए इनाम की घोषणा की गई । पकडे जाने पर उनपर बहुत अत्याचार किये गये ---------
वस्तुत: चौबीस घंटे वह इस एक ही कार्य में लगे रहते थे कि दासता का अंत कैसे किया जाये , उनका दिमाग इसी विचार में डूबा रहता , योजनाएं बनाता और शरीर उन योजनाओं को पूर्ण करने में लगा रहता । 1 जनवरी 1863 को अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दास प्रथा समाप्त करने की घोषणा की । चालीस लाख गुलामों को आजादी से साँस लेने का अवसर मिला । जब यह घोषणा -उत्सव मनाया जा रहा था तो विलियम गैरिसन भी उसमे आये । जनता ने जब उस महामानव को देखा तो हर्ष से उन्मत हो गई और अपने मुक्तिदाता को कंधे पर उठा लिया , उनका हार्दिक अभिनन्दन किया ।
व्यक्ति के भीतर छिपी चेतना इतनी सशक्त है कि यदि व्यक्ति उसका ठीक प्रकार से उपयोग करे तो वह प्रत्येक दिशा में आगे बढ़ सकता है , उस दिशा में भी जिसमे पग -पग पर शत्रुता , विरोध , कष्ट , अभाव और यहां तक कि प्राणो के जाने का भी संकट भी मौजूद है । गैरिसन की जीवन साधना इस बात का सशक्त प्रमाण है ।
उन दिनों अमेरिका में गुलामों को खरीदने -बेचने का व्यापार खूब फल -फूल रहा था , गुलामों के साथ बहुत निर्दयतापूर्ण व्यवहार होता था , इस अन्याय के कई दृश्य गैरीसन ने अपनी आँखों से देखे थे उन्हें इस प्रथा के विरुद्ध इतनी तीव्र घृणा हुई कि उन्होंने अपना जीवन इसी के विरुद्ध संघर्ष करने में लगा देने की ठानी ।
गैरीसन को जीवित शहीद कहा जा सकता है । फांसी या गोली से थोड़ी देर कष्ट सहकर प्राण विसर्जन कर देना सरल है , पर तिल -तिल करके सारे जीवन को किसी आदर्श के लिए उत्सर्ग करना और उसके लिए निरंतर अभावों , कष्टों और आपत्तियों को सहन करते रहना कठिन हैं । इस कठिन कार्य को उस महापुरुष ने हँसते -हँसते संपन्न कर दिया ।
विलियम गैरिसन के पिता मल्लाह थे जो समुद्र यात्रा में तूफान में डूब गये , माँ दाई का काम करती थीं । दस वर्ष के भी नहीं थे कि पेट भरने के लिये मोची व बढ़ई के यहां कार्य किया । थोड़े बड़े हुए तो एक छापेखाने में अक्षर जोड़ने का काम सीखा । जो किताबें छपने आतीं उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़ते और जो छपाने आते उनसे मेलजोल बढ़ाकर पुस्तकें मांग कर पढ़ते । सोलह वर्ष की आयु तक पहुँचते -पहुँचते उनने इतना ज्ञान बढ़ा लिया कि अखबारों में छपने लायक लेख लिख सकें । वे कल्पित नाम 'बूढ़ा ब्रह्मचारी ' नाम से लेख लिखने लगे । 1831 में उन्होंने ' मुक्तिदाता ' नामक एक अखबार निकाला उसमे दास प्रथा के विरोध में इतने कठोर शब्द इस्तेमाल किये गये कि तहलका मच गया । उनके नाम वारन्ट निकाला , उन्हें पकड़ने के लिए इनाम की घोषणा की गई । पकडे जाने पर उनपर बहुत अत्याचार किये गये ---------
वस्तुत: चौबीस घंटे वह इस एक ही कार्य में लगे रहते थे कि दासता का अंत कैसे किया जाये , उनका दिमाग इसी विचार में डूबा रहता , योजनाएं बनाता और शरीर उन योजनाओं को पूर्ण करने में लगा रहता । 1 जनवरी 1863 को अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दास प्रथा समाप्त करने की घोषणा की । चालीस लाख गुलामों को आजादी से साँस लेने का अवसर मिला । जब यह घोषणा -उत्सव मनाया जा रहा था तो विलियम गैरिसन भी उसमे आये । जनता ने जब उस महामानव को देखा तो हर्ष से उन्मत हो गई और अपने मुक्तिदाता को कंधे पर उठा लिया , उनका हार्दिक अभिनन्दन किया ।
व्यक्ति के भीतर छिपी चेतना इतनी सशक्त है कि यदि व्यक्ति उसका ठीक प्रकार से उपयोग करे तो वह प्रत्येक दिशा में आगे बढ़ सकता है , उस दिशा में भी जिसमे पग -पग पर शत्रुता , विरोध , कष्ट , अभाव और यहां तक कि प्राणो के जाने का भी संकट भी मौजूद है । गैरिसन की जीवन साधना इस बात का सशक्त प्रमाण है ।
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