विश्व की तीसरी सबसे ऊँची इमारत ' एफिल टावर ' के महान शिल्पी थे--- गस्ताव एफिल , जिन्होंने भवन निर्माण कला को नवीन आधार एवं नवीन दिशा दी । वे वर्तमान इस्पात स्थापत्य के जनक कहे जाते हैं । वे कहा करते थे---- " सपने देखना मुझे अपने पिता से विरासत में मिला है तथा उन्हें अपनी कर्म -निष्ठा से मूर्त रूप देने का पुरुषार्थ अपनी माता से मिला है । "
इंजीनियरिंग में स्नातक कर उन्होंने रेलवे की एक निर्माण संस्था में नौकरी कर ली ।
उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में योरोप में रेलों का जाल बड़ी तीव्र गति से बिछ रहा था । चिनाई के द्वारा पुल बनाने में समय व श्रम बहुत अधिक लगता था । एफिल ने पत्थर व सीमेंट , चूना आदि की चिनाई के स्थान पर इस्पात के ढांचों से पुल बनाने का निश्चय किया । इसके लिए उन्होंने लोहे की मजबूती तथा उसकी भार वहन क्षमता का गहन अध्ययन किया ।
उनकी कंपनी को गरोने नदी पर 1 6 0 0 फुट लम्बा पुल बनाने का ठेका मिला । एफिल ने अपनी योजना के अनुसार लोह -निर्मित आधार तथा धरन स्थिर किये । पुल का काम परंपरागत शैली से बनने वाले पुलों की अपेक्षा आधी लागत और आधे समय में ही पूरा हो गया । इस सफलता ने मानवीय प्रगति के इतिहास में एक नया पृष्ठ जोड़ दिया ।
इसके बाद एक महान शिल्पी बार्थोल्डी उनके पास आया , उसकी समस्या थी 1 5 0 फुट ऊँची ताम्बे की स्वतंत्रता की मूर्ति जिसे वह फ़्रांस व अमेरिका की मैत्री के प्रतीक के रूप में न्यूयार्क की खाड़ी में स्थापित करना चाहता था , किन्तु यह प्रतिमा किस आधार पर टिकाई जाये जो खाड़ी के तट पर उठने वाले अंधड़ों को सह सके , ऐफिल ने उसकी समस्या का समाधान कर दिया | उनकी वर्कशॉप से लोहे के धरना का जो आधार दिया गया वह सफल रहा ।
उनका मारिया पिया पुल, पुल निर्माण में दूसरी बड़ी क्रांति था जिसे उन्होंने पुर्तगाल के लिए डोडरी नदी के पुल पर बनाया था । वे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के अभियंता माने गये । रूस, मिश्र, पेरू आदि कई देशों की ऐसी समस्याओं को उन्होंने सुलझाया ।
फ्रांस में विश्व मेले के प्रतीक चिन्ह के रूप में उन्होंने पेरिस में 984 फुट ऊँची मीनार बनाने का निश्चय किया । कई लेखकों व पत्रकारों ने इसका निर्माण रोकने के लिए आंदोलन किया, उन्हें भय था कि कहीं तूफान से यह गिर पड़े तो क्या होगा ? दो वर्ष में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ, इस पर फ्रांस का झंडा फहराते हुए उन्होंने कहा--- फ्रांस का झंडा 984 फुट ऊँचे स्तम्भ पर फहरा रहा है, यह गौरव आज तक किसी राष्ट्र ध्वज को प्राप्त नहीं हुआ ।" मीनार बनने के आठ महीनो में ही इस पर लगाये टिकट से उनका सब कर्ज चुक गया । प्रतिवर्ष लाखों यात्री मीनार पर चढ़ते हैं किन्तु उसकी एक भी कील अथवा धरण क्षतिग्रस्त नहीं हुआ । एफिल के बुद्धिमान व कर्म-कौशल का यह अनुपम उदाहरण मनुष्य को सदा प्रेरणा देता रहेगा । वे अपने इस कौशल को ईश्वरीय देन मानते थे, धन ओर प्रतिष्ठा उनके स्वभाव में कुछ भी अंतर नहीं ला सकी
इंजीनियरिंग में स्नातक कर उन्होंने रेलवे की एक निर्माण संस्था में नौकरी कर ली ।
उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में योरोप में रेलों का जाल बड़ी तीव्र गति से बिछ रहा था । चिनाई के द्वारा पुल बनाने में समय व श्रम बहुत अधिक लगता था । एफिल ने पत्थर व सीमेंट , चूना आदि की चिनाई के स्थान पर इस्पात के ढांचों से पुल बनाने का निश्चय किया । इसके लिए उन्होंने लोहे की मजबूती तथा उसकी भार वहन क्षमता का गहन अध्ययन किया ।
उनकी कंपनी को गरोने नदी पर 1 6 0 0 फुट लम्बा पुल बनाने का ठेका मिला । एफिल ने अपनी योजना के अनुसार लोह -निर्मित आधार तथा धरन स्थिर किये । पुल का काम परंपरागत शैली से बनने वाले पुलों की अपेक्षा आधी लागत और आधे समय में ही पूरा हो गया । इस सफलता ने मानवीय प्रगति के इतिहास में एक नया पृष्ठ जोड़ दिया ।
इसके बाद एक महान शिल्पी बार्थोल्डी उनके पास आया , उसकी समस्या थी 1 5 0 फुट ऊँची ताम्बे की स्वतंत्रता की मूर्ति जिसे वह फ़्रांस व अमेरिका की मैत्री के प्रतीक के रूप में न्यूयार्क की खाड़ी में स्थापित करना चाहता था , किन्तु यह प्रतिमा किस आधार पर टिकाई जाये जो खाड़ी के तट पर उठने वाले अंधड़ों को सह सके , ऐफिल ने उसकी समस्या का समाधान कर दिया | उनकी वर्कशॉप से लोहे के धरना का जो आधार दिया गया वह सफल रहा ।
उनका मारिया पिया पुल, पुल निर्माण में दूसरी बड़ी क्रांति था जिसे उन्होंने पुर्तगाल के लिए डोडरी नदी के पुल पर बनाया था । वे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के अभियंता माने गये । रूस, मिश्र, पेरू आदि कई देशों की ऐसी समस्याओं को उन्होंने सुलझाया ।
फ्रांस में विश्व मेले के प्रतीक चिन्ह के रूप में उन्होंने पेरिस में 984 फुट ऊँची मीनार बनाने का निश्चय किया । कई लेखकों व पत्रकारों ने इसका निर्माण रोकने के लिए आंदोलन किया, उन्हें भय था कि कहीं तूफान से यह गिर पड़े तो क्या होगा ? दो वर्ष में इसका निर्माण कार्य पूर्ण हुआ, इस पर फ्रांस का झंडा फहराते हुए उन्होंने कहा--- फ्रांस का झंडा 984 फुट ऊँचे स्तम्भ पर फहरा रहा है, यह गौरव आज तक किसी राष्ट्र ध्वज को प्राप्त नहीं हुआ ।" मीनार बनने के आठ महीनो में ही इस पर लगाये टिकट से उनका सब कर्ज चुक गया । प्रतिवर्ष लाखों यात्री मीनार पर चढ़ते हैं किन्तु उसकी एक भी कील अथवा धरण क्षतिग्रस्त नहीं हुआ । एफिल के बुद्धिमान व कर्म-कौशल का यह अनुपम उदाहरण मनुष्य को सदा प्रेरणा देता रहेगा । वे अपने इस कौशल को ईश्वरीय देन मानते थे, धन ओर प्रतिष्ठा उनके स्वभाव में कुछ भी अंतर नहीं ला सकी
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