' साहित्य की शक्ति किसी भी शस्त्र-अस्त्र से कम नहीं होती वरन परमाणु बमों से भी अधिक शक्तिशाली होती है । '
तमिलनाडु प्रदेश के राष्ट्रभक्त-कवि और चित्रकार श्री नामक्कल रामलिंगम पिल्लै पहले गर्म दल के समर्थक थे, फिर गांधीजी के विचारों से प्रभावित होकर पूरे गाँधीवादी हो गये ।
उनके रचे हुए गीतों ने दक्षिण भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन को प्रखर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया । सत्याग्रही बंधुओं के लिए तो उनके गीत एक प्रकार से युद्ध प्रयाण-गीत ही थे । नमक-सत्याग्रह के समय राजाजी के नेतृत्व में नमक-कानून तोड़ने के लिए वेदारंयम जाने वाला जत्था उन्ही के तमिल गीत को गाता हुआ जोश से भर उठा था जिसकी कुछ पंक्तियों का भावार्थ है----
' बिना खड्ग के बिना रक्त के नया युद्ध यह आया है
अमर सत्य से जिन्हें प्यार है, वे सब इसमें साथ दें ।
यौवन में कान की भयंकर पीड़ा से उनकी श्रवण शक्ति चली गई थी । पहले तो वे खिन्न हुए किन्तु फिर उसे विधि का विधान मानकर सहज रूप से स्वीकार करने लगे । प्रारम्भ में उन्होंने चित्रकला को अपना व्यवसाय बनाया फिर महात्मा गाँधी, महर्षि अरविन्द के विचारों से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े । अपनी जोश भरी कविताओं के माध्यम से जन-जागरण करने लगे ।
उन्होंने कविता के रूप में वीणा-वादिनी-सरस्वती की आराधना की थी, उनकी कविता में वह शक्ति थी जो जनमानस को मनचाही दिशा में मोड़ सकती थी । उसका सदुपयोग उन्होंने राष्ट्रीय चेतना जगाने में किया । उनके रचे हुए गीत उन दिनों तमिल प्रदेश के बच्चे-बच्चे की जबान पर थे, आज भी वे उतने ही लोकप्रिय हैं । उनके सम्पूर्ण काव्य में सनातन भारतीय-संस्कृति के प्रति दृढ निष्ठा झलकती है । उनका यह विश्वास था कि काव्य प्रतिभा मनुष्य को मिली हुई एक दैवी-विभूति है । उसे पाकर अहंकार में भर उठना या उसके महत्व को नकारते हुए दुरूपयोग करने लगना बहुत बड़ी भूल है क्योंकि यह उसकी अपनी प्रतिभा नहीं होती वरन ईश्वर से किसी विशेष प्रयोजन के लिए उसे मिली होती है ।
तमिलनाडु प्रदेश के राष्ट्रभक्त-कवि और चित्रकार श्री नामक्कल रामलिंगम पिल्लै पहले गर्म दल के समर्थक थे, फिर गांधीजी के विचारों से प्रभावित होकर पूरे गाँधीवादी हो गये ।
उनके रचे हुए गीतों ने दक्षिण भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन को प्रखर बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया । सत्याग्रही बंधुओं के लिए तो उनके गीत एक प्रकार से युद्ध प्रयाण-गीत ही थे । नमक-सत्याग्रह के समय राजाजी के नेतृत्व में नमक-कानून तोड़ने के लिए वेदारंयम जाने वाला जत्था उन्ही के तमिल गीत को गाता हुआ जोश से भर उठा था जिसकी कुछ पंक्तियों का भावार्थ है----
' बिना खड्ग के बिना रक्त के नया युद्ध यह आया है
अमर सत्य से जिन्हें प्यार है, वे सब इसमें साथ दें ।
यौवन में कान की भयंकर पीड़ा से उनकी श्रवण शक्ति चली गई थी । पहले तो वे खिन्न हुए किन्तु फिर उसे विधि का विधान मानकर सहज रूप से स्वीकार करने लगे । प्रारम्भ में उन्होंने चित्रकला को अपना व्यवसाय बनाया फिर महात्मा गाँधी, महर्षि अरविन्द के विचारों से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े । अपनी जोश भरी कविताओं के माध्यम से जन-जागरण करने लगे ।
उन्होंने कविता के रूप में वीणा-वादिनी-सरस्वती की आराधना की थी, उनकी कविता में वह शक्ति थी जो जनमानस को मनचाही दिशा में मोड़ सकती थी । उसका सदुपयोग उन्होंने राष्ट्रीय चेतना जगाने में किया । उनके रचे हुए गीत उन दिनों तमिल प्रदेश के बच्चे-बच्चे की जबान पर थे, आज भी वे उतने ही लोकप्रिय हैं । उनके सम्पूर्ण काव्य में सनातन भारतीय-संस्कृति के प्रति दृढ निष्ठा झलकती है । उनका यह विश्वास था कि काव्य प्रतिभा मनुष्य को मिली हुई एक दैवी-विभूति है । उसे पाकर अहंकार में भर उठना या उसके महत्व को नकारते हुए दुरूपयोग करने लगना बहुत बड़ी भूल है क्योंकि यह उसकी अपनी प्रतिभा नहीं होती वरन ईश्वर से किसी विशेष प्रयोजन के लिए उसे मिली होती है ।
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