' लोगों को हँसा-हँसाकर लोटपोट कर देने वाले साहित्य के सृजेता और वैसे ही भाषणकर्ता मार्क ट्वेन
में सहने और मुस्कराने की गजब की क्षमता थी । जीवन में बहुत नुकसान होने , धक्के लगने , कर्जदार हो जाने पर भी वे प्रसन्न रहे । उन्हें किसी ने कभी उदास नहीं देखा , यह मनुष्य की जीवटता का एक अनुपम उदाहरण है । उनका जीवन हँसी और उल्लास का ऐसा निर्झर था जो मार्ग में आने वाले रोड़ों से हार मानकर अपनी सहज गति खोता नहीं था । उन्होंने हास्य -विनोद की प्राणदायिनी शक्ति से कितने ही सूखे अधरों पर हास और मुरझाये हृदयों पर उल्लास का रस संचार किया था । '
मार्क ट्वेन का बचपन घोर दरिद्रता में बीता । उन्होंने अपने पिता की कभी कोई बात नहीं मानी , ज्यादा कुछ कहते तो घर से भाग जाते , मिस्सी सिप्पी नदी में कूदकर प्राण विसर्जन करने की धमकी देते । एक दिन जब पिता चल बसे तो यह लड़का फूट -फूटकर रोने लगा । उसे अपने पिता के वे वचन जो कभी कुनैन की तरह कडुवे लगते थे , अब समझ में आ रहे थे , उनने रोते -रोते अपनी माँ को वचन दिया कि अब वह अपने पिता के उन सब आदेशों का पालन करेगा जो उसे वे दिया करते थे । यही लड़का आगे चलकर प्रसिद्ध साहित्यकार मार्क ट्वेन के नाम से विश्व -विख्यात हुआ ।
वे बारह वर्ष के थे तब तक तो स्कूल गये पर उसके बाद उन्होंने कभी स्कूल की ओर झाँका भी नहीं । उन्होंने अपने अध्यवसाय के बल पर अपनी साहित्यिक -प्रतिभा को इस प्रकार निखारा और इतने लोकप्रिय हुए कि कई विश्वविद्दालय ने उन्हें डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया ।
उन्होंने अपनी प्रतिभाओं और कमियों को भली प्रकार समझा था । प्रतिभाओं का विकास करने और कमियों को दूर करने में कभी सुस्ती नहीं बरती । अपने हास्य -विनोद के बल पर उन्होंने सहित्य और भाषण के क्षेत्र में आशातीत धन और यश कमाया किन्तु अपरिमित धन कमाने वाले मार्क ट्वेन को कभी धन का उपयोग करना नहीं आता था । उन्होंने करोड़ों रुपये कमाये पर फिर भी वर्षों तक कर्ज में डूबे रहे । अपनी इस कमी को मार्क ट्वेन ने जिस बहादुरी से स्वीकारा था वह निश्चय ही प्रशंसनीय व अनुकरणीय है । वह सफलतम लेखक थे किन्तु व्यवसाय के क्षेत्र में असफल रहे । उनके पास जिस सहजता से धन आता था , उसी सहजता से चला भी जाता था । साठ वर्ष की आयु तक पहुँचते -पहुँचते वे बुरी तरह कर्ज भार से दब गये थे । उनमे अद्भुत नैतिक निष्ठा और संकल्प शक्ति थी ----- जब वे कर्ज भार से दबे थे तब विश्व -व्यापी मंदी का दौर चल रहा था । उस समय कितने ही लोगों ने अपने आपको दिवालिया घोषित करके कर्ज से मुक्ति पायी थी , पर साठ वर्ष के जवान मार्क ट्वेन ऐसा करने के लिए तैयार नहीं थे । उनका स्वास्थ्य जर्जर होता जा रहा था फिर भी उन्होंने ऋण उतारने के लिए पांच वर्ष तक स्थान -स्थान पर भाषण दिए और जब ऋण उतर गया तभी उन्होंने दम लिया । उनका वैवाहिक जीवन प्रेमपूर्ण रहा । इस असाधारण व्यक्तित्व की ' द एड वंचर्स आव टाम सायर ' लाइफ ऑन मिसी सिप्पी ' जैसी सफल कृतियाँ उनका नाम साहित्य संसार में कीर्तिमान कर रही हैं ।
में सहने और मुस्कराने की गजब की क्षमता थी । जीवन में बहुत नुकसान होने , धक्के लगने , कर्जदार हो जाने पर भी वे प्रसन्न रहे । उन्हें किसी ने कभी उदास नहीं देखा , यह मनुष्य की जीवटता का एक अनुपम उदाहरण है । उनका जीवन हँसी और उल्लास का ऐसा निर्झर था जो मार्ग में आने वाले रोड़ों से हार मानकर अपनी सहज गति खोता नहीं था । उन्होंने हास्य -विनोद की प्राणदायिनी शक्ति से कितने ही सूखे अधरों पर हास और मुरझाये हृदयों पर उल्लास का रस संचार किया था । '
मार्क ट्वेन का बचपन घोर दरिद्रता में बीता । उन्होंने अपने पिता की कभी कोई बात नहीं मानी , ज्यादा कुछ कहते तो घर से भाग जाते , मिस्सी सिप्पी नदी में कूदकर प्राण विसर्जन करने की धमकी देते । एक दिन जब पिता चल बसे तो यह लड़का फूट -फूटकर रोने लगा । उसे अपने पिता के वे वचन जो कभी कुनैन की तरह कडुवे लगते थे , अब समझ में आ रहे थे , उनने रोते -रोते अपनी माँ को वचन दिया कि अब वह अपने पिता के उन सब आदेशों का पालन करेगा जो उसे वे दिया करते थे । यही लड़का आगे चलकर प्रसिद्ध साहित्यकार मार्क ट्वेन के नाम से विश्व -विख्यात हुआ ।
वे बारह वर्ष के थे तब तक तो स्कूल गये पर उसके बाद उन्होंने कभी स्कूल की ओर झाँका भी नहीं । उन्होंने अपने अध्यवसाय के बल पर अपनी साहित्यिक -प्रतिभा को इस प्रकार निखारा और इतने लोकप्रिय हुए कि कई विश्वविद्दालय ने उन्हें डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया ।
उन्होंने अपनी प्रतिभाओं और कमियों को भली प्रकार समझा था । प्रतिभाओं का विकास करने और कमियों को दूर करने में कभी सुस्ती नहीं बरती । अपने हास्य -विनोद के बल पर उन्होंने सहित्य और भाषण के क्षेत्र में आशातीत धन और यश कमाया किन्तु अपरिमित धन कमाने वाले मार्क ट्वेन को कभी धन का उपयोग करना नहीं आता था । उन्होंने करोड़ों रुपये कमाये पर फिर भी वर्षों तक कर्ज में डूबे रहे । अपनी इस कमी को मार्क ट्वेन ने जिस बहादुरी से स्वीकारा था वह निश्चय ही प्रशंसनीय व अनुकरणीय है । वह सफलतम लेखक थे किन्तु व्यवसाय के क्षेत्र में असफल रहे । उनके पास जिस सहजता से धन आता था , उसी सहजता से चला भी जाता था । साठ वर्ष की आयु तक पहुँचते -पहुँचते वे बुरी तरह कर्ज भार से दब गये थे । उनमे अद्भुत नैतिक निष्ठा और संकल्प शक्ति थी ----- जब वे कर्ज भार से दबे थे तब विश्व -व्यापी मंदी का दौर चल रहा था । उस समय कितने ही लोगों ने अपने आपको दिवालिया घोषित करके कर्ज से मुक्ति पायी थी , पर साठ वर्ष के जवान मार्क ट्वेन ऐसा करने के लिए तैयार नहीं थे । उनका स्वास्थ्य जर्जर होता जा रहा था फिर भी उन्होंने ऋण उतारने के लिए पांच वर्ष तक स्थान -स्थान पर भाषण दिए और जब ऋण उतर गया तभी उन्होंने दम लिया । उनका वैवाहिक जीवन प्रेमपूर्ण रहा । इस असाधारण व्यक्तित्व की ' द एड वंचर्स आव टाम सायर ' लाइफ ऑन मिसी सिप्पी ' जैसी सफल कृतियाँ उनका नाम साहित्य संसार में कीर्तिमान कर रही हैं ।
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