' वह विचार -प्रभु था और विचार की शक्ति किस प्रकार अन्य सारी शक्तियों और सत्ताओं को पराजित कर मानव ह्रदय पर अखण्ड आरूढ़ होती है, इसको अपने जीवन में ही सिद्ध करके वह यह अमर मन्त्र मानवता को दे गया कि------ " जहाँ सिपाहियों की फौजें नाकामयाब होंगी वहां सिद्धांतों की सेनाएं शत्रु के चक्रव्यूह को भेदती चली जायेंगी । जहाँ राजनीतिक कूट-चक्र विफल होंगे, वहां विचार के सूत्र काम करेंगे । दुनिया की कोई सत्ता विचार की अगाध गतिशीलता को रोक नही सकती । ' विचार समस्त भूमण्डल के क्षितिज की परिक्रमा करता हुआ अंतत: विजयी होगा । "
इंग्लैंड, अमेरिका तथा फ्रांस जैसे तीन-तीन देशों में जन-क्रांति के जन्म दाता टामस पेन का जन्म इंग्लैंड में हुआ था । सोलह वर्ष की उम्र में घर से भागकर जहाज पर नौकरी की, उसके बाद इंग्लैंड लौट आये, उन्हें टेलर के यहां काम मिल गया, फिर यह काम छोड़कर उन्होंने आबकारी विभाग में नौकरी कर ली । यहाँ कर्मचारियों के दुख-दर्द सरकार के कानों तक पहुँचाने के लिए पेन पार्लियामेंट में मजदूरों के प्रतिनिधि बनकर जाने लगे । इस नौकरी से उन्हें हाथ धोना पड़ा । अब वे बेरोजगार हो गये ।
यहाँ उनकी मुलाकात बैंजामिन फ्रैंकलिन से हुई, उन्होंने उन्हें अमेरिका जाकर एक नये जीवन की शुरुआत करने की सलाह दी । पेन अमेरिका पहुंचे, वहां काम की व्यवस्था हो गई । अब उन्होंने अपने अनुभव, द्रष्टिकोण और समाज तथा देश की राजनीतिक समस्याओं पर अपने विचारों को लिपिबद्ध करने लगे । पेन ने अपने अंतरंग की गहराइयों में पैठ कर लिखना आरम्भ किया फलस्वरूप उनका साहित्य शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया । अपनी पहली किताब ' कॉमनसेंस ' में उन्होंने स्वतंत्र अमेरिका राज की घोषणा की थी | जनता ने इस पुस्तक को बेहद पसंद किया । टामस पेन अपने समय के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले लेखक थे | वे अपनी आय का अधिकांश भाग गिरे हुए और अभावग्रस्त लोगों की सहायता में खर्च करते थे ।
टामस पेन ने अपनी सशक्त लेखनी और ओजस्वी शैली से लिखकर जन -मानस को स्वतंत्रता के लिए जागरूक किया । जार्ज वाशिंगटन उनके व्यक्तित्व और विचारों से बहुत प्रभावित हुए । पेन भी क्रांतिकारी सेना में भर्ती हो गये । अमरीकी फौजों के हृदय में आग और बाहुओं में फ़ौलाद भर देने के लिए उन्होंने ' क्रिसिस ' नामक पुस्तक लिखी थी । वाशिंगटन का साधारण से साधारण सिपाही तेज प्रदीप्त होकर त्याग और बलिदान की भाषा बोलने लगा । 1787 में टामस पेन फ्रांस आ गये , वहां की राज्य क्रांति और मानवीय अधिकारों के समर्थन में उन्होंने ' राइट ऑफ मैन ' एक पुस्तक लिखी और क्रांति विरोधी शक्तियों का मुँह बंद कर दिया । अमेरिका और फ्रांस की जनता को राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कराने में अमूल्य सहयोग देने के बाद टामस पेन का ध्यान मनुष्य के सामाजिक अधिकारों , धार्मिक स्वतंत्रता , न्याय और समानता की और आकृष्ट हुआ ।
उस समय उन्होंने ' एज ऑफ रीजन ' ग्रन्थ लिखा , यह ग्रन्थ वह महान दर्शन है , जो निखिल मानवीय मनीषा की मुक्ति का मंत्रदाता है , इसमें प्रकृत मानव -धर्म की प्रतिष्ठा की गई है । यही कारण है कि आज इतने वर्षों के बाद भी उसका तेज फीका नहीं पड़ा । पेन एकाग्रनिष्ठा और अटल निश्चय के धनी थे । किसी भी परिणाम की परवाह किये बिना हर पाप अपराध पर उन्होंने निर्भीकता से आक्रमण किया था । उनकी कृतियां साक्षी हैं कि मानव कल्याण का कोई आयोजन ऐसा नहीं है जिसका समर्थन और उद्घोषणा उनने न की हो । उनकी पुस्तकों का अनुवाद फ्रेंच , स्पेनिश आदि भाषाओँ में होकर पूरे यूरोप में फ़ैल गया , जिससे अनेक देशों में स्वतंत्रता की लहर फैलने लगी । अंत में सामान्य नागरिक के रूप में गहरी गरीबी में स्वर्गवासी हुए किन्तु श्री टामस पेन को आत्म -संतोष था कि अपने प्रयत्नो से इंग्लैंड , अमेरिका और फ्रांस की जनता को स्वतंत्र करा कर अपने मानव जीवन को सार्थक कर सके और विश्व को ऐसा सन्देश दे सके जो शीघ्र ही फलीभूत होकर विश्व -मानव को दासता से मुक्त कर देगा ।
इंग्लैंड, अमेरिका तथा फ्रांस जैसे तीन-तीन देशों में जन-क्रांति के जन्म दाता टामस पेन का जन्म इंग्लैंड में हुआ था । सोलह वर्ष की उम्र में घर से भागकर जहाज पर नौकरी की, उसके बाद इंग्लैंड लौट आये, उन्हें टेलर के यहां काम मिल गया, फिर यह काम छोड़कर उन्होंने आबकारी विभाग में नौकरी कर ली । यहाँ कर्मचारियों के दुख-दर्द सरकार के कानों तक पहुँचाने के लिए पेन पार्लियामेंट में मजदूरों के प्रतिनिधि बनकर जाने लगे । इस नौकरी से उन्हें हाथ धोना पड़ा । अब वे बेरोजगार हो गये ।
यहाँ उनकी मुलाकात बैंजामिन फ्रैंकलिन से हुई, उन्होंने उन्हें अमेरिका जाकर एक नये जीवन की शुरुआत करने की सलाह दी । पेन अमेरिका पहुंचे, वहां काम की व्यवस्था हो गई । अब उन्होंने अपने अनुभव, द्रष्टिकोण और समाज तथा देश की राजनीतिक समस्याओं पर अपने विचारों को लिपिबद्ध करने लगे । पेन ने अपने अंतरंग की गहराइयों में पैठ कर लिखना आरम्भ किया फलस्वरूप उनका साहित्य शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया । अपनी पहली किताब ' कॉमनसेंस ' में उन्होंने स्वतंत्र अमेरिका राज की घोषणा की थी | जनता ने इस पुस्तक को बेहद पसंद किया । टामस पेन अपने समय के सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले लेखक थे | वे अपनी आय का अधिकांश भाग गिरे हुए और अभावग्रस्त लोगों की सहायता में खर्च करते थे ।
टामस पेन ने अपनी सशक्त लेखनी और ओजस्वी शैली से लिखकर जन -मानस को स्वतंत्रता के लिए जागरूक किया । जार्ज वाशिंगटन उनके व्यक्तित्व और विचारों से बहुत प्रभावित हुए । पेन भी क्रांतिकारी सेना में भर्ती हो गये । अमरीकी फौजों के हृदय में आग और बाहुओं में फ़ौलाद भर देने के लिए उन्होंने ' क्रिसिस ' नामक पुस्तक लिखी थी । वाशिंगटन का साधारण से साधारण सिपाही तेज प्रदीप्त होकर त्याग और बलिदान की भाषा बोलने लगा । 1787 में टामस पेन फ्रांस आ गये , वहां की राज्य क्रांति और मानवीय अधिकारों के समर्थन में उन्होंने ' राइट ऑफ मैन ' एक पुस्तक लिखी और क्रांति विरोधी शक्तियों का मुँह बंद कर दिया । अमेरिका और फ्रांस की जनता को राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कराने में अमूल्य सहयोग देने के बाद टामस पेन का ध्यान मनुष्य के सामाजिक अधिकारों , धार्मिक स्वतंत्रता , न्याय और समानता की और आकृष्ट हुआ ।
उस समय उन्होंने ' एज ऑफ रीजन ' ग्रन्थ लिखा , यह ग्रन्थ वह महान दर्शन है , जो निखिल मानवीय मनीषा की मुक्ति का मंत्रदाता है , इसमें प्रकृत मानव -धर्म की प्रतिष्ठा की गई है । यही कारण है कि आज इतने वर्षों के बाद भी उसका तेज फीका नहीं पड़ा । पेन एकाग्रनिष्ठा और अटल निश्चय के धनी थे । किसी भी परिणाम की परवाह किये बिना हर पाप अपराध पर उन्होंने निर्भीकता से आक्रमण किया था । उनकी कृतियां साक्षी हैं कि मानव कल्याण का कोई आयोजन ऐसा नहीं है जिसका समर्थन और उद्घोषणा उनने न की हो । उनकी पुस्तकों का अनुवाद फ्रेंच , स्पेनिश आदि भाषाओँ में होकर पूरे यूरोप में फ़ैल गया , जिससे अनेक देशों में स्वतंत्रता की लहर फैलने लगी । अंत में सामान्य नागरिक के रूप में गहरी गरीबी में स्वर्गवासी हुए किन्तु श्री टामस पेन को आत्म -संतोष था कि अपने प्रयत्नो से इंग्लैंड , अमेरिका और फ्रांस की जनता को स्वतंत्र करा कर अपने मानव जीवन को सार्थक कर सके और विश्व को ऐसा सन्देश दे सके जो शीघ्र ही फलीभूत होकर विश्व -मानव को दासता से मुक्त कर देगा ।
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