अंग्रेज होकर भी हिन्दी भाषा के सुप्रसिद्ध विद्वान पियर्सन को आज भी साहित्यकार बड़े सम्मान के साथ स्मरण करते हैं । उन्होंने उत्कृष्ट भारतीय साहित्य का अंग्रेजी मे अनुवाद कर भारतीय तत्व -ज्ञान अंग्रेजी -भाषियों के लिये भी सुलभ कर दिया ।
सरकारी पदाधिकारी होते हुए भी उन्होंने इस क्षेत्र में बहुत कार्य किया । उनसे एक अंग्रेज मित्र ने पूछा --- आप इतना अधिक सरकारी काम -काज होते हुए भी इतना साहित्य सृजन कैसे कर लेते हैं ?
पियर्सन ने कहा --- " मित्र ! समय धन है । यदि लोग जिंदगी के एक -एक क्षण का सदुपयोग करें और उन्हें व्यर्थ के कामों में नष्ट ना होने दें तो कोई भी व्यक्ति उतनी सफलता प्राप्त कर सकता है जिसे देखकर लोगों को आश्चर्य हो सकता है । "
पियर्सन ने अपने जीवन क्रम को इतना नियमबद्ध और व्यवस्थित बनाया था कि घड़ी की सुइयों की तरह ठीक समय हर काम पूरा हो जाता था । 1920 में जब वे गया (, बिहार ) में कलेक्टर थे तो 104 डिग्री बुखार में भी तुलसीकृत रामायण के दोहों का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे थे । पियर्सन कहते थे--- संसार में अपने और औरों के लिए जिन्हे कुछ काम करना हो उन्हें अपने जीवन का कण -कण उपयोग में लाना चाहिये , नियमबद्ध जीवन बिताना चाहिए ।
सरकारी पदाधिकारी होते हुए भी उन्होंने इस क्षेत्र में बहुत कार्य किया । उनसे एक अंग्रेज मित्र ने पूछा --- आप इतना अधिक सरकारी काम -काज होते हुए भी इतना साहित्य सृजन कैसे कर लेते हैं ?
पियर्सन ने कहा --- " मित्र ! समय धन है । यदि लोग जिंदगी के एक -एक क्षण का सदुपयोग करें और उन्हें व्यर्थ के कामों में नष्ट ना होने दें तो कोई भी व्यक्ति उतनी सफलता प्राप्त कर सकता है जिसे देखकर लोगों को आश्चर्य हो सकता है । "
पियर्सन ने अपने जीवन क्रम को इतना नियमबद्ध और व्यवस्थित बनाया था कि घड़ी की सुइयों की तरह ठीक समय हर काम पूरा हो जाता था । 1920 में जब वे गया (, बिहार ) में कलेक्टर थे तो 104 डिग्री बुखार में भी तुलसीकृत रामायण के दोहों का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे थे । पियर्सन कहते थे--- संसार में अपने और औरों के लिए जिन्हे कुछ काम करना हो उन्हें अपने जीवन का कण -कण उपयोग में लाना चाहिये , नियमबद्ध जीवन बिताना चाहिए ।
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