' जब तक संसार में मानवता का अंश रहेगा ---- जीन हेनरी दूना का नाम अपने पुण्य कार्यों , संस्थाओं और संस्मरणों के रूप में भी अजर -अमर बना रहेगा । '
प्रथम शांति नोबेल पुरस्कार पाने वाले जीन हेनरी दूना स्विटजरलैंड के निवासी थे । शिक्षा समाप्त कर उन्होंने जेनेवा की एक बैंक के एजेंट की रूप में कार्य किया । इस कार्य से उन्हें संतोष नहीं हुआ तो नौकरी छोड़ दी और खेती व पशु पालन के लिये फ़्रांसिसी -अलजीरिया में एक जमीन खरीद ली । उस जमीन में सिंचाई के लिये सरकारी नलों से पानी मिल सके , इसके लिये उन्होंने बहुत प्रयास किया । फिर उन्होंने शासन व्यवस्था , कृषि विकास की आवश्यकता से संबंधित पुस्तक लिखकर फ़्रांस के तत्कालीन सम्राट नेपोलियन तृतीय से मिलने का विचार कर पेरिस पहुंचे । सम्राट उस समय आस्ट्रिया व इटली के बीच चल रहे लोमबाड़ी युद्ध में इटली की सहायता के लिये गये थे हेनरी दूना ने इटली जाने के लिये जो छोटा रास्ते चुना उससे वे उस गांव में पहुँच गये जहां से युद्ध का मैदान निकट था जिसमे फ़्रांस , इटली और आस्ट्रिया के सैनिक पंक्तिबद्ध होकर लड़ रहे थे । वे एक पहाड़ी पर चढ़ गये और दूरबीन से जो दर्दनाक दृश्य देखा उसने उनका जीवन ही बदल दिया । हेनरी दूना ने अपनी दूरबीन से देखा दोनों पक्षों के सैनिक आगे बढ़ते हैं और मरकर गिरते हैं , बंदूकों , गोलों और घायल सैनिकों के हाहाकार व चीत्कार से दिशाएं भर जाती हैं , चारों ओर मृत्यु का नृत्य हो रहा है । अंत में रात होने तक चालीस हजार निरपराध सैनिकों के प्राण लेकर लड़ाई ख़त्म हो गई ।
हेनरी दूना नीचे उतरे किन्तु नीचे आकर जो असहनीय दृश्य देखा उससे उनका हृदय पीड़ा व करुणा से भर गया । उन्होंने देखा कि मरे हुए सैनिकोँ को गीध , कौवों ,सियार तथा कुत्तों को खाने के लिये छोड़ दिया जाता था । घायल , अधमरे अपंग सैनिकों की दशा और भी ख़राब थी , उन्हें गाड़ियों में भूसे की तरह भरकर ऐसे अनेक स्थानो पर डाल दिया जाता था जहां उनके उपचार व सेवा की कोई व्यवस्था नहीं थी । हेनरी दूना मनुष्यता की यह दुर्दशा न देख सके , वे तुरंत ही घायलों , रोगियों और मरणासन्न सैनिकों की सेवा में लग गये , वे अपने हाथ से सैनिकों के घाव धोते , मरहम पट्टी करते और दवा देते , डॉक्टरों को प्रयत्नपूर्वक बुलाकर लाते व सैनिकों को दिखलाते । दूना के हृदय में करुणा व सेवा -भावना जाग गई , वे भूल गये कि इटली क्यों आये थे ?
युद्ध समाप्त हो गया लेकिन दूना को शान्ति ना मिली उन्होंने भाषणों और लेखों से लोगों में युद्ध के प्रति घृणा और घायल सैनिकों की प्रति करुणा का जागरण किया । इसका परिणाम हुआ कि सैकड़ों , लाखों की संख्या मे स्त्री -पुरुष सेवा करने के लिये निकल आये । उन्होंने अपने विचारोँ को आंदोलन का रूप दिया और ' रेडक्रास ' नाम की एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था बनाई जो युद्धकाल में भी तटस्थ समझी जाती है , उसमे दोनों शत्रु देशों के स्वयं सेवक दोनों ओर के घायलों तथा बीमारों की सेवा करते , युद्ध -क्षेत्र में भी उनपर आक्रमण नहीं किया जाता ।
आज भी संसार में विश्व रेडक्रास दिवस --- हेनरी दूना के जन्म दिवस 8 MAY को मनाया जाता है ।
जूरिख में उनका स्फटिक का स्मारक मानवता के उस पुजारी को जीवित रखे हुए है ।
प्रथम शांति नोबेल पुरस्कार पाने वाले जीन हेनरी दूना स्विटजरलैंड के निवासी थे । शिक्षा समाप्त कर उन्होंने जेनेवा की एक बैंक के एजेंट की रूप में कार्य किया । इस कार्य से उन्हें संतोष नहीं हुआ तो नौकरी छोड़ दी और खेती व पशु पालन के लिये फ़्रांसिसी -अलजीरिया में एक जमीन खरीद ली । उस जमीन में सिंचाई के लिये सरकारी नलों से पानी मिल सके , इसके लिये उन्होंने बहुत प्रयास किया । फिर उन्होंने शासन व्यवस्था , कृषि विकास की आवश्यकता से संबंधित पुस्तक लिखकर फ़्रांस के तत्कालीन सम्राट नेपोलियन तृतीय से मिलने का विचार कर पेरिस पहुंचे । सम्राट उस समय आस्ट्रिया व इटली के बीच चल रहे लोमबाड़ी युद्ध में इटली की सहायता के लिये गये थे हेनरी दूना ने इटली जाने के लिये जो छोटा रास्ते चुना उससे वे उस गांव में पहुँच गये जहां से युद्ध का मैदान निकट था जिसमे फ़्रांस , इटली और आस्ट्रिया के सैनिक पंक्तिबद्ध होकर लड़ रहे थे । वे एक पहाड़ी पर चढ़ गये और दूरबीन से जो दर्दनाक दृश्य देखा उसने उनका जीवन ही बदल दिया । हेनरी दूना ने अपनी दूरबीन से देखा दोनों पक्षों के सैनिक आगे बढ़ते हैं और मरकर गिरते हैं , बंदूकों , गोलों और घायल सैनिकों के हाहाकार व चीत्कार से दिशाएं भर जाती हैं , चारों ओर मृत्यु का नृत्य हो रहा है । अंत में रात होने तक चालीस हजार निरपराध सैनिकों के प्राण लेकर लड़ाई ख़त्म हो गई ।
हेनरी दूना नीचे उतरे किन्तु नीचे आकर जो असहनीय दृश्य देखा उससे उनका हृदय पीड़ा व करुणा से भर गया । उन्होंने देखा कि मरे हुए सैनिकोँ को गीध , कौवों ,सियार तथा कुत्तों को खाने के लिये छोड़ दिया जाता था । घायल , अधमरे अपंग सैनिकों की दशा और भी ख़राब थी , उन्हें गाड़ियों में भूसे की तरह भरकर ऐसे अनेक स्थानो पर डाल दिया जाता था जहां उनके उपचार व सेवा की कोई व्यवस्था नहीं थी । हेनरी दूना मनुष्यता की यह दुर्दशा न देख सके , वे तुरंत ही घायलों , रोगियों और मरणासन्न सैनिकों की सेवा में लग गये , वे अपने हाथ से सैनिकों के घाव धोते , मरहम पट्टी करते और दवा देते , डॉक्टरों को प्रयत्नपूर्वक बुलाकर लाते व सैनिकों को दिखलाते । दूना के हृदय में करुणा व सेवा -भावना जाग गई , वे भूल गये कि इटली क्यों आये थे ?
युद्ध समाप्त हो गया लेकिन दूना को शान्ति ना मिली उन्होंने भाषणों और लेखों से लोगों में युद्ध के प्रति घृणा और घायल सैनिकों की प्रति करुणा का जागरण किया । इसका परिणाम हुआ कि सैकड़ों , लाखों की संख्या मे स्त्री -पुरुष सेवा करने के लिये निकल आये । उन्होंने अपने विचारोँ को आंदोलन का रूप दिया और ' रेडक्रास ' नाम की एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था बनाई जो युद्धकाल में भी तटस्थ समझी जाती है , उसमे दोनों शत्रु देशों के स्वयं सेवक दोनों ओर के घायलों तथा बीमारों की सेवा करते , युद्ध -क्षेत्र में भी उनपर आक्रमण नहीं किया जाता ।
आज भी संसार में विश्व रेडक्रास दिवस --- हेनरी दूना के जन्म दिवस 8 MAY को मनाया जाता है ।
जूरिख में उनका स्फटिक का स्मारक मानवता के उस पुजारी को जीवित रखे हुए है ।
No comments:
Post a Comment