यूरोप मे जन्म लेकर भी भारत मे उत्पन्न होने वालों से अधिक भारतीय लगते थे ।
डॉ. कामिल बुल्के फ्लैमिश भाषी बेल्जियन थे । उन्होने इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया , उन्ही दिनों उन्हें कहीं से ' रामचरितमानस ' के एक दोहे का अंग्रेजी अनुवाद और तुलसीदासजी का चित्र देखने -पढने को मिला । दोहे का अनुवाद पढ़ और गोस्वामी जी का चित्र देख वे हैरत में पढ़ गये , उन्हें यह विश्वास नहीं हो रहा था कि सन्यासी दीखने वाले व्यक्ति ऐसी उत्कृष्ट रचना कर सकते हैँ । वे भारत की आध्यात्मिक संपदा की ओर आकर्षित हुए ।
भारत आने पर उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्दालय से संस्कृत B . A . किया । संस्कृत पढ़ते हुए वे वाल्मीकि - रामायण से बहुत प्रभावित हुए | संस्कृत पढने के बाद हिंदी पढ़ने के लिये उन्होंने प्रयाग विश्वविद्दालय में प्रवेश लिया । यहां हिन्दी में एम. ए. करने की बाद उन्होंने ' राम कथा की उत्पत्ति ओर विकास ' विषय पर शोध प्रबंध किया । उनका यह शोध प्रबंध हिन्दी शोध जगत में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है । गोस्वामी तुलसीदासजी डॉ. कामिल बुल्के के आदर्श पुरुष थे ,वे कहते थे --- तुलसीदासजी विश्व के महान कवियोँ में से हैं , उनकी रचनाओं में ज्ञान का अक्षय भंडार छिपा पड़ा है । भरत के चरित्र से उन्हें विशेष लगाव था । भरत से उन्होंने यही सीखा कि ---- "साधना का अर्थ पलायन नहीं अपितु सेवा के प्रति समर्पण है। '
रांची के सेंट जेवियर कॉलेज में वे संस्कृत और हिन्दी के विभाग अध्यक्ष रहे । उनका सारा जीवन ज्ञान और कर्म की साधना में लगा रहा । डॉ. क़ामिल बुल्के का व्यक्तित्व योगी सन्यासी की तरह था । एक ज्ञानी व्यक्ति का गांभीर्य , संत की तरह सरलता और ऋषि की तरह उदात्त गरिमा का संगम उनके व्यक्तित्व में था । हिन्दी भाषा के बारे में उनका विचार था--- " दुनिया भर में शायद ही कोई ऐसी विकसित साहित्यिक भाषा हो , जो हिन्दी की सरलता की बराबरी कर सके । "
भारत और हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले फादर कामिल बुल्के ने अपने जीवन की अंतिम साँसे भारतभूमि में ही 1982 में लीं । उनके इसी भारतप्रेम के कारण उन्हें पद्मभूषण के सम्मान से सम्मानित किया गया । उनके बारे में हरिवंशराय बच्चन ने लिखा है-----
" फादर बुल्के तुम्हे प्रणाम !
जन्मे और पले योरूप में, पर तुमको प्रिय भारत धाम
फादर बुल्के तुम्हे प्रणाम !
रही मातृभाषा योरुप की , बोली हिन्दी लगी ललाम
फादर बुल्के तुम्हे प्रणाम !
ईसाई संस्कार लिए भी , पूज्य हुए तुमको श्रीराम
फादर बुल्के तुम्हे प्रणाम ! "
डॉ. कामिल बुल्के फ्लैमिश भाषी बेल्जियन थे । उन्होने इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया , उन्ही दिनों उन्हें कहीं से ' रामचरितमानस ' के एक दोहे का अंग्रेजी अनुवाद और तुलसीदासजी का चित्र देखने -पढने को मिला । दोहे का अनुवाद पढ़ और गोस्वामी जी का चित्र देख वे हैरत में पढ़ गये , उन्हें यह विश्वास नहीं हो रहा था कि सन्यासी दीखने वाले व्यक्ति ऐसी उत्कृष्ट रचना कर सकते हैँ । वे भारत की आध्यात्मिक संपदा की ओर आकर्षित हुए ।
भारत आने पर उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्दालय से संस्कृत B . A . किया । संस्कृत पढ़ते हुए वे वाल्मीकि - रामायण से बहुत प्रभावित हुए | संस्कृत पढने के बाद हिंदी पढ़ने के लिये उन्होंने प्रयाग विश्वविद्दालय में प्रवेश लिया । यहां हिन्दी में एम. ए. करने की बाद उन्होंने ' राम कथा की उत्पत्ति ओर विकास ' विषय पर शोध प्रबंध किया । उनका यह शोध प्रबंध हिन्दी शोध जगत में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है । गोस्वामी तुलसीदासजी डॉ. कामिल बुल्के के आदर्श पुरुष थे ,वे कहते थे --- तुलसीदासजी विश्व के महान कवियोँ में से हैं , उनकी रचनाओं में ज्ञान का अक्षय भंडार छिपा पड़ा है । भरत के चरित्र से उन्हें विशेष लगाव था । भरत से उन्होंने यही सीखा कि ---- "साधना का अर्थ पलायन नहीं अपितु सेवा के प्रति समर्पण है। '
रांची के सेंट जेवियर कॉलेज में वे संस्कृत और हिन्दी के विभाग अध्यक्ष रहे । उनका सारा जीवन ज्ञान और कर्म की साधना में लगा रहा । डॉ. क़ामिल बुल्के का व्यक्तित्व योगी सन्यासी की तरह था । एक ज्ञानी व्यक्ति का गांभीर्य , संत की तरह सरलता और ऋषि की तरह उदात्त गरिमा का संगम उनके व्यक्तित्व में था । हिन्दी भाषा के बारे में उनका विचार था--- " दुनिया भर में शायद ही कोई ऐसी विकसित साहित्यिक भाषा हो , जो हिन्दी की सरलता की बराबरी कर सके । "
भारत और हिन्दी भाषा के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले फादर कामिल बुल्के ने अपने जीवन की अंतिम साँसे भारतभूमि में ही 1982 में लीं । उनके इसी भारतप्रेम के कारण उन्हें पद्मभूषण के सम्मान से सम्मानित किया गया । उनके बारे में हरिवंशराय बच्चन ने लिखा है-----
" फादर बुल्के तुम्हे प्रणाम !
जन्मे और पले योरूप में, पर तुमको प्रिय भारत धाम
फादर बुल्के तुम्हे प्रणाम !
रही मातृभाषा योरुप की , बोली हिन्दी लगी ललाम
फादर बुल्के तुम्हे प्रणाम !
ईसाई संस्कार लिए भी , पूज्य हुए तुमको श्रीराम
फादर बुल्के तुम्हे प्रणाम ! "
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