पं. ईश्वरचंद्र विद्दासागर मानवता की एक पूरी तस्वीर और आदर्श की एक जीती-जागती मूर्ति थे । ऐसे परोपकारी, साहसी और दयावान विद्दासागर थे जिन्हें पाकर न केवल बंगाल अथवा भारत ही बल्कि सारी मानवता धन्य हो गई । '
कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज में अध्ययन करते हुए 19 वर्ष की आयु तक उन्होंने व्याकरण, साहित्य, अलंकार, स्मृति , तर्क वेदान्त आदि विषयों में पारंगति प्राप्त कर ली | माघ, किरात, मेघदूत, शकुंतला, उत्तर रामचरित्र, मुद्राराक्षस, कादंबरी, विक्रमोर्वर्शीय, दशकुमार चरित, कौमुदी, मनुसंहिता आदि ग्रन्थ उन्हें कंठस्थ हो गये थे | संस्कृत कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने विद्दा प्रसार करने का निश्चय किया | फोर्ट विलियम कॉलेज में प्रधान पंडित के पद पर उनकी नियुक्ति हुई |
सबसे पहला सुधार जो उन्होने किया वह यह कि---- पहले कॉलेज में किन्ही विशिष्ट जाति के लड़कों कों ही प्रवेश मिलता था, , विद्दासागर जी के प्रयासों से शिक्षा संस्थाओं से यह प्रतिबन्ध हटा दिया गया इससे समाज में उनका आदर बहुत बढ़ गया । विद्दासागर जी बहुत से बच्चों को निःशुल्क संस्कृत की शिक्षा दिया करते थे, उन्होंने देखा कि संस्कृत के प्राचीन व्याकरण को पढ़ने में कठिनाई होती है अत: उन्होने संस्कृत के एक सरल और नवीन शैली के व्याकरण की रचना के लिए एक वर्ष तक घोर परिश्रम किया और ' उपक्रमणिका ' नाम से संस्कृत का सरल, सुबोध, नवीन शैली का व्याकरण लिख डाला, यह व्याकरण इतना लोकप्रिय हुआ कि संस्कृत के पाठ्यक्रम में स्वीकृत किया गया । बंगाल में आज भी विद्दासागर निर्मित ' उपक्रमणिका ' लोगों को सरलता पुर्वक संस्कृत सीखने में सहायक बनी हुई है । जिन दिनों श्री विद्दासागर की ये योग्यतापूर्ण सेवायें चल रहीं थीं उन्ही दिनों नये गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंग कलकत्ता के फोर्ट विलियम कॉलेज का निरीक्षण करने आये ।
सही वक्त पर विद्दासागर जी ने गवर्नर जनरल से निर्भीकता से कहा कि --- संस्कृत कॉलेज के पढ़े विद्दार्थियों को सरकार की ओर से कोई महत्व नहीं दिया जाता इसलिये भारतीय लोग अपनी प्राचीन व महान भाषा के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं । सरकार को संस्कृत पढ़े व्यक्तियों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए , उन्हें वही मान्यता प्रदान की जानी चाहिए जो मान्यता अन्य कॉलेज में शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को प्रदान की जाती हैं । लार्ड हार्डिंग विद्दासागर की निर्भीक व निश्छल देशभक्ति देखकर बहुत प्रभावित हुए और उन्हें कोई ऐसी योजना देने को कहा जिससे संस्कृत कॉलेज के शिक्षा प्राप्त तरुणों का मूल्यांकन किया जा सके । विद्दासागर तुरंत इस सत्कार्य में संलग्न हो गये और छ: महीने के घोर परिश्रम के बाद एक सौ एक बंगला स्कूल खोले जाने की योजना लार्ड हार्डिंग को दी जिसमे यह नियम रखा कि इन नवारम्भ स्कूलों में संस्कृत कॉलेज के पढ़े व्यक्ति ही शिक्षक नियुक्त किये जायें । जिससे लोगों का ध्यान संस्कृत पढ़ने की ओर जाये ।
योजना की पूर्णता और व्यवहारिकता देखकर गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंग इतने प्रभावित व प्रसन्न हुए कि उन्होंने बिना किसी संशोधन के योजना को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया और उसको कार्यान्वित करने का भार विद्दासागर को ही सौंप दिया । स्कूलों की स्थापना के लिए विद्दासागर ने सारे बंगाल का दौरा किया ओर देहातों, कस्बों व शहरों में ऐसे स्थानों कि खोज की जहां पिछड़े लोग रहते थे, निरक्षरता का एकछत्र राज्य था । सारी व्यवस्था बनाकर उन्होंने 100 स्कूलों की स्थापना का कार्य पूरा किया । उनमे ऐसे नियम भी लागू कराये जिससे गरीब तथा पिछड़े हुए वर्ग के विद्दार्थियों को शिक्षण शुल्क में रियायत, छात्रवृति आदि अधिक से अधिक सुविधाएँ मिल सके । श्री विद्दासागर के इस प्रयास से बंगाल में स्थान-स्थान पर ज्ञान के दीपक जल उठे । शिक्षा प्रसार के इस एक ही महान कार्य ने श्री ईश्वरचंद्र विद्दासागर को न केवल बंगाल में बल्कि सम्पूर्ण भारत में विख्यात कर दिया ।
बालकों की शिक्षा के लिए तो बहुत स्कूल खुल चुके थे किन्तु बालिकाओं की शिक्षा का सर्वथा अभाव था । अब विद्दासागर ने देश में स्त्री-शिक्षा की कमी को दूर करने के लिए सरकार से लिखा-पढ़ी की और लार्ड हार्डिले को प्रभाव में लाकर पचास बालिका विद्दालय खोले जाने की स्वीकृति प्राप्त कर ली । उपयुक्त स्थानों पर बालिका विद्दालयों का काम अच्छी तरह से चल निकला । उन्होंने अपने गाँव में अपनी माताजी के नाम पर एक चिकित्सालय वा एक बालिका विद्दालय खोला जिसे वे अपने ही खर्च से चलाते थे । बंगाल में उस समय लोग स्त्री शिक्षा के विरुद्ध थे, अपनी लड़कियों को पढ़ने के लिए नहीं भेजते थे । अत: उन्होंने गवर्नर की सभा के एक सदस्य श्री बेथून साहब को अपने पक्ष में लेकर स्त्री-शिक्षा का अभियान तीव्र गति से चलाना आरम्भ किया और बेथून साहब के सहयोग से कलकत्ता व कलकत्ता के बाहर गांवों में अनेक बालिका विद्दालय खोले और लार्ड कैनिंग की पत्नी लेडी कैनिंग को कन्या विद्दालयों की अभिभाविका बनाकर उन विद्दालयों की प्रगति तथा अस्तित्व सुरक्षित कर दिया । इस प्रकार महान कठिनाइयों के बीच बंगाल में शिक्षा तथा विशेष रूप से स्त्री-शिक्षा का प्रचार करने के लिए बंगाल ही नहीं सारा देश श्री ईश्वरचंद्र विद्दासागर का सदा कृतज्ञ रहेगा ।
कलकत्ता के संस्कृत कॉलेज में अध्ययन करते हुए 19 वर्ष की आयु तक उन्होंने व्याकरण, साहित्य, अलंकार, स्मृति , तर्क वेदान्त आदि विषयों में पारंगति प्राप्त कर ली | माघ, किरात, मेघदूत, शकुंतला, उत्तर रामचरित्र, मुद्राराक्षस, कादंबरी, विक्रमोर्वर्शीय, दशकुमार चरित, कौमुदी, मनुसंहिता आदि ग्रन्थ उन्हें कंठस्थ हो गये थे | संस्कृत कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने विद्दा प्रसार करने का निश्चय किया | फोर्ट विलियम कॉलेज में प्रधान पंडित के पद पर उनकी नियुक्ति हुई |
सबसे पहला सुधार जो उन्होने किया वह यह कि---- पहले कॉलेज में किन्ही विशिष्ट जाति के लड़कों कों ही प्रवेश मिलता था, , विद्दासागर जी के प्रयासों से शिक्षा संस्थाओं से यह प्रतिबन्ध हटा दिया गया इससे समाज में उनका आदर बहुत बढ़ गया । विद्दासागर जी बहुत से बच्चों को निःशुल्क संस्कृत की शिक्षा दिया करते थे, उन्होंने देखा कि संस्कृत के प्राचीन व्याकरण को पढ़ने में कठिनाई होती है अत: उन्होने संस्कृत के एक सरल और नवीन शैली के व्याकरण की रचना के लिए एक वर्ष तक घोर परिश्रम किया और ' उपक्रमणिका ' नाम से संस्कृत का सरल, सुबोध, नवीन शैली का व्याकरण लिख डाला, यह व्याकरण इतना लोकप्रिय हुआ कि संस्कृत के पाठ्यक्रम में स्वीकृत किया गया । बंगाल में आज भी विद्दासागर निर्मित ' उपक्रमणिका ' लोगों को सरलता पुर्वक संस्कृत सीखने में सहायक बनी हुई है । जिन दिनों श्री विद्दासागर की ये योग्यतापूर्ण सेवायें चल रहीं थीं उन्ही दिनों नये गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंग कलकत्ता के फोर्ट विलियम कॉलेज का निरीक्षण करने आये ।
सही वक्त पर विद्दासागर जी ने गवर्नर जनरल से निर्भीकता से कहा कि --- संस्कृत कॉलेज के पढ़े विद्दार्थियों को सरकार की ओर से कोई महत्व नहीं दिया जाता इसलिये भारतीय लोग अपनी प्राचीन व महान भाषा के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं । सरकार को संस्कृत पढ़े व्यक्तियों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए , उन्हें वही मान्यता प्रदान की जानी चाहिए जो मान्यता अन्य कॉलेज में शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को प्रदान की जाती हैं । लार्ड हार्डिंग विद्दासागर की निर्भीक व निश्छल देशभक्ति देखकर बहुत प्रभावित हुए और उन्हें कोई ऐसी योजना देने को कहा जिससे संस्कृत कॉलेज के शिक्षा प्राप्त तरुणों का मूल्यांकन किया जा सके । विद्दासागर तुरंत इस सत्कार्य में संलग्न हो गये और छ: महीने के घोर परिश्रम के बाद एक सौ एक बंगला स्कूल खोले जाने की योजना लार्ड हार्डिंग को दी जिसमे यह नियम रखा कि इन नवारम्भ स्कूलों में संस्कृत कॉलेज के पढ़े व्यक्ति ही शिक्षक नियुक्त किये जायें । जिससे लोगों का ध्यान संस्कृत पढ़ने की ओर जाये ।
योजना की पूर्णता और व्यवहारिकता देखकर गवर्नर जनरल लार्ड हार्डिंग इतने प्रभावित व प्रसन्न हुए कि उन्होंने बिना किसी संशोधन के योजना को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया और उसको कार्यान्वित करने का भार विद्दासागर को ही सौंप दिया । स्कूलों की स्थापना के लिए विद्दासागर ने सारे बंगाल का दौरा किया ओर देहातों, कस्बों व शहरों में ऐसे स्थानों कि खोज की जहां पिछड़े लोग रहते थे, निरक्षरता का एकछत्र राज्य था । सारी व्यवस्था बनाकर उन्होंने 100 स्कूलों की स्थापना का कार्य पूरा किया । उनमे ऐसे नियम भी लागू कराये जिससे गरीब तथा पिछड़े हुए वर्ग के विद्दार्थियों को शिक्षण शुल्क में रियायत, छात्रवृति आदि अधिक से अधिक सुविधाएँ मिल सके । श्री विद्दासागर के इस प्रयास से बंगाल में स्थान-स्थान पर ज्ञान के दीपक जल उठे । शिक्षा प्रसार के इस एक ही महान कार्य ने श्री ईश्वरचंद्र विद्दासागर को न केवल बंगाल में बल्कि सम्पूर्ण भारत में विख्यात कर दिया ।
बालकों की शिक्षा के लिए तो बहुत स्कूल खुल चुके थे किन्तु बालिकाओं की शिक्षा का सर्वथा अभाव था । अब विद्दासागर ने देश में स्त्री-शिक्षा की कमी को दूर करने के लिए सरकार से लिखा-पढ़ी की और लार्ड हार्डिले को प्रभाव में लाकर पचास बालिका विद्दालय खोले जाने की स्वीकृति प्राप्त कर ली । उपयुक्त स्थानों पर बालिका विद्दालयों का काम अच्छी तरह से चल निकला । उन्होंने अपने गाँव में अपनी माताजी के नाम पर एक चिकित्सालय वा एक बालिका विद्दालय खोला जिसे वे अपने ही खर्च से चलाते थे । बंगाल में उस समय लोग स्त्री शिक्षा के विरुद्ध थे, अपनी लड़कियों को पढ़ने के लिए नहीं भेजते थे । अत: उन्होंने गवर्नर की सभा के एक सदस्य श्री बेथून साहब को अपने पक्ष में लेकर स्त्री-शिक्षा का अभियान तीव्र गति से चलाना आरम्भ किया और बेथून साहब के सहयोग से कलकत्ता व कलकत्ता के बाहर गांवों में अनेक बालिका विद्दालय खोले और लार्ड कैनिंग की पत्नी लेडी कैनिंग को कन्या विद्दालयों की अभिभाविका बनाकर उन विद्दालयों की प्रगति तथा अस्तित्व सुरक्षित कर दिया । इस प्रकार महान कठिनाइयों के बीच बंगाल में शिक्षा तथा विशेष रूप से स्त्री-शिक्षा का प्रचार करने के लिए बंगाल ही नहीं सारा देश श्री ईश्वरचंद्र विद्दासागर का सदा कृतज्ञ रहेगा ।
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