1914 में जब पहला विश्व युद्ध छिड़ा तो युद्ध की लपटें धरती से उठकर लोगों के दिमाग में भी धधकने लगीं उस समय रोमांरोलां लोगों को युद्ध के दुष्परिणाम समझाने में और शांति व प्रेम का वातावरण बनाने में लगे हुए थे | जब उन्होंने अपने प्रयासों का बुद्धिजीवियों पर परिणाम होते नहीं देखा तो अकेले ही शांति प्रयासों में जुट गये और जेनेवा जाकर उन्होंने ' इन्टरनेशनल रेडक्रास ' को अपनी सेवाएं अर्पित कर दीं और यूरोप का यह महान कलाकार , मनीषी रेडक्रास के दफ्तर में और क्षेत्र में काम करने लगा ।
रोमांरोलां की रूचि बचपन से संगीत में थी । युवावस्था तक पहुँचते -पहुँचते वे संगीत कला में इतने निष्णात हो गये कि उनकी ख्याति यूरोप भर में फैल गई । फिर उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया और टॉलस्टाय को अपना साहित्यिक गुरु माना और एक लम्बा पत्र लिखा कि आप मुझे आशीर्वाद दें । टॉलस्टाय ने इस पत्र के उत्तर में लिखा --- " प्यारे भाई ! तुम्हारा पहला पत्र मिला । इससे मेरी आत्मा बहुत ही अभिभूत हो उठी है । आँखों में आँसू भर गये पढ़ते -पढ़ते । तुम भावनाओं की माध्यम से लोगों में मानवीय आदर्शों के प्रति निष्ठा का जागरण करो । इससे प्रभु के उपवन की सुंदर सेवा होगी ।
रोमांरोलां बहुत दुर्बल काठी के और दमे के रोगी थे पर उन्होंने समस्त प्रतिकूलताओं से तालमेल बिठाते हुए अपने अंदर की रचनात्मकता विकसित की , उन्होंने पूर्व तथा पश्चिम के दर्शन और साहित्य के समन्वय का प्रयास किया । उन्होंने महात्मा गांधी , स्वामी विवेकानन्द सभी की जीवनियाँ लिखकर पूर्व को पश्चिम में पहुँचाया । उनके उदार विचार और तथ्यपूर्ण प्रतिपादनों का है परिणाम था कि स्टालिन जैसे उग्र और नास्तिकतावादी राजनेता और महात्मा गांधी जैसे अहिंसावादी संत -- दोनों ही उनसे प्रभावित रहे रहे । रोमांरोलां के प्रयास और उनका दर्शन सम्पूर्ण मानव सभ्यता को एकता के सूत्र में आबद्ध करने के लिए ही गतिशील रहा ।
रोमांरोलां की रूचि बचपन से संगीत में थी । युवावस्था तक पहुँचते -पहुँचते वे संगीत कला में इतने निष्णात हो गये कि उनकी ख्याति यूरोप भर में फैल गई । फिर उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया और टॉलस्टाय को अपना साहित्यिक गुरु माना और एक लम्बा पत्र लिखा कि आप मुझे आशीर्वाद दें । टॉलस्टाय ने इस पत्र के उत्तर में लिखा --- " प्यारे भाई ! तुम्हारा पहला पत्र मिला । इससे मेरी आत्मा बहुत ही अभिभूत हो उठी है । आँखों में आँसू भर गये पढ़ते -पढ़ते । तुम भावनाओं की माध्यम से लोगों में मानवीय आदर्शों के प्रति निष्ठा का जागरण करो । इससे प्रभु के उपवन की सुंदर सेवा होगी ।
रोमांरोलां बहुत दुर्बल काठी के और दमे के रोगी थे पर उन्होंने समस्त प्रतिकूलताओं से तालमेल बिठाते हुए अपने अंदर की रचनात्मकता विकसित की , उन्होंने पूर्व तथा पश्चिम के दर्शन और साहित्य के समन्वय का प्रयास किया । उन्होंने महात्मा गांधी , स्वामी विवेकानन्द सभी की जीवनियाँ लिखकर पूर्व को पश्चिम में पहुँचाया । उनके उदार विचार और तथ्यपूर्ण प्रतिपादनों का है परिणाम था कि स्टालिन जैसे उग्र और नास्तिकतावादी राजनेता और महात्मा गांधी जैसे अहिंसावादी संत -- दोनों ही उनसे प्रभावित रहे रहे । रोमांरोलां के प्रयास और उनका दर्शन सम्पूर्ण मानव सभ्यता को एकता के सूत्र में आबद्ध करने के लिए ही गतिशील रहा ।
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