84 वर्ष की आयु में जब वाल्टेयर की मृत्यु हुई तो उनका अंतिम संस्कार कराने के लिए पेरिस का कोई भी पादरी तैयार नहीं था क्योंकि वाल्टेयर ने अपनी लेखनी से हमेशा धर्मान्ध पुरोहितों, शोषण, अत्याचार और धार्मिक लूट पर जमकर प्रहार किया था इसलिए उनके शव को नगर से बाहर एक छोटे से गाँव में दफना दिया ।
वाल्टेयर ने अपने जीवन में लगभग 100 महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे, उन सभी मे उन्होंने धर्म के वास्तविक रूप का प्रतिपादन किया । उनकी लेखनी ने न केवल धार्मिक वरन राजनैतिक और आर्थिक क्रांति के लिए भूमि तैयार की जिसके फलस्वरूप निहित स्वार्थों का आसन ही डगमगा गया और फ्रांस ही नहीं सारे य़ूरोप की जनता में स्वतंत्र विचारों की महत्वपूर्ण शक्ति का उदय हुआ । उनके द्वारा छेड़ी गई विचार क्रान्ति के कारण ही उन्हें फ़्रांस की राज्य क्रांति का प्रमुख आधार स्तम्भ व महामानव माना जाता है ।
वे एक अथक सैनिक थे जो अनवरत रूप से बुराइयों से लड़ते रहे | वे मानव मन को अंधविश्वासों और कुसंस्कारों से विरत करना चाहते थे | वाल्टेयर बहत परिश्रमी थे , उन्होंने अपने जीवन का एक क्षण भी व्यर्थ जाने नहीं दिया ।
वे कहते थे कुछ काम न करना मृतक के समान है । वाल्टेयर को सर्वाधिक ख्याति उनके द्वारा लिखे नाटकों से मिली । उन्होंने तत्कालीन राज्य व्यवस्था को लेकर एक व्यंग्य प्रधान नाटक लिखा , यह नाटक जब अभिमंचित हुआ तो राज्य व्यवस्था की कई दूषित परम्पराओं का पर्दाफाश हुआ । उनकी पुस्तकें आज़ भी फ्रेंच साहित्य का गौरव समझी जाती हैं ।
फ़्रांस के सम्राट लुई चौदहवें की म्रत्यु हुई उस समय वाल्तेयर केवल 2 1 वर्ष के थे लेकिन वैचारिक दृष्टि से वे प्रौढ़ थे । लुई के मरने पर बहुत खर्च किया गया जिससे राजकोष में बहुत कमी आई , उनके उत्तराधिकारी ने इस कमी को पूरा करने के लिए घुड़साल के आधे घोड़े बेच दिए तो इस कृत्य पर व्यंग्य करते हुए उन्होंने कहा---- ' यदि राजा घुड़साल के उन घोड़ों को न बेचकर उन गधों को विदा कर देता जो राजसभा में भरें हुए हैँ तो अच्छा रहता । उस स मय फ़्रांस के शासन तंत्र पर चापलूसों का आधिपत्य था जो काम कुछ नहीं करते थे ओर वेतन के रुप में मोटी रकम वसूल करते थे ।
जब उनकी म्रत्यु हो गईं तब लोगों ने उनके महत्व को स्वीकार किया , फ़्रांस की राज्य क्रांति के बाद वाल्टेयर की मरी मिट्टी को 1 3 वर्ष बाद कब्र से निकाला गया और एक विराट जुलूस के रूप में राजसी सम्मान के साथ नगर मे घुमाया गया , उनकी शवयात्रा में 6 लाख नर -नारी सम्मिलित थे , अर्थी पर मोटे अक्षरों में लिखा था ----" वह वाल्टेयर जिसने हमारे मन को बड़ा बल व साहस प्रदान किया , जिसने हमें स्वाधीनता संग्राम के लिये उकसाया । "
वाल्टेयर ने अपने जीवन में लगभग 100 महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे, उन सभी मे उन्होंने धर्म के वास्तविक रूप का प्रतिपादन किया । उनकी लेखनी ने न केवल धार्मिक वरन राजनैतिक और आर्थिक क्रांति के लिए भूमि तैयार की जिसके फलस्वरूप निहित स्वार्थों का आसन ही डगमगा गया और फ्रांस ही नहीं सारे य़ूरोप की जनता में स्वतंत्र विचारों की महत्वपूर्ण शक्ति का उदय हुआ । उनके द्वारा छेड़ी गई विचार क्रान्ति के कारण ही उन्हें फ़्रांस की राज्य क्रांति का प्रमुख आधार स्तम्भ व महामानव माना जाता है ।
वे एक अथक सैनिक थे जो अनवरत रूप से बुराइयों से लड़ते रहे | वे मानव मन को अंधविश्वासों और कुसंस्कारों से विरत करना चाहते थे | वाल्टेयर बहत परिश्रमी थे , उन्होंने अपने जीवन का एक क्षण भी व्यर्थ जाने नहीं दिया ।
वे कहते थे कुछ काम न करना मृतक के समान है । वाल्टेयर को सर्वाधिक ख्याति उनके द्वारा लिखे नाटकों से मिली । उन्होंने तत्कालीन राज्य व्यवस्था को लेकर एक व्यंग्य प्रधान नाटक लिखा , यह नाटक जब अभिमंचित हुआ तो राज्य व्यवस्था की कई दूषित परम्पराओं का पर्दाफाश हुआ । उनकी पुस्तकें आज़ भी फ्रेंच साहित्य का गौरव समझी जाती हैं ।
फ़्रांस के सम्राट लुई चौदहवें की म्रत्यु हुई उस समय वाल्तेयर केवल 2 1 वर्ष के थे लेकिन वैचारिक दृष्टि से वे प्रौढ़ थे । लुई के मरने पर बहुत खर्च किया गया जिससे राजकोष में बहुत कमी आई , उनके उत्तराधिकारी ने इस कमी को पूरा करने के लिए घुड़साल के आधे घोड़े बेच दिए तो इस कृत्य पर व्यंग्य करते हुए उन्होंने कहा---- ' यदि राजा घुड़साल के उन घोड़ों को न बेचकर उन गधों को विदा कर देता जो राजसभा में भरें हुए हैँ तो अच्छा रहता । उस स मय फ़्रांस के शासन तंत्र पर चापलूसों का आधिपत्य था जो काम कुछ नहीं करते थे ओर वेतन के रुप में मोटी रकम वसूल करते थे ।
जब उनकी म्रत्यु हो गईं तब लोगों ने उनके महत्व को स्वीकार किया , फ़्रांस की राज्य क्रांति के बाद वाल्टेयर की मरी मिट्टी को 1 3 वर्ष बाद कब्र से निकाला गया और एक विराट जुलूस के रूप में राजसी सम्मान के साथ नगर मे घुमाया गया , उनकी शवयात्रा में 6 लाख नर -नारी सम्मिलित थे , अर्थी पर मोटे अक्षरों में लिखा था ----" वह वाल्टेयर जिसने हमारे मन को बड़ा बल व साहस प्रदान किया , जिसने हमें स्वाधीनता संग्राम के लिये उकसाया । "
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