' निराशा के अंधकार में आशा की बिजली कौंधाते रहना उनका स्वभाव ही बन गया था , आये दिन उनके पास कितने ही दुःखी, परेशान व्यक्ति अपनी कष्ट कथा सुनाने उनके पास आते और बदले में आशा और उत्साह भरी प्रेरणा योजना साथ लेकर जाते । इस क्रम के कारण वे असंख्यों बोझिल जीवन हलके बनाने में सफल हो सके और ' आशावादी डंकन ' के नाम से सारे अमेरिका में विख्यात हुए । '
कैलीफोर्निया के प्रसिद्ध डॉक्टर डंकन पक्षाघात के शिकार हुए । हाथ, पाँव बेतरह जकड़ गये, उनका हिलना डुलना कठिन हो गया, गनीमत इतनी ही रही कि गरदन से ऊपर अंग आँख, कान, मुँह आदि ठीक काम करते रहे । अपनी आत्मकथा में डंकन ने लिखा है कि पक्षाघात का आक्रमण इतना गहरा था कि चारपाई पर हिलना-डुलना ओर करवट लेना भी कठिन था, ऐसी स्थिति में भविष्य के निराशाजनक चित्र देखने वाला व्यक्ति घुल-घुलकर मर ही सकता था
इस आकस्मिक विपत्ति के समय उन्होंने निश्चय किया कि परिवार पर जो भय और आशंका का दबाव पड़ा है उसे दूर करें । पत्नी और बच्चे जब उनसे मिलने आते तो सारा साहस समेटकर हँसने-मुस्कराने, आशा, हिम्मत बढ़ानेवाली बातें करने लगते । इसका परिणाम यह हुआ कि बच्चों के मन का बोझ हलका हुआ कि कोई अप्रत्याशित संकट नहीं है, उनके पापा जल्दी पहले की तरह होंगे, वे मन लगाकर पढ़ने-लिखने लगे, परिवार की स्थिति भी सामान्य हो गई ।
आशा और उत्साह की अभिव्यक्ति का परिवार पर प्रभाव देखा तो उन्होंने निश्चय किया कि अस्पताल के दूसरे रोगियों को भी इस प्रकार लाभान्वित किया जाये । उस वार्ड में लकवा के अन्य रोगी भी थे । फालतू समय में ताश, शतरंज खेलने के लिए व उन्हे इकठ्ठा करते । दूसरे बीमार जहां हाथ की सहायता से ताश, शतरंज खेलते वहां डंकन को वह कार्य दांत व मुँह से करना पड़ता । वे मुँह, दांत और कुहनियों की सहायता से कई तरह के खेल खेलते और वार्ड के अन्य रोगियों का अच्छा मनोरंजन करते, साथ ही उन्हें साहस बंधाते कि उन्हें अपेक्षाकृत कम रोग है । ऐसी स्थिति में उन्हें ज्यादा प्रसन्न व आशावादी होना चाहिए ।
डंकन को फोटोग्राफी की जानकारी थी, कैमरा भी था , उन्होंने वार्ड के रोगियों, कर्मचारियों व उनके घर वालों से कहा कि वे रील ले आयें तो बिना पारिश्रमिक के फ़ोटो खिंचवा सकते हैं । डंकन के हाथ, पाँव ठीक से काम नही करते थे अत: वे पलंग पर बैठ्कर ठोड़ी की सहायता से शटर दबाते । पूरे मनोयोग के साथ खींचे फोटो इतने साफ निकलते कि लोगों का उत्साह बढ़ता गया ।
लगभग एक वर्ष बाद अस्पताल से छुट्टी मिली तो उन्होंने घर पर ही फोटोग्राफी का धन्धा खड़ा किया । ठोड़ी से शटर दबाकर फोटो खींचने वाला फोटोग्राफर धीरे-धीरे मशहूर होता गया, उन्होंने एक बड़ा स्टूडियो बनाया और अपने करतब से इतने लोगों को चमत्कृत किया कि स्वस्थ स्थिति में चलने वाली डॉक्टरी की अपेक्षा कई गुना आमदनी होने लगी । अब उन्होंने अपने बच्चों की सहायता से अपने निज का संकट टालने से लेकर अगणित व्यथा- वेदनाग्रस्त लोगों को आशा की किरण दिखाने की क्रिया का वर्णन लिखवाया, अस्पतालों में अपंगों, वृद्धों के बीच अनेकों भाषण दिये । आशावादी विचारों के चमत्कार समझाये और साथ ही वह मार्गदर्शन भी किया कि संकटग्रस्त स्थिति में पड़े लोग किस विचारधारा और किस कार्य पद्धति को अपनाकर किस प्रकार अधिक सुन्दर व समुन्नत जीवन जी सकते हैं ।
कैलीफोर्निया के प्रसिद्ध डॉक्टर डंकन पक्षाघात के शिकार हुए । हाथ, पाँव बेतरह जकड़ गये, उनका हिलना डुलना कठिन हो गया, गनीमत इतनी ही रही कि गरदन से ऊपर अंग आँख, कान, मुँह आदि ठीक काम करते रहे । अपनी आत्मकथा में डंकन ने लिखा है कि पक्षाघात का आक्रमण इतना गहरा था कि चारपाई पर हिलना-डुलना ओर करवट लेना भी कठिन था, ऐसी स्थिति में भविष्य के निराशाजनक चित्र देखने वाला व्यक्ति घुल-घुलकर मर ही सकता था
इस आकस्मिक विपत्ति के समय उन्होंने निश्चय किया कि परिवार पर जो भय और आशंका का दबाव पड़ा है उसे दूर करें । पत्नी और बच्चे जब उनसे मिलने आते तो सारा साहस समेटकर हँसने-मुस्कराने, आशा, हिम्मत बढ़ानेवाली बातें करने लगते । इसका परिणाम यह हुआ कि बच्चों के मन का बोझ हलका हुआ कि कोई अप्रत्याशित संकट नहीं है, उनके पापा जल्दी पहले की तरह होंगे, वे मन लगाकर पढ़ने-लिखने लगे, परिवार की स्थिति भी सामान्य हो गई ।
आशा और उत्साह की अभिव्यक्ति का परिवार पर प्रभाव देखा तो उन्होंने निश्चय किया कि अस्पताल के दूसरे रोगियों को भी इस प्रकार लाभान्वित किया जाये । उस वार्ड में लकवा के अन्य रोगी भी थे । फालतू समय में ताश, शतरंज खेलने के लिए व उन्हे इकठ्ठा करते । दूसरे बीमार जहां हाथ की सहायता से ताश, शतरंज खेलते वहां डंकन को वह कार्य दांत व मुँह से करना पड़ता । वे मुँह, दांत और कुहनियों की सहायता से कई तरह के खेल खेलते और वार्ड के अन्य रोगियों का अच्छा मनोरंजन करते, साथ ही उन्हें साहस बंधाते कि उन्हें अपेक्षाकृत कम रोग है । ऐसी स्थिति में उन्हें ज्यादा प्रसन्न व आशावादी होना चाहिए ।
डंकन को फोटोग्राफी की जानकारी थी, कैमरा भी था , उन्होंने वार्ड के रोगियों, कर्मचारियों व उनके घर वालों से कहा कि वे रील ले आयें तो बिना पारिश्रमिक के फ़ोटो खिंचवा सकते हैं । डंकन के हाथ, पाँव ठीक से काम नही करते थे अत: वे पलंग पर बैठ्कर ठोड़ी की सहायता से शटर दबाते । पूरे मनोयोग के साथ खींचे फोटो इतने साफ निकलते कि लोगों का उत्साह बढ़ता गया ।
लगभग एक वर्ष बाद अस्पताल से छुट्टी मिली तो उन्होंने घर पर ही फोटोग्राफी का धन्धा खड़ा किया । ठोड़ी से शटर दबाकर फोटो खींचने वाला फोटोग्राफर धीरे-धीरे मशहूर होता गया, उन्होंने एक बड़ा स्टूडियो बनाया और अपने करतब से इतने लोगों को चमत्कृत किया कि स्वस्थ स्थिति में चलने वाली डॉक्टरी की अपेक्षा कई गुना आमदनी होने लगी । अब उन्होंने अपने बच्चों की सहायता से अपने निज का संकट टालने से लेकर अगणित व्यथा- वेदनाग्रस्त लोगों को आशा की किरण दिखाने की क्रिया का वर्णन लिखवाया, अस्पतालों में अपंगों, वृद्धों के बीच अनेकों भाषण दिये । आशावादी विचारों के चमत्कार समझाये और साथ ही वह मार्गदर्शन भी किया कि संकटग्रस्त स्थिति में पड़े लोग किस विचारधारा और किस कार्य पद्धति को अपनाकर किस प्रकार अधिक सुन्दर व समुन्नत जीवन जी सकते हैं ।
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