' महात्मा टालस्टाय ने संसार को बहुत कुछ देने के साथ -साथ जो सबसे मूल्यवान निधि दी है, वह है------- अपने महान जीवन के परिवर्तन तथा निर्माण का उदाहरण । ' 28 अगस्त 1828 को रूस में जन्म लेने वाले टालस्टाय जन्मजात महात्मा नहीं थे, उन्होंने संसार तथा उनमे घटित होने वाली घटनाओं से शिक्षा लेकर अपने को पूर्ण मानव के रूप में निर्माण किया |
महात्मा टालस्टाय रूस के एक सामन्त-वंशी राजकुमार थे, वीरता, साहस तथा युद्ध उनके स्वाभाविक गुण थे । उनके जीवन के दो ही काम थे । या तो किसी युद्ध में शामिल होकर लड़ा करते अथवा विलासिता में डूबे रहते । सामन्त सेनापतियों की बुराइयां उनमे थीं । जिस समय वे एक वर्ष के थे उनकी माता का निधन हो गया , जिस धाय ने उनका पालन किया वह उन्हें प्राणो से भी ज्यादा प्यार करती थी । जब वे कजान विश्वविद्दालय में पढ़ते थे तो उनका विचार राजदूत बनने का था , इसके लिए उन्होंने पूर्वी भाषाओँ को सीखना आरम्भ किया, उन दिनों उनकी विचारों में असंतुलन था । भाषाओँ का अध्ययन छोड़कर कानून का अध्ययन करने लगे , कुछ समय बाद यह भी छोड़ दिया और कॉलेज छोड़कर बेकार व निठल्ले बैठे रहने लगे , धीरे -धीरे दुर्व्यसनों ने उन्हें घेरना शुरू किया, वे विषय -भोगों में डूब गये , उनकी नैतिकता का पूरी तराह पतन हो गया ।
उनके जीवन की यह स्थिति बहुत दिन नहीं चल सकी । उनके बड़े भाई जो उन्हें बहुत प्यार करते थे , उनकी मृत्यु हो गई | उनके हृदय पर युद्ध की भयानकता , विलासी जीवन और विकृत आचरण के दुष्परिणाम अंकित हो गये । उन्होंने महात्माओं और सज्जनों के जीवन से अपनी तुलना की तो उन्हें बहुत आत्म -ग्लानि हुई और विलासितापूर्ण निकम्मे जीवन से विरक्ति हो गई । सत्य का प्रकाश आते ही उन्होंने अपने जीवन की धारा बदल दी और सोचने लगे कि संसार के न जाने कितने मनुष्य विषय-वासना के अधीन असफल जीवन जी रहे होंगे, उन्होंने सारा जीवन मानवता के उद्धार में लगा देने का संकल्प लिया । जीवन के दस वर्ष मद्दपान, क्रूरता, हत्या तथा विषयों में बिताने वाले टालस्टाय का पूरा जीवन ही बदल गया ।
अब वह बुरे से अच्छे बनकर प्रेम, करुणा, सह्रदयता, सहानुभूति तथा त्याग-तपस्या की मूर्ति बन गये । उन्हें जब अपने वो दिन याद आ जाते कि जब वे रूसी तोपखाने में थे और युद्ध में जाकर हजारों मनुष्यों का वध किया करते थे तब वे रो उठते थे । आत्मग्लानी की वेदंना के आघात को कम करने के लिए उन्होंने कलम का सहारा लिया । 'बचपन ' उपन्यास लिखा जिसकी बहुत प्रशंसा हुई । अब उन्होंने अशिक्षा व अंधकार मिटाने के लिए अनेक स्कूल खोले , प्रौढ़ों व किसानो के लिए भी अनेक स्कूल खोले । रूस के अत्याचारी और निरंकुश शासन कि गोली का मुकाबला उन्होंने लेखनी के सहारे विचार क्रांति का आह्वान करके किया ।
महात्मा टालस्टाय रूस के एक सामन्त-वंशी राजकुमार थे, वीरता, साहस तथा युद्ध उनके स्वाभाविक गुण थे । उनके जीवन के दो ही काम थे । या तो किसी युद्ध में शामिल होकर लड़ा करते अथवा विलासिता में डूबे रहते । सामन्त सेनापतियों की बुराइयां उनमे थीं । जिस समय वे एक वर्ष के थे उनकी माता का निधन हो गया , जिस धाय ने उनका पालन किया वह उन्हें प्राणो से भी ज्यादा प्यार करती थी । जब वे कजान विश्वविद्दालय में पढ़ते थे तो उनका विचार राजदूत बनने का था , इसके लिए उन्होंने पूर्वी भाषाओँ को सीखना आरम्भ किया, उन दिनों उनकी विचारों में असंतुलन था । भाषाओँ का अध्ययन छोड़कर कानून का अध्ययन करने लगे , कुछ समय बाद यह भी छोड़ दिया और कॉलेज छोड़कर बेकार व निठल्ले बैठे रहने लगे , धीरे -धीरे दुर्व्यसनों ने उन्हें घेरना शुरू किया, वे विषय -भोगों में डूब गये , उनकी नैतिकता का पूरी तराह पतन हो गया ।
उनके जीवन की यह स्थिति बहुत दिन नहीं चल सकी । उनके बड़े भाई जो उन्हें बहुत प्यार करते थे , उनकी मृत्यु हो गई | उनके हृदय पर युद्ध की भयानकता , विलासी जीवन और विकृत आचरण के दुष्परिणाम अंकित हो गये । उन्होंने महात्माओं और सज्जनों के जीवन से अपनी तुलना की तो उन्हें बहुत आत्म -ग्लानि हुई और विलासितापूर्ण निकम्मे जीवन से विरक्ति हो गई । सत्य का प्रकाश आते ही उन्होंने अपने जीवन की धारा बदल दी और सोचने लगे कि संसार के न जाने कितने मनुष्य विषय-वासना के अधीन असफल जीवन जी रहे होंगे, उन्होंने सारा जीवन मानवता के उद्धार में लगा देने का संकल्प लिया । जीवन के दस वर्ष मद्दपान, क्रूरता, हत्या तथा विषयों में बिताने वाले टालस्टाय का पूरा जीवन ही बदल गया ।
अब वह बुरे से अच्छे बनकर प्रेम, करुणा, सह्रदयता, सहानुभूति तथा त्याग-तपस्या की मूर्ति बन गये । उन्हें जब अपने वो दिन याद आ जाते कि जब वे रूसी तोपखाने में थे और युद्ध में जाकर हजारों मनुष्यों का वध किया करते थे तब वे रो उठते थे । आत्मग्लानी की वेदंना के आघात को कम करने के लिए उन्होंने कलम का सहारा लिया । 'बचपन ' उपन्यास लिखा जिसकी बहुत प्रशंसा हुई । अब उन्होंने अशिक्षा व अंधकार मिटाने के लिए अनेक स्कूल खोले , प्रौढ़ों व किसानो के लिए भी अनेक स्कूल खोले । रूस के अत्याचारी और निरंकुश शासन कि गोली का मुकाबला उन्होंने लेखनी के सहारे विचार क्रांति का आह्वान करके किया ।
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