समर्थ गुरुरामदास की अखण्ड विद्वता , तेजोमय व्यक्तित्व तथा ओजपूर्ण वाणी का इतना प्रभाव पड़ता था कि नगर-नगर, ग्राम-ग्राम उनके शिष्य बनते चले जाते । जब महाराज शिवाजी ने उनकी कीर्ति सुनी तो वे उनसे मिलने को आतुर रहने लगे । जब यह समाचार समर्थ को मिला तो उन्होंने शिवाजी के नाम एक लम्बा पत्र लिखा जिसमे उन्होंने शिवाजी को राजधर्म का उपदेश दिया------ उन्होंने लिखा---- " मनुष्य की शक्ति साधनों में नहीं, उसकी आत्मा में होती है । जिसे अपनी आत्मा में विश्वास है, मन में देशोद्धार की सच्ची लगन है उसके कर्तव्य-पथ पर पद रखते ही साधन स्वयं एकत्र होने लगते हैं । अपनी आत्मा का जागरण करो, मन को बलवान बनाओ और उद्धार कार्य में एकनिष्ठ होकर लग जाओ । तुमको अवश्य सफलता प्राप्त होगी । "
" अत्याचारी की शक्ति क्षणिक होती है, उसे देखकर कभी भयभीत नहीं होना चाहिये । अत्याचारी प्रत्यक्ष रूप से निरपराधों पर तलवार चलाता दिखता है पर परोक्ष में अपनी ही जड़ें काटा करता है । अत्याचारी से बढ़कर कोई भी कायर संसार में नहीं होता । निष्काम बुद्धि से अपना कर्तव्य करो, भगवान तुम्हारी सहायता करेंगे । "
शिवाजी ने समर्थ गुरु से दीक्षा ली और सन्यास की अनुमति मांगी , समर्थगुरु ने उन्हें समझाया कि पीड़ितों की रक्षा करना और धर्म का उद्धार करना तुम्हारा कर्तव्य है ,। सच्चे सन्यास का अर्थ है-------- अपनी तृष्णा-वासना, संकीर्णता और स्वार्थपरता का परित्याग करना और निःस्वार्थ भाव से देश-धर्म की रक्षा करना । गुरु की कृपा और अपने परिश्रम से शिवाजी का अभ्युदय होता गया । गुरु व शिष्य के सम्मिलित प्रयत्नों से हिन्दुओं में आत्मविश्वास जागा, धर्म के प्रति आस्था एवं श्रद्धा की वृद्धि हुई । जिसके फलस्वरूप मुगल-साम्राज्य की जड़ें खोखली हो गईं और आगे चलकर कुछ ही समय में गिरकर ढेर हो गया ।
समर्थगुरुरामदास का लिखा हुआ ग्रन्थ ' दास बोध ' मानव-जीवन की सभी समस्याओं पर प्रकाश डालने वाला एकमात्र अद्धितीय ग्रन्थ माना जाता है ।
" अत्याचारी की शक्ति क्षणिक होती है, उसे देखकर कभी भयभीत नहीं होना चाहिये । अत्याचारी प्रत्यक्ष रूप से निरपराधों पर तलवार चलाता दिखता है पर परोक्ष में अपनी ही जड़ें काटा करता है । अत्याचारी से बढ़कर कोई भी कायर संसार में नहीं होता । निष्काम बुद्धि से अपना कर्तव्य करो, भगवान तुम्हारी सहायता करेंगे । "
शिवाजी ने समर्थ गुरु से दीक्षा ली और सन्यास की अनुमति मांगी , समर्थगुरु ने उन्हें समझाया कि पीड़ितों की रक्षा करना और धर्म का उद्धार करना तुम्हारा कर्तव्य है ,। सच्चे सन्यास का अर्थ है-------- अपनी तृष्णा-वासना, संकीर्णता और स्वार्थपरता का परित्याग करना और निःस्वार्थ भाव से देश-धर्म की रक्षा करना । गुरु की कृपा और अपने परिश्रम से शिवाजी का अभ्युदय होता गया । गुरु व शिष्य के सम्मिलित प्रयत्नों से हिन्दुओं में आत्मविश्वास जागा, धर्म के प्रति आस्था एवं श्रद्धा की वृद्धि हुई । जिसके फलस्वरूप मुगल-साम्राज्य की जड़ें खोखली हो गईं और आगे चलकर कुछ ही समय में गिरकर ढेर हो गया ।
समर्थगुरुरामदास का लिखा हुआ ग्रन्थ ' दास बोध ' मानव-जीवन की सभी समस्याओं पर प्रकाश डालने वाला एकमात्र अद्धितीय ग्रन्थ माना जाता है ।
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