विश्व बन्धुत्व को लक्ष्य बनाकर चित्रकारिता के मार्ग से आत्माभिव्यक्ति में निष्णांत निकोलाई रोरिख ने चित्रकला को अनूठा योगदान दिया । उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में 7000 से भी अधिक चित्र बनाये, जो विश्व की प्रत्येक वीथिका में गौरवपूर्ण स्थान पर स्थापित हैं । उन्होंने ऐतिहासिक घटनाओं से लेकर, प्राकृतिक द्रश्यों और रहस्यवादी कल्पनाओं तक जो रेखाएं खींची और आकृतियाँ उभारी वे संगीत की भांति ह्रदय तक पहुँचती हैं ।
भारत प्रवास के दौरान उन्होंने हिमालय को भी चित्रित किया । हिम पर्वत पर सूर्यास्त, सौभाग्य अश्व लद्दाख, हिमालय की महान आत्मा--- उनकी महानतम कलाकृतियाँ हैं । निकोलाई रोरिख (1874-1945) ने पूरे विश्व में विश्व शांति और विश्व बन्धुत्व के लिए जो प्रयास किये वे वस्तुत: किसी राजनेता की तुलना कम नहीं अधिक थे । उन्ही के प्रयासों से 60 से भी अधिक देश इस बात के लिए तैयार हो गये कि संसार की सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा के लिए वे सभी परस्पर सहयोग और सदभाव पूर्वक प्रयत्न करेंगे तथा एक दूसरे की संस्कृति , जीवन मूल्यों का समान आदर करेंगे । यह समझौता एक सन्धि के रूप में किया गया था जिसे रोरिख-पैक्ट का नाम दिया गया ।
रोरिख जिस कार्य को भी हाथ में लेते उसे पूरी गंभीरता और निष्ठा से पूरा करते । इसी का परिणाम था कि वे अपनी कला और अपने सृजन के माध्यम से विश्व को बहुत कुछ नया दे सके--- ऐसी अनूठी देन जो शायद ही किसी और ने दी हो ।
चित्रकला के विकास एवं प्रशिक्षण हेतु उन्होंने देश-विदेश में कई संस्थाओं को जन्म दिया । अमेरिका में कला के विकास हेतु उन्होंने ' यूनाइटेड आर्टस म्यूजियम ' के नाम से विभिन्न कला संस्थायें, शिकागो इन्टरनेशनल सोसायटी ऑफ आर्टिस्ट, इन्टरनेशनलआर्ट सेन्टर, भारत में हिमालय रिसर्च इंस्टिट्यूट तथा उरुस्वती आदि विभिन्न संस्थाओं को जन्म दिया । इन सभी संस्थाओं का एक ही ;लक्ष्य था--- विश्व शान्ति और सांस्कृतिक एकता ।
वे भारत भूमि को अपनी मातृभूमि की तरह प्यार करते थे । निकोलाई रोरिख अपनी कला साधना के बल पर विश्वशान्ति और विश्व बन्धुत्व के उपासक हो गये थे--- इसका श्रेय ओर प्रेरणा स्रोत वे हिमालय को ही मानते थे । उनके जीवन के मूल मन्त्र ये शब्द थे----- " सुन्दरता में ही हम संगठित हैं, सुन्दरता के माध्यम से ही हम प्रार्थना करते हैं और सुन्दरता से ही हम विजयी होंगे । "
भारत प्रवास के दौरान उन्होंने हिमालय को भी चित्रित किया । हिम पर्वत पर सूर्यास्त, सौभाग्य अश्व लद्दाख, हिमालय की महान आत्मा--- उनकी महानतम कलाकृतियाँ हैं । निकोलाई रोरिख (1874-1945) ने पूरे विश्व में विश्व शांति और विश्व बन्धुत्व के लिए जो प्रयास किये वे वस्तुत: किसी राजनेता की तुलना कम नहीं अधिक थे । उन्ही के प्रयासों से 60 से भी अधिक देश इस बात के लिए तैयार हो गये कि संसार की सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा के लिए वे सभी परस्पर सहयोग और सदभाव पूर्वक प्रयत्न करेंगे तथा एक दूसरे की संस्कृति , जीवन मूल्यों का समान आदर करेंगे । यह समझौता एक सन्धि के रूप में किया गया था जिसे रोरिख-पैक्ट का नाम दिया गया ।
रोरिख जिस कार्य को भी हाथ में लेते उसे पूरी गंभीरता और निष्ठा से पूरा करते । इसी का परिणाम था कि वे अपनी कला और अपने सृजन के माध्यम से विश्व को बहुत कुछ नया दे सके--- ऐसी अनूठी देन जो शायद ही किसी और ने दी हो ।
चित्रकला के विकास एवं प्रशिक्षण हेतु उन्होंने देश-विदेश में कई संस्थाओं को जन्म दिया । अमेरिका में कला के विकास हेतु उन्होंने ' यूनाइटेड आर्टस म्यूजियम ' के नाम से विभिन्न कला संस्थायें, शिकागो इन्टरनेशनल सोसायटी ऑफ आर्टिस्ट, इन्टरनेशनलआर्ट सेन्टर, भारत में हिमालय रिसर्च इंस्टिट्यूट तथा उरुस्वती आदि विभिन्न संस्थाओं को जन्म दिया । इन सभी संस्थाओं का एक ही ;लक्ष्य था--- विश्व शान्ति और सांस्कृतिक एकता ।
वे भारत भूमि को अपनी मातृभूमि की तरह प्यार करते थे । निकोलाई रोरिख अपनी कला साधना के बल पर विश्वशान्ति और विश्व बन्धुत्व के उपासक हो गये थे--- इसका श्रेय ओर प्रेरणा स्रोत वे हिमालय को ही मानते थे । उनके जीवन के मूल मन्त्र ये शब्द थे----- " सुन्दरता में ही हम संगठित हैं, सुन्दरता के माध्यम से ही हम प्रार्थना करते हैं और सुन्दरता से ही हम विजयी होंगे । "
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