बुद्ध का जन्म हुआ , सभी देखने आये । एक महात्मा हिमालय से आये । पिता ने बालक बुद्ध को महात्मा के चरणों पर रखते हुए कहा----" महात्मन् ! आशीर्वाद दें, प्रभु से मंगल कामना करें ताकि बालक दीर्घायु हो, यशस्वी हो, प्रतापी हो । " किन्तु महात्मा कुछ उद्गार व्यक्त करने के पूर्व ही रोने लगे । राजा डर गये । पूछा कोई अपशकुन है ? कुछ अशुभ है क्या ?
महात्मा कुछ क्षणों बाद बोले---- " नहीं राजन ! ऐसा कुछ नहीं है । जिसे खोजते-खोजते सारी उम्र बीत गई, वह प्रभु का भेजा संदेशवाहक अब मिला । करुणावतार आया तो सही पर मेरे लिए अब देरी हो गई । उनकी लीला देखने का सुयोग मुझे तो मिल ही नहीं सकेगा, बस यही सोचकर आँखें भर आईं । राजन ! आप धन्य हैं । ऐसी विभूतियाँ तो कभी-कभी हजारों-लाखों वर्षों बाद अवतरित होती हैं ।
गौतम बुद्ध ने अश्वलायन से जो धर्म-चक्र प्रवर्तन के महान कार्य में सहायHक बन गये थे कहा----
" जिस तरह दुष्कर्म का दण्ड भुगतने के लिए हर प्राणी प्रकृति का दास है, उसी तरह सत्कार्य के पारितोषिक का भी अधिकार हर प्राणी को है फिर वह चाहे किसी भी वर्ण का हो , न तो उपनयन धारण करने से कोई संत और सज्जन हो सकता है, न अग्निहोत्र से------ यदि मन स्वच्छ है, अंत:करण पवित्र है तो ही व्यक्ति संत, सज्जन, त्यागी, तपस्वी और उदार हो सकता है ।
यह उतराधिकार नहीं साधना है । आत्मोन्नति का अधिकार हर प्राणी को है । "
महात्मा कुछ क्षणों बाद बोले---- " नहीं राजन ! ऐसा कुछ नहीं है । जिसे खोजते-खोजते सारी उम्र बीत गई, वह प्रभु का भेजा संदेशवाहक अब मिला । करुणावतार आया तो सही पर मेरे लिए अब देरी हो गई । उनकी लीला देखने का सुयोग मुझे तो मिल ही नहीं सकेगा, बस यही सोचकर आँखें भर आईं । राजन ! आप धन्य हैं । ऐसी विभूतियाँ तो कभी-कभी हजारों-लाखों वर्षों बाद अवतरित होती हैं ।
गौतम बुद्ध ने अश्वलायन से जो धर्म-चक्र प्रवर्तन के महान कार्य में सहायHक बन गये थे कहा----
" जिस तरह दुष्कर्म का दण्ड भुगतने के लिए हर प्राणी प्रकृति का दास है, उसी तरह सत्कार्य के पारितोषिक का भी अधिकार हर प्राणी को है फिर वह चाहे किसी भी वर्ण का हो , न तो उपनयन धारण करने से कोई संत और सज्जन हो सकता है, न अग्निहोत्र से------ यदि मन स्वच्छ है, अंत:करण पवित्र है तो ही व्यक्ति संत, सज्जन, त्यागी, तपस्वी और उदार हो सकता है ।
यह उतराधिकार नहीं साधना है । आत्मोन्नति का अधिकार हर प्राणी को है । "
No comments:
Post a Comment