' जेल के भीतर योग साधना करने वाले श्री अरविन्द सच्चे अर्थों में युग-पुरुष थे । ' एक तरफ तो वे यूरोपीय भाषाओँ और वहां के साहित्य मे पारंगत थे, लैटिन, ग्रीक, अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन, इटालियन आदि कितनी ही भाषाओँ मे वे उंचे दर्जे की योग्यता रखते थे और दूसरी ओर भारतीय धर्म, दर्शन-शास्त्र तथा उनके विभिन्न अंगों के रहस्य के भी पूरे जानकार थे । इस अगाध योग्यता के बल पर ही वे आगे चलकर साधकों के लिए ' पूर्ण योग ' की साधन प्रणाली का अनुसन्धान कर सके । जिसका आश्रय लेकर भारत ही नहीं संसार के सभी देशों के अध्यात्म प्रेमी आत्मोन्नति के उच्च शिखर की तरफ अग्रसर हो रहे हैं ।
श्री अरविन्द के मतानुसार--- हमारा समस्त जीवन योग ही है | श्री अरविन्द के योग का लक्ष्य--- मानव चेतना को अधिकाधिक विकसित करना है, मानव-चेतना के स्वरुप को बदलना है ।
ज्ञान, कर्म और भक्ति इन तीनो का समन्वय करके मनुष्य अपनी सोई हुई शक्तियों को जगा सके और उसकी सहायता से आत्म-परिपूर्णता की ओर अग्रसर हो सके
उनका मत था कि स्वभाव और आन्तरिक वृति को बदलने के लिए उसके दबाने से काम नहीं चलता, बल्कि ज्ञान और सहानुभूति के साथ उसे मनाकर ठोस रास्ते पर लाना आवश्यक होता है । इसी प्रकार साधक के लिए यह आवश्यक है कि वह असीम धैर्य के साथ धीरे-धीरे मन को समझाता चला जाये जिससे उसका स्वभाव स्वयमेव बदलता जाये । मानव चेतना विकसित होगी और रूपांतरित हो कर उच्च स्तर को प्राप्त कर लेगी ।
श्री अरविन्द के मतानुसार--- हमारा समस्त जीवन योग ही है | श्री अरविन्द के योग का लक्ष्य--- मानव चेतना को अधिकाधिक विकसित करना है, मानव-चेतना के स्वरुप को बदलना है ।
ज्ञान, कर्म और भक्ति इन तीनो का समन्वय करके मनुष्य अपनी सोई हुई शक्तियों को जगा सके और उसकी सहायता से आत्म-परिपूर्णता की ओर अग्रसर हो सके
उनका मत था कि स्वभाव और आन्तरिक वृति को बदलने के लिए उसके दबाने से काम नहीं चलता, बल्कि ज्ञान और सहानुभूति के साथ उसे मनाकर ठोस रास्ते पर लाना आवश्यक होता है । इसी प्रकार साधक के लिए यह आवश्यक है कि वह असीम धैर्य के साथ धीरे-धीरे मन को समझाता चला जाये जिससे उसका स्वभाव स्वयमेव बदलता जाये । मानव चेतना विकसित होगी और रूपांतरित हो कर उच्च स्तर को प्राप्त कर लेगी ।
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