' जो अपने आवेगों, भावों और इच्छाओं को वश में रखता है, आत्म-विजय की कीर्ति का वही सच्चा अधिकारी है । '
आवेग और इच्छाएँ मन में पैदा होती हैं, फिर उनका प्रभाव और प्रतिक्रिया इन्द्रियों पर पड़ती है । इसलिए विपरीत परिस्थितियों से निरन्तर संघर्ष करने की मानसिक दक्षता होनी चाहिए ।
यूनान के विख्यात दार्शनिक ' पैरीक्लीज ' के पास एक दिन कोई क्रोधी व्यक्ति आया । वह पैरीक्लीज से किसी बात पर नाराज हो गया और वहीँ खड़ा होकर गालियाँ बकने लगा, पर पैरीक्लीज ने उसका जरा भी प्रतिवाद नही किया | क्रोधी व्यक्ति शाम तक गालियाँ देता रहा । अँधेरा हों गया तो घर की ओर चल पड़ा तो पैरीक्लीज ने अपने नौकर को लालटेन लेकर उसे घर तक पहुँचा आने के लिए भेज दिया | इस आंतरिक सहानुभूति से उस व्यक्ति का क्रोध पानी-पानी हो गया । आत्म-संयम मनुष्य को अनेक झगड़ों से बचाकर शक्ति का अपव्यय रोक देता है ।
आवेग और इच्छाएँ मन में पैदा होती हैं, फिर उनका प्रभाव और प्रतिक्रिया इन्द्रियों पर पड़ती है । इसलिए विपरीत परिस्थितियों से निरन्तर संघर्ष करने की मानसिक दक्षता होनी चाहिए ।
यूनान के विख्यात दार्शनिक ' पैरीक्लीज ' के पास एक दिन कोई क्रोधी व्यक्ति आया । वह पैरीक्लीज से किसी बात पर नाराज हो गया और वहीँ खड़ा होकर गालियाँ बकने लगा, पर पैरीक्लीज ने उसका जरा भी प्रतिवाद नही किया | क्रोधी व्यक्ति शाम तक गालियाँ देता रहा । अँधेरा हों गया तो घर की ओर चल पड़ा तो पैरीक्लीज ने अपने नौकर को लालटेन लेकर उसे घर तक पहुँचा आने के लिए भेज दिया | इस आंतरिक सहानुभूति से उस व्यक्ति का क्रोध पानी-पानी हो गया । आत्म-संयम मनुष्य को अनेक झगड़ों से बचाकर शक्ति का अपव्यय रोक देता है ।
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