अपनी धुन के धनी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रसिद्ध क्रांतिकारी तथा विश्व विख्यात कृषि-विशेषज्ञ के रूप में सम्मानित डॉ. पांडुरंगसदशिवखानखोजे का नाम भारत ही नहीं मेक्सिको, ईरान व स्पेन में भी स्मरणीय बना हुआ है । व्यक्ति किस प्रकार अपने व्यक्तिगत हितों को राष्ट्रीय व सामाजिक हितों के लिए विसर्जित कर सकता है उसका अनूठा उदाहरण थे डॉ. खानखोजे ।
विदेशों में रहकर उन्होंने भारत को आजादी दिलाने का भरसक प्रयास किया ।
उन्होंने क्रांतिकारी-गतिविधियों के संचालन के साथ कुछ सृजनात्मक कार्य भी किये----- मेक्सिको में उन्होंने कृषि-कार्य को व्यवसाय के रूप मे अपना लिया । कृषी-कार्य में अर्जित अपने अनुभवों से उन्होंने मेक्सिकोवासियों को बहुत लाभ पहुँचाया । मेक्सिको सरकार ने उनकी योग्यता व अनुभव को देखते हुए उन्हें कृषि-विभाग का निदेषक बनाया । उन्होने इस महत्वपूर्ण पद को पूरी जिम्मेदारी से निभाया जिससे वहां की पैदावार का प्रति एकड़ औसत काफी बढ़ गया । अपनी कृषि संबंधी इन सफ़लताओं से उन्हें मेक्सिको ही नहीं विश्व के अन्य देशों में भी प्रसिद्धि मिली । डॉ. खानखोजे ने स्पेनिश-भाषा में कृषि संबंधी 18 पुस्तकें लिखीं, जो स्पेन के विभिन्न विश्वविद्यालयों में कृषि-विज्ञान की श्रेष्ठतम पुस्तकों के रूप में सम्मानित होकर पाठ्यक्रम में सम्मिलित की गईं ।
मेक्सिको सरकार ने भी उनकी इस प्रतिभा का लाभ उठाया । 1955 में भारत सरकार ने उन्हें भारत आकर रहने का निमंत्रण दिया, वे मेक्सिको सरकार का उच्च सम्मानित पद व सम्मान छोड़कर देश-सेवा हेतु यंहा आये । उन्होंने भारत आकर शासकीय स्तर पर मध्य प्रदेश के कई दौरे करके कृषि सुधार संबंधी महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किये किन्तु प्रशासकीय ढर्रे की लालफीताशाही से उनके सुझाव फाइलों में ही बंद रह गये, उनकी प्रतिभा का लाभ हमारे देश को नहीं मिल सका ।
विदेशों में रहकर उन्होंने भारत को आजादी दिलाने का भरसक प्रयास किया ।
उन्होंने क्रांतिकारी-गतिविधियों के संचालन के साथ कुछ सृजनात्मक कार्य भी किये----- मेक्सिको में उन्होंने कृषि-कार्य को व्यवसाय के रूप मे अपना लिया । कृषी-कार्य में अर्जित अपने अनुभवों से उन्होंने मेक्सिकोवासियों को बहुत लाभ पहुँचाया । मेक्सिको सरकार ने उनकी योग्यता व अनुभव को देखते हुए उन्हें कृषि-विभाग का निदेषक बनाया । उन्होने इस महत्वपूर्ण पद को पूरी जिम्मेदारी से निभाया जिससे वहां की पैदावार का प्रति एकड़ औसत काफी बढ़ गया । अपनी कृषि संबंधी इन सफ़लताओं से उन्हें मेक्सिको ही नहीं विश्व के अन्य देशों में भी प्रसिद्धि मिली । डॉ. खानखोजे ने स्पेनिश-भाषा में कृषि संबंधी 18 पुस्तकें लिखीं, जो स्पेन के विभिन्न विश्वविद्यालयों में कृषि-विज्ञान की श्रेष्ठतम पुस्तकों के रूप में सम्मानित होकर पाठ्यक्रम में सम्मिलित की गईं ।
मेक्सिको सरकार ने भी उनकी इस प्रतिभा का लाभ उठाया । 1955 में भारत सरकार ने उन्हें भारत आकर रहने का निमंत्रण दिया, वे मेक्सिको सरकार का उच्च सम्मानित पद व सम्मान छोड़कर देश-सेवा हेतु यंहा आये । उन्होंने भारत आकर शासकीय स्तर पर मध्य प्रदेश के कई दौरे करके कृषि सुधार संबंधी महत्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किये किन्तु प्रशासकीय ढर्रे की लालफीताशाही से उनके सुझाव फाइलों में ही बंद रह गये, उनकी प्रतिभा का लाभ हमारे देश को नहीं मिल सका ।
No comments:
Post a Comment