' गिरि कन्दराओं में बैठा हुआ सन्यासी उतना धार्मिक तथा अध्यात्मवादी नहीं माना जा सकता जितना वह व्यक्ति जो जन-जन की पीड़ा को अपने सागर जैसे विशाल ह्रदय में स्थान देता है । '
डॉ थापकिन्स का जन्म 1871 में एक कृषक परिवार में हुआ था । 31 वर्ष की आयु में वे नोवास्काटिया के एन्टिगोनिश नगर में एक कालेज में प्राध्यापक पद पर नियुक्त हुए. । कुछ समय बाद उन्हें मिशन का उपाध्यक्ष बना दिया । इस परमार्थ परायण कार्य को उन्होंने पूरी सामर्थ्य से किया । नये-नये स्कूल , कालेज खोलने, सेवा-कार्य करने हेतु उन्होंने पूरे क्षेत्र का भ्रमण किया ।
उन्होंने देखा कि नोवास्काटिया प्रदेश के कृषकों, मछुओं और कोयला खान श्रमिकों की आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय है । वे जानते थे कि जिन्हें रोटी चाहिए, उनका उपदेशों से पेट नहीं भरा जा सकता । अत: उन्होंने सबसे पहले उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने की योजना बनाई ।
सर्वप्रथम उन्होंने यह जानने का प्रयास किया कि इस दीनता का कारण क्या है ?
उन्हें ज्ञात हुआ कि इस दारिद्र्य का कारण है मनुष्य का स्वार्थ ! धनी व्यापारी मछुओं व कृषकों को उनकी आवश्यकता का माल खरीदने के लिए थोड़ी-सी धन राशि देकर अपना कर्जदार बना लेते हैं तथा फिर उनका मनमाना शोषण करते हैं । कर्ज भार से दबे होने के कारण कृषकों को अपनी उपज और मछुओं को पकड़ी हुई मछलियां, व्यापारियों को मनमाने भाव पर देनी पड़ती थीं जो बहुत कम होता था । यही है------ उन मछुओं और कृषकों के भूख से जर्जर अस्थि-पंजर होने का कारण ।
इस स्थिति को देख वे बहुत दुःखी हुए, कैसी विडम्बना है-- वे मछुए व कृषक जो शताधिक मनुष्यों के लिए भोजन सामग्री जुटाते हैं, व्यापारियों द्वारा शोषण के कारण स्वयं भूखों मरने को विवश हैं । वे इन समस्याओं का निदान करना चाहते थे, किन्तु अकेले थे, क्या कर सकते थे ।
एक दिन उन्हें एक ऐसा अस्त्र मिल गया जो उन्हें अपने उद्देश्य में सफल बना सकता था, वह अस्त्र था--- ' विचारों का अस्त्र ' । उन्होंने लोगों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए उद्बोधन देना आरम्भ किया । उन्होंने अपनी योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए प्रभावशाली व तथ्यपूर्ण शब्दों में छोटी-छोटी विज्ञप्तियां तैयार की जिनमे मछुओं, किसानो व खनिकों की समस्या का समाधान था । वे इन्हें अपने झोले में रखे रहते तथा जिससे भी भेंट होती उसके हाथ में एक विज्ञप्ति थमा कर कहते---- इसे पढ़ें इसमें आपकी समस्या का समाधान है । वे लोगों को तर्क द्वारा समझाते, जब कोई मछुआ अपने माल को कम मूल्य पर बेच देता तो उससे पूछते--- ' तुमने उस काड को केवल डेढ़ सेंट में क्यों बेच दिया जबकि हेलिफेक्स में उसका मूल्य 30 सेंट है । तुम अमुक को इतने कम मूल्य में क्यों देते हो जबकि होटल में उसकी कीमत अधिक है |
वे जानते थे कि छोटे-छोटे आदमी मिलकर संगठन बना लें तो वह राक्षस को भी हरा सकते हैं । संगठन की जनशक्ति ही इन सब समस्याओं का समाधान कर सकती है । मछुओं को, किसानो व खनिज श्रमिकों को संगठित करने के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर दिया । उनकी आवाज को समर्थ व्यक्तियों तक पहुँचाने का काम भी फादर ने किया । ' जब मनुष्य अपनी छिपी सामर्थ्य कों, जन-समुदाय में छिपी शक्ति को पहचान लेता है तो फिर उसे कोई दीन-हीन दशा में पड़े रहने को बाध्य नहीं कर सकता । ' धड़ाधड़ सहकारी संस्थाएं खुलने लगीं, उन्होंने वस्तुओं को उचित मूल्य पर बेचने की कसम खा ली । जब व्यापारियों और फर्मों को अपना व्यूह टूटता दिखा तो उन्होंने अपने हथकण्डे अपनाये, सरकार ने भी उनका पक्ष लिया । थोड़े समय कड़ा संघर्ष हुआ । अंततः विजय जनता की हुई । नोवास्काटिया में समृद्धि का सूर्य चमकने लगा जिसे मंदी के बादल भी नहीं छिपा सके । फादर जेम्स थापकिन्स अपने इस ' एन्टिगोनिश ' आन्दोलन के कारण विश्वविख्यात हुए,
' अपनी सहायता आप करने की यह हिम्मत इन शोषित, पीड़ित और निर्धन वर्गों में जगाने का श्रेय उन्ही को जाता है ।
डॉ थापकिन्स का जन्म 1871 में एक कृषक परिवार में हुआ था । 31 वर्ष की आयु में वे नोवास्काटिया के एन्टिगोनिश नगर में एक कालेज में प्राध्यापक पद पर नियुक्त हुए. । कुछ समय बाद उन्हें मिशन का उपाध्यक्ष बना दिया । इस परमार्थ परायण कार्य को उन्होंने पूरी सामर्थ्य से किया । नये-नये स्कूल , कालेज खोलने, सेवा-कार्य करने हेतु उन्होंने पूरे क्षेत्र का भ्रमण किया ।
उन्होंने देखा कि नोवास्काटिया प्रदेश के कृषकों, मछुओं और कोयला खान श्रमिकों की आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय है । वे जानते थे कि जिन्हें रोटी चाहिए, उनका उपदेशों से पेट नहीं भरा जा सकता । अत: उन्होंने सबसे पहले उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने की योजना बनाई ।
सर्वप्रथम उन्होंने यह जानने का प्रयास किया कि इस दीनता का कारण क्या है ?
उन्हें ज्ञात हुआ कि इस दारिद्र्य का कारण है मनुष्य का स्वार्थ ! धनी व्यापारी मछुओं व कृषकों को उनकी आवश्यकता का माल खरीदने के लिए थोड़ी-सी धन राशि देकर अपना कर्जदार बना लेते हैं तथा फिर उनका मनमाना शोषण करते हैं । कर्ज भार से दबे होने के कारण कृषकों को अपनी उपज और मछुओं को पकड़ी हुई मछलियां, व्यापारियों को मनमाने भाव पर देनी पड़ती थीं जो बहुत कम होता था । यही है------ उन मछुओं और कृषकों के भूख से जर्जर अस्थि-पंजर होने का कारण ।
इस स्थिति को देख वे बहुत दुःखी हुए, कैसी विडम्बना है-- वे मछुए व कृषक जो शताधिक मनुष्यों के लिए भोजन सामग्री जुटाते हैं, व्यापारियों द्वारा शोषण के कारण स्वयं भूखों मरने को विवश हैं । वे इन समस्याओं का निदान करना चाहते थे, किन्तु अकेले थे, क्या कर सकते थे ।
एक दिन उन्हें एक ऐसा अस्त्र मिल गया जो उन्हें अपने उद्देश्य में सफल बना सकता था, वह अस्त्र था--- ' विचारों का अस्त्र ' । उन्होंने लोगों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए उद्बोधन देना आरम्भ किया । उन्होंने अपनी योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए प्रभावशाली व तथ्यपूर्ण शब्दों में छोटी-छोटी विज्ञप्तियां तैयार की जिनमे मछुओं, किसानो व खनिकों की समस्या का समाधान था । वे इन्हें अपने झोले में रखे रहते तथा जिससे भी भेंट होती उसके हाथ में एक विज्ञप्ति थमा कर कहते---- इसे पढ़ें इसमें आपकी समस्या का समाधान है । वे लोगों को तर्क द्वारा समझाते, जब कोई मछुआ अपने माल को कम मूल्य पर बेच देता तो उससे पूछते--- ' तुमने उस काड को केवल डेढ़ सेंट में क्यों बेच दिया जबकि हेलिफेक्स में उसका मूल्य 30 सेंट है । तुम अमुक को इतने कम मूल्य में क्यों देते हो जबकि होटल में उसकी कीमत अधिक है |
वे जानते थे कि छोटे-छोटे आदमी मिलकर संगठन बना लें तो वह राक्षस को भी हरा सकते हैं । संगठन की जनशक्ति ही इन सब समस्याओं का समाधान कर सकती है । मछुओं को, किसानो व खनिज श्रमिकों को संगठित करने के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर दिया । उनकी आवाज को समर्थ व्यक्तियों तक पहुँचाने का काम भी फादर ने किया । ' जब मनुष्य अपनी छिपी सामर्थ्य कों, जन-समुदाय में छिपी शक्ति को पहचान लेता है तो फिर उसे कोई दीन-हीन दशा में पड़े रहने को बाध्य नहीं कर सकता । ' धड़ाधड़ सहकारी संस्थाएं खुलने लगीं, उन्होंने वस्तुओं को उचित मूल्य पर बेचने की कसम खा ली । जब व्यापारियों और फर्मों को अपना व्यूह टूटता दिखा तो उन्होंने अपने हथकण्डे अपनाये, सरकार ने भी उनका पक्ष लिया । थोड़े समय कड़ा संघर्ष हुआ । अंततः विजय जनता की हुई । नोवास्काटिया में समृद्धि का सूर्य चमकने लगा जिसे मंदी के बादल भी नहीं छिपा सके । फादर जेम्स थापकिन्स अपने इस ' एन्टिगोनिश ' आन्दोलन के कारण विश्वविख्यात हुए,
' अपनी सहायता आप करने की यह हिम्मत इन शोषित, पीड़ित और निर्धन वर्गों में जगाने का श्रेय उन्ही को जाता है ।
No comments:
Post a Comment