' जो लोग कला साधना, कार्य व कर्तव्य के प्रति निष्ठावान तथा ईमानदार होते हैं, वे कला की कभी दुर्गति नहीं होने देते |' संगीत को व्यवसाय-पेशा न समझकर लोक्मंगल की साधना समझने वाले स्राविंसकी का जन्म रूस में हुआ था । जिन दिनों स्राविंसकी अमेरिका में रह रहे थे, हालीवुड के एक विख्यात फिल्म निर्माता ने उनसे कहा--- आप वर्ष में हमें तीन संगीत कृतियाँ दिया कीजिये , हम उसके बदले आपको पारिश्रमिक रूप में एक लाख डालर दिया करेंगे । '
स्राविंसकी ने कहा------ " श्रीमान ! मैं संगीत को कोई पेशा नहीं बना सकता, किसी भी अनुबंध से बंध जाने पर यह तो जरुरी ही होगा कि मुझे कम से कम उतनी संगीत रचनाएँ तो देनी पड़ें, इस अनुबन्ध के अनुसार मेरा ध्यान संख्या पूरी करने पर ही रहेगा न कि उसे उत्तम कृति बनाने की ओर l संगीत के नाम पर कूड़ा-कचरा देना औरों के लिए चाहे कुछ भी हो परन्तु कला के प्रति विश्वासघात है और इसके लिए मैं अपने आपको कभी तैयार नहीं कर सकूँगा ।
स्राविंसकी को एक-एक नई रचना के लिये बरसों समय लग जाता था । जब तक अपनी कृति से उन्हें संतोष नहीं हों जाता उसे वे कभी सार्वजनिक मंचों तक नहीं जाने देते । पूरे जीवन काल में उन्होंने साठ से अधिक रचनाएँ की हैं और वे सबकी सब लोकप्रिय हुई हैं । उन्होंने संगीत को कला के रूप में प्रतिष्ठित किया और संगीतकारों के सम्मुख अनुकरणीय आदर्श रखा कि संगीत-साधकों को अपनी साधना व्यावसायिक द्रष्टिकोण से परे रखकर कलात्मक द्रष्टिकोण से जारी रखना चाहिए, इसी प्रकार वे अपने कलाकार को जीवित और जाग्रत रख सकते हैं ।
स्राविंसकी ने कहा------ " श्रीमान ! मैं संगीत को कोई पेशा नहीं बना सकता, किसी भी अनुबंध से बंध जाने पर यह तो जरुरी ही होगा कि मुझे कम से कम उतनी संगीत रचनाएँ तो देनी पड़ें, इस अनुबन्ध के अनुसार मेरा ध्यान संख्या पूरी करने पर ही रहेगा न कि उसे उत्तम कृति बनाने की ओर l संगीत के नाम पर कूड़ा-कचरा देना औरों के लिए चाहे कुछ भी हो परन्तु कला के प्रति विश्वासघात है और इसके लिए मैं अपने आपको कभी तैयार नहीं कर सकूँगा ।
स्राविंसकी को एक-एक नई रचना के लिये बरसों समय लग जाता था । जब तक अपनी कृति से उन्हें संतोष नहीं हों जाता उसे वे कभी सार्वजनिक मंचों तक नहीं जाने देते । पूरे जीवन काल में उन्होंने साठ से अधिक रचनाएँ की हैं और वे सबकी सब लोकप्रिय हुई हैं । उन्होंने संगीत को कला के रूप में प्रतिष्ठित किया और संगीतकारों के सम्मुख अनुकरणीय आदर्श रखा कि संगीत-साधकों को अपनी साधना व्यावसायिक द्रष्टिकोण से परे रखकर कलात्मक द्रष्टिकोण से जारी रखना चाहिए, इसी प्रकार वे अपने कलाकार को जीवित और जाग्रत रख सकते हैं ।
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