'स्वामी जी ने साधु पद के महान उत्तरदायित्व को समझा । यह जीवन अकर्मण्य बनकर, समाज पर भाररूप बनकर पूजा-पाठ करने के लिए ही नहीं अपनाया जाता है । वरन इसकी एक महान जिम्मेदारी है, जो सामान्य व्यक्तियों से कहीं अधिक सेवा करने के लिए उत्तरदायित्व का बोध कराती है । '
घटना 1932 की है, राजस्थान के गंगानगर जिले में एक स्थान है--- संगरिया, वहां के निवासियों में तब शिक्षा के प्रति कोई रूचि नहीं थी । क्षेत्र के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए एक भूतपूर्व सैनिक ने वहां एक स्कूल खुलवाया किन्तु लोगों में शिक्षा रूचि का विकास संतोषजनक रूप से न हो सका और स्कूल की व्यवस्था धीर-धीरे डगमगाने लगी । क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने एक मीटिंग बुलाई और बताया कि अर्थाभाव के कारण विद्दालय बंद करना पड़ रहा है ।
उस मीटिंग में उस इलाके के एक साधु भी थे, उनका व्यक्तित्व इतना तेजस्वी था कि लोग उन्हें ऋषि महर्षि की तरह पूजते थे । उनके पास साधन भी कुछ नहीं थे, रहने को एक कुटिया भर थी । उन स्वामी जी ने जब देखा कि मीटिंग इस निर्णय पर पहुँच रही है कि विद्दालय बंद कर दिया जाये तो उन्होंने उठकर कहा---- विद्दालय इसलिए नहीं खोले जाते कि उन्हें बन्द करना पड़े । उन्होंने उस विद्दालय की जिम्मेदारी ग्रहण की । उन्होंने दिन-रात परिश्रम किया । लोकश्रद्धा को सहयोग की दिशा दी और विद्दालय स्वामी जी के परिश्रम और जन-सहयोग से चल पड़ा । वे साधु थे------ स्वामी केशवानन्द, जिन्होने कितने ही व्यक्तियों को ज्ञान का प्रकश दिया ।
वह मिडिल स्कूल कुछ ही वर्षों में महाविद्दालय हो गया । इतना ही नहीं उस क्षेत्र मे चार महाविद्दालय, दो उच्च माध्यमिक विद्दालय और एक बुनियादी प्रशिक्षण विद्दालय खुल गया । जन-सहयोग से स्वामी जी ने रियासत भर में तीन सौ प्राथमिक शालाएं भी खुलवायीं । संगरिया में मिडिल स्कूल के स्थान पर अब ' ग्रामोत्थान विद्दापीठ ' स्थापित है ।
मात्र किताबी ज्ञान को महत्व देने वाली संस्थाएं ही उन्होंने खड़ी नहीं कीं वरन जीविका-उपार्जन और उद्दोग शिल्पों का प्रशिक्षण देने वाली संस्थाएं भी उन्होंने खोली ।
घटना 1932 की है, राजस्थान के गंगानगर जिले में एक स्थान है--- संगरिया, वहां के निवासियों में तब शिक्षा के प्रति कोई रूचि नहीं थी । क्षेत्र के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए एक भूतपूर्व सैनिक ने वहां एक स्कूल खुलवाया किन्तु लोगों में शिक्षा रूचि का विकास संतोषजनक रूप से न हो सका और स्कूल की व्यवस्था धीर-धीरे डगमगाने लगी । क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने एक मीटिंग बुलाई और बताया कि अर्थाभाव के कारण विद्दालय बंद करना पड़ रहा है ।
उस मीटिंग में उस इलाके के एक साधु भी थे, उनका व्यक्तित्व इतना तेजस्वी था कि लोग उन्हें ऋषि महर्षि की तरह पूजते थे । उनके पास साधन भी कुछ नहीं थे, रहने को एक कुटिया भर थी । उन स्वामी जी ने जब देखा कि मीटिंग इस निर्णय पर पहुँच रही है कि विद्दालय बंद कर दिया जाये तो उन्होंने उठकर कहा---- विद्दालय इसलिए नहीं खोले जाते कि उन्हें बन्द करना पड़े । उन्होंने उस विद्दालय की जिम्मेदारी ग्रहण की । उन्होंने दिन-रात परिश्रम किया । लोकश्रद्धा को सहयोग की दिशा दी और विद्दालय स्वामी जी के परिश्रम और जन-सहयोग से चल पड़ा । वे साधु थे------ स्वामी केशवानन्द, जिन्होने कितने ही व्यक्तियों को ज्ञान का प्रकश दिया ।
वह मिडिल स्कूल कुछ ही वर्षों में महाविद्दालय हो गया । इतना ही नहीं उस क्षेत्र मे चार महाविद्दालय, दो उच्च माध्यमिक विद्दालय और एक बुनियादी प्रशिक्षण विद्दालय खुल गया । जन-सहयोग से स्वामी जी ने रियासत भर में तीन सौ प्राथमिक शालाएं भी खुलवायीं । संगरिया में मिडिल स्कूल के स्थान पर अब ' ग्रामोत्थान विद्दापीठ ' स्थापित है ।
मात्र किताबी ज्ञान को महत्व देने वाली संस्थाएं ही उन्होंने खड़ी नहीं कीं वरन जीविका-उपार्जन और उद्दोग शिल्पों का प्रशिक्षण देने वाली संस्थाएं भी उन्होंने खोली ।
No comments:
Post a Comment