विश्वविख्यात दार्शनिक पैथागोरस ने चेतावनी देते हुए कहा है ------ " ऐ मौत के फंदे में उलझे हुए इनसान ! अपनी तश्तरियों को मांस से सजाने के लिए जीवों की हत्या करना छोड़ दे । जो व्यक्ति भोले-भाले प्राणियों की गरदन पर छुरी चलाता है, जो अपने हाथों पाले हुए पशु-पक्षियों की हत्या करके अपनी मौज मनाता है, उसे अत्यंत तुच्छ स्तर का व्यक्ति समझना चाहिए , जो पशुओं का मांस खा सकता है, वह किसी दिन मनुष्यों का भी खून पी सकता है । "
अनुसंधानकर्ता मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य जिन पशुओं का मांस खाता है, उसके पाशविक दोष मनुष्य में भी आ जाते हैं ।
मांस भक्षण से काम, क्रोध, आलस्य, प्रमाद, जड़ता, क्रूरता आदि तामसिक अवगुणों की वृद्धि होती है मांस खाने से खूंखारपन और क्रूरता की प्रवृति बढ़ती है ।
इसके विपरीत शाकाहार से स्फूर्ति, पवित्रता, प्रसन्नता, शक्ति तथा दीर्घ आयु प्राप्त होती है, मन और बुद्धि शुद्ध होते हैं , आत्मा में सुख और शान्ति आती है ।
' डाइट एंड फूड ' नामक अपनी प्रसिद्ध कृति मे वैज्ञानिक मनीषी डॉक्टर हेग ने लिखा है ---- " शाकाहार से शक्ति उत्पन्न होती है और मांस खाने से उत्तेजना बढ़ती है । "
यही कारण है कि समस्त धर्मग्रंथों ने एकस्वर से मांसाहार का निषेध किया है और इस बुराई पर अड़े रहने वालों को कटु शब्दों में धिक्कारा है । हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अतिरिक्त बाइबिल, कुरान आदि सभी धर्मग्रन्थों ने मांसाहार को हेय ठहराया है और निरीह प्राणियों की हत्या को घोर दण्डनीय अपराध कहा है । बौद्ध और जैन धर्म में तो पग-पग पर अहिंसा का प्रतिपादन किया गया है । ऋषि-मनीषियों ने तन, मन और आत्मा को विकाररहित रखने और अपना कल्याण चाहने वाले व्यक्तियों को अपना आहार सात्विक रखने के लिए कहा है ।
अनुसंधानकर्ता मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य जिन पशुओं का मांस खाता है, उसके पाशविक दोष मनुष्य में भी आ जाते हैं ।
मांस भक्षण से काम, क्रोध, आलस्य, प्रमाद, जड़ता, क्रूरता आदि तामसिक अवगुणों की वृद्धि होती है मांस खाने से खूंखारपन और क्रूरता की प्रवृति बढ़ती है ।
इसके विपरीत शाकाहार से स्फूर्ति, पवित्रता, प्रसन्नता, शक्ति तथा दीर्घ आयु प्राप्त होती है, मन और बुद्धि शुद्ध होते हैं , आत्मा में सुख और शान्ति आती है ।
' डाइट एंड फूड ' नामक अपनी प्रसिद्ध कृति मे वैज्ञानिक मनीषी डॉक्टर हेग ने लिखा है ---- " शाकाहार से शक्ति उत्पन्न होती है और मांस खाने से उत्तेजना बढ़ती है । "
यही कारण है कि समस्त धर्मग्रंथों ने एकस्वर से मांसाहार का निषेध किया है और इस बुराई पर अड़े रहने वालों को कटु शब्दों में धिक्कारा है । हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अतिरिक्त बाइबिल, कुरान आदि सभी धर्मग्रन्थों ने मांसाहार को हेय ठहराया है और निरीह प्राणियों की हत्या को घोर दण्डनीय अपराध कहा है । बौद्ध और जैन धर्म में तो पग-पग पर अहिंसा का प्रतिपादन किया गया है । ऋषि-मनीषियों ने तन, मन और आत्मा को विकाररहित रखने और अपना कल्याण चाहने वाले व्यक्तियों को अपना आहार सात्विक रखने के लिए कहा है ।
No comments:
Post a Comment