' डॉ. राम मनोहर लोहिया का जीवन एक ऐसे आदमी की कहानी है जो देशवासियों का अपना आदमी था । उन्ही क दर्द में तड़पा, उन्ही के दर्द को लेकर जिया । '
महात्मा गांधी के बाद वही एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने अपने लिए कोई निजी सम्पति एकत्र नही की , लोहिया जी को भारत में समाजवाद के सिद्धांतों को लाने वाले शख्सियत के रूप में याद किया जाता है ।
जर्मनी से डाक्टरेट करके लोहिया जी भारत लौट रहे थे, उनके पास पुस्तकों का अपूर्व संग्रह था । मद्रास बन्दरगाह पर उतरे तो जेब में एक भी पैसा नहीं था । वे जहाज से उतरकर सीधे ' हिन्दू ' पत्र के कार्यालय पहुंचे और सह-सम्पादक से बोले--- " मैं जर्मनी से आ रहा हूँ, आपको दो लेख देना चाहता हूँ । " सह-सम्पादक ने पूछा- " कहां हैं लेख दिखाइए ? "
लोहिया बोले ----- " कागज-कलम दीजिये अभी लिख देता हूँ । मेरे पास कलकत्ता जाने के लिए पैसे नहीं हैं इसलिए आपको कष्ट दे रहा हूँ । " कागज कलम लेकर कुछ ही घन्टे मे दो लेख लिखकर लोहिया जी ने उनके हाथ में थमा दिए । लेख देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया, उन्हें पारिश्रमिक दिया और जीवन भर के लिए उनका मित्र बन गया ।
उनके ह्रदय में भारतीय प्रजा की पीड़ा थी । वह पीड़ा इतनी सघन थी कि उनकी वाणी और लेखनी में इस प्रकार उभरती थी कि उसे जो भी सुनता देश-प्रेम की वेदी पर बलिदान होने को प्रस्तुत हो जाता
उनके भाषणों को आपतिजनक घोषित करके उन्हें कई बार जेल में रखा गया । 'असहयोग आन्दोलन के समय अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंककर उन्होंने देश भक्तों को करो या मरो की प्रेरणा दी, उन्हें पकड़ने के लिए सरकार ने बड़े इनाम रखे, उन्हें लाहौर जेल में रखा गया और इतनी शारीरिक व मानसिक यंत्रणा दी गईं जिनका वर्णन कठिन है ।
भारत में पहली बार परराष्ट्र विभाग और परराष्ट्र नीति लाने का श्रेय लोहिया जी को है । उनके द्वारा प्रकाशित परिपत्र अनेक देशों में जाते थे ।
लाहौर से रिहा होने के बाद वे गोवा को मुक्त कराने के लिए पंजिम पहुंचे । गोवा की आजादी के लिए लड़ने वाले वे एकमात्र राष्ट्रीय नेता थे, इसलिए गोवा के लोग इन्हें पौराणिक नायक मानते हैं ।
गोवा के लोकगीतों में लोहिया जी को वही सम्मान प्राप्त है, जो देवताओं को प्राप्त होता है । उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं--- उन्होंने कहा था कि देश की पूंजी और देश की तकनीकी से जो विकास होगा, वही सर्वग्राही होगा, अन्यथा जो आर्थिक नीति अपनाई जा रही है उससे आर्थिक विषमता और बेरोजगारी बढ़ेगी ।
डॉ. अम्बेडकर इनके बारे में कहते थे कि जो लोहिया जी को नहीं जनता, वह राजनीति नहीं कर सकता । लोहिया जी के व्यक्तित्व में सादगी, कार्यनिष्ठा, निष्काम सेवा, आत्मसम्मान, देशभक्ति और दूरदर्शिता जैसे अनेक गुण विद्दमान थे, उन्हें जीवन में कई अभिनव प्रयोगों और मौलिक अवधारणाओं के कारण दुनिया के शीर्ष विचारकों में अग्रणी माना जाता है ।
महात्मा गांधी के बाद वही एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने अपने लिए कोई निजी सम्पति एकत्र नही की , लोहिया जी को भारत में समाजवाद के सिद्धांतों को लाने वाले शख्सियत के रूप में याद किया जाता है ।
जर्मनी से डाक्टरेट करके लोहिया जी भारत लौट रहे थे, उनके पास पुस्तकों का अपूर्व संग्रह था । मद्रास बन्दरगाह पर उतरे तो जेब में एक भी पैसा नहीं था । वे जहाज से उतरकर सीधे ' हिन्दू ' पत्र के कार्यालय पहुंचे और सह-सम्पादक से बोले--- " मैं जर्मनी से आ रहा हूँ, आपको दो लेख देना चाहता हूँ । " सह-सम्पादक ने पूछा- " कहां हैं लेख दिखाइए ? "
लोहिया बोले ----- " कागज-कलम दीजिये अभी लिख देता हूँ । मेरे पास कलकत्ता जाने के लिए पैसे नहीं हैं इसलिए आपको कष्ट दे रहा हूँ । " कागज कलम लेकर कुछ ही घन्टे मे दो लेख लिखकर लोहिया जी ने उनके हाथ में थमा दिए । लेख देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया, उन्हें पारिश्रमिक दिया और जीवन भर के लिए उनका मित्र बन गया ।
उनके ह्रदय में भारतीय प्रजा की पीड़ा थी । वह पीड़ा इतनी सघन थी कि उनकी वाणी और लेखनी में इस प्रकार उभरती थी कि उसे जो भी सुनता देश-प्रेम की वेदी पर बलिदान होने को प्रस्तुत हो जाता
उनके भाषणों को आपतिजनक घोषित करके उन्हें कई बार जेल में रखा गया । 'असहयोग आन्दोलन के समय अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंककर उन्होंने देश भक्तों को करो या मरो की प्रेरणा दी, उन्हें पकड़ने के लिए सरकार ने बड़े इनाम रखे, उन्हें लाहौर जेल में रखा गया और इतनी शारीरिक व मानसिक यंत्रणा दी गईं जिनका वर्णन कठिन है ।
भारत में पहली बार परराष्ट्र विभाग और परराष्ट्र नीति लाने का श्रेय लोहिया जी को है । उनके द्वारा प्रकाशित परिपत्र अनेक देशों में जाते थे ।
लाहौर से रिहा होने के बाद वे गोवा को मुक्त कराने के लिए पंजिम पहुंचे । गोवा की आजादी के लिए लड़ने वाले वे एकमात्र राष्ट्रीय नेता थे, इसलिए गोवा के लोग इन्हें पौराणिक नायक मानते हैं ।
गोवा के लोकगीतों में लोहिया जी को वही सम्मान प्राप्त है, जो देवताओं को प्राप्त होता है । उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं--- उन्होंने कहा था कि देश की पूंजी और देश की तकनीकी से जो विकास होगा, वही सर्वग्राही होगा, अन्यथा जो आर्थिक नीति अपनाई जा रही है उससे आर्थिक विषमता और बेरोजगारी बढ़ेगी ।
डॉ. अम्बेडकर इनके बारे में कहते थे कि जो लोहिया जी को नहीं जनता, वह राजनीति नहीं कर सकता । लोहिया जी के व्यक्तित्व में सादगी, कार्यनिष्ठा, निष्काम सेवा, आत्मसम्मान, देशभक्ति और दूरदर्शिता जैसे अनेक गुण विद्दमान थे, उन्हें जीवन में कई अभिनव प्रयोगों और मौलिक अवधारणाओं के कारण दुनिया के शीर्ष विचारकों में अग्रणी माना जाता है ।
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