प्रेमचन्द उपन्यास-सम्राट के रूप में भारत में ही नहीं अन्य देशों में भी विख्यात हैं । उनके उपन्यासों में, कहानियों में जो सहज पात्र, जो स्वाभाविक घटनाक्रम, जो आदर्शोन्मुख-यथार्थ और भारतीय जन-जीवन का सजीव चित्रांकन हुआ है वह बहुत कुछ उनकी माता की ही देन था ।
उनकी माँ बहुत प्रखर बुद्धि थीं और कई भाषाएँ जानती थीं । पढ़ तो वे सब लेती थीं लेकिन एक भी अक्षर लिख नहीं सकती थीं । उनके किस्से, उनकी कहानियां इतनी लम्बी होती थीं कि सुनाते-सुनाते खत्म ही नहीं होने को आती और यह क्रम लगभग पन्द्रह दिन तक जारी रहता था । श्रोता सहज में जिज्ञासु हो चुपचाप सुना करता था । उनके कथा-कौशल ने प्रेमचन्द को बहुत कुछ दिया । अपनी माँ से प्रेरणा लेकर ही उन्हें आज उपन्यास - सम्राट होने का गौरव प्राप्त हुआ ।
उनकी पहली कहानी ----- ' संसार का सबसे अनमोल रत्न ' 1907 में ' जमाना ' में छपी थी ।
वे केवल लेखक ही नहीं समाज-सुधारक भी थे । उन दिनों भारत में बाल-विवाह होते थे, वर की आयु अधिक होने से लड़की को वैधव्य का नर्क भोगना पड़ता था । प्रेमचन्द जी ने अपने जीवन में कई विधवाओं को सुखी दाम्पत्य और गृहस्थ जीवन की ओर अग्रसर किया ।
उनकी माँ बहुत प्रखर बुद्धि थीं और कई भाषाएँ जानती थीं । पढ़ तो वे सब लेती थीं लेकिन एक भी अक्षर लिख नहीं सकती थीं । उनके किस्से, उनकी कहानियां इतनी लम्बी होती थीं कि सुनाते-सुनाते खत्म ही नहीं होने को आती और यह क्रम लगभग पन्द्रह दिन तक जारी रहता था । श्रोता सहज में जिज्ञासु हो चुपचाप सुना करता था । उनके कथा-कौशल ने प्रेमचन्द को बहुत कुछ दिया । अपनी माँ से प्रेरणा लेकर ही उन्हें आज उपन्यास - सम्राट होने का गौरव प्राप्त हुआ ।
उनकी पहली कहानी ----- ' संसार का सबसे अनमोल रत्न ' 1907 में ' जमाना ' में छपी थी ।
वे केवल लेखक ही नहीं समाज-सुधारक भी थे । उन दिनों भारत में बाल-विवाह होते थे, वर की आयु अधिक होने से लड़की को वैधव्य का नर्क भोगना पड़ता था । प्रेमचन्द जी ने अपने जीवन में कई विधवाओं को सुखी दाम्पत्य और गृहस्थ जीवन की ओर अग्रसर किया ।
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