श्री विश्वेश्वरैया में अति परिश्रम के साथ, समय पालन का अदभुत गुण था । समय का मूल्य इनकी द्रष्टि में संसार की सारी संपदाओं से अधिक था । उनका कहना था कि जो व्यक्ति अपना एक मिनट भी खराब करता है, वह एक प्राणी की हिंसा करने के समान पाप करता है ।
आपका जन्म 15 सितम्बर 1861 को हुआ था । इन्जीनियर की परीक्षा पास कर 2३ वर्ष की आयु में ही उनको सहायक इंजीनियर की नौकरी मिल गई ।
सच्चाई और इमानदारी से अपना कर्तव्य पालन करते हुए उन्होंने देश के विकास व उत्थान के अनेक कार्य किये । महात्मा गां धी ने मैसूर की एक सार्वजनिक सभा में कहा था -----
" कृष्णराज सागर, जो संसार के प्रमुख जलाशयों ( बाँधों ) में से एक है, अकेला ही श्री विश्वेश्वरैया की कीर्ति बढ़ाने के लिए काफी है ।"
कृष्णराज सागर योजना से कोलार की सोने की खानों को अधिक बिजली मिलने लगी, बंगलौर तथा मैसूर राज्य में कृषि व उद्दोगों का बहुत विकास हुआ , एक लाख एकड़ से अधिक भूमि में सिंचाई का विस्तार हुआ ।
कावेरी की बांयी ओर वाली नहर को एक पहाड़ी में पौने-दो मील लम्बी एक सुरंग बनाकर, उसमे से गुजारा गया है । सिंचाई नहर की ये सुरंग भारत भर में सबसे लम्बी है ।
पूना नगर और उसके पास बहने वाली नहर मे जिस झील का पानी आता था, उसका बांध पुराने ढंग का था, उसमे से प्रतिवर्ष बहुत सा पानी निकलकर बरबाद हो जाता था । इसे ठीक करने का कार्य श्री विश्वेश्वरैया को दिया गया । उन्होंने बहुत सोच-विचारकर स्वचालित फाटकों की एक योजना बनाई, बांध में कई ऐसे फाटक लगाये गये जो पानी के ऊपर चढ़ने पर उस आठ फुट की ऊंचाई तक रोके रहते थे । जब पानी इससे भी अधिक चढ़ता था तो स्वमेव खुलकर फालतू पानी को निकाल देते और फिर अपने आप बंद हो जाते । इस उपाय से झील मे पानी का परिमाण 25 प्रतिशत बढ़ गया और पूना के नागरिकों को पर्याप्त जल उपलब्ध होने लगा ।
आरंभ में यूरोप के इंजीनियरों को यह विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई भारतीय इंजीनियर ऐसा आविष्कार कर सकता है । जब यह फाटक संतोषजनक रूप से कार्य करने लगे तत्पश्चात ग्वालियर
और मैसूर के बांधों में भी लगाये गए, तब उनको विवश होकर भारतीय मस्तिष्क की श्रेष्ठता स्वीकार करनी पड़ी ।
मैसूर के चीफ इंजीनियर के पद पर रहते हुए उन्होंने इतने जनहितकारी कार्य किए कि उन्हें नये मैसूर का निर्माता समझा जाने लगा । उन्हें ' भारत-रत्न ' से सम्मानित किया गया । उनका जन्म दिवस ' इंजीनियर दिवस ' के रूप में मनाया जाता है ।
आपका जन्म 15 सितम्बर 1861 को हुआ था । इन्जीनियर की परीक्षा पास कर 2३ वर्ष की आयु में ही उनको सहायक इंजीनियर की नौकरी मिल गई ।
सच्चाई और इमानदारी से अपना कर्तव्य पालन करते हुए उन्होंने देश के विकास व उत्थान के अनेक कार्य किये । महात्मा गां धी ने मैसूर की एक सार्वजनिक सभा में कहा था -----
" कृष्णराज सागर, जो संसार के प्रमुख जलाशयों ( बाँधों ) में से एक है, अकेला ही श्री विश्वेश्वरैया की कीर्ति बढ़ाने के लिए काफी है ।"
कृष्णराज सागर योजना से कोलार की सोने की खानों को अधिक बिजली मिलने लगी, बंगलौर तथा मैसूर राज्य में कृषि व उद्दोगों का बहुत विकास हुआ , एक लाख एकड़ से अधिक भूमि में सिंचाई का विस्तार हुआ ।
कावेरी की बांयी ओर वाली नहर को एक पहाड़ी में पौने-दो मील लम्बी एक सुरंग बनाकर, उसमे से गुजारा गया है । सिंचाई नहर की ये सुरंग भारत भर में सबसे लम्बी है ।
पूना नगर और उसके पास बहने वाली नहर मे जिस झील का पानी आता था, उसका बांध पुराने ढंग का था, उसमे से प्रतिवर्ष बहुत सा पानी निकलकर बरबाद हो जाता था । इसे ठीक करने का कार्य श्री विश्वेश्वरैया को दिया गया । उन्होंने बहुत सोच-विचारकर स्वचालित फाटकों की एक योजना बनाई, बांध में कई ऐसे फाटक लगाये गये जो पानी के ऊपर चढ़ने पर उस आठ फुट की ऊंचाई तक रोके रहते थे । जब पानी इससे भी अधिक चढ़ता था तो स्वमेव खुलकर फालतू पानी को निकाल देते और फिर अपने आप बंद हो जाते । इस उपाय से झील मे पानी का परिमाण 25 प्रतिशत बढ़ गया और पूना के नागरिकों को पर्याप्त जल उपलब्ध होने लगा ।
आरंभ में यूरोप के इंजीनियरों को यह विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई भारतीय इंजीनियर ऐसा आविष्कार कर सकता है । जब यह फाटक संतोषजनक रूप से कार्य करने लगे तत्पश्चात ग्वालियर
और मैसूर के बांधों में भी लगाये गए, तब उनको विवश होकर भारतीय मस्तिष्क की श्रेष्ठता स्वीकार करनी पड़ी ।
मैसूर के चीफ इंजीनियर के पद पर रहते हुए उन्होंने इतने जनहितकारी कार्य किए कि उन्हें नये मैसूर का निर्माता समझा जाने लगा । उन्हें ' भारत-रत्न ' से सम्मानित किया गया । उनका जन्म दिवस ' इंजीनियर दिवस ' के रूप में मनाया जाता है ।
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