श्री विश्वेश्वरैया ने विश्व के कई देशों की यात्राएँ की । संसार भर में उनको दो देशों ने सर्वाधिक प्रभावित किया---- एक जापान और दूसरा अमेरिका | वहां से लौटकर अपने देशवासियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा ----- " यदि आप एक अच्छे राष्ट्र की नींव रखना चाह्ते हैं तो उसके नागरिकों को उत्तम बनाइये । एक सफल राष्ट्र वह होता है जिसके नागरिकों की बहुसंख्या कुशल, चरित्रवान और अपने कर्तव्य को समझने वाली हो । । उनने कहा ---- ' व्यापार की नींव साख होती है, यह साख विश्वास पर निर्भर है और विश्वास चरित्र के सहारे खड़ा होता है । "
उन्होंने जापान का उदाहरण देते हुए कहा ------ " जापान के ' टोकियो विश्वविद्दालय ' में के अन्यशिक्षा-सिद्धांतों में जो सुधार किये गये, वे इस प्रकार वर्णित हैं ---- नैतिक चरित्र का विकास, देशभक्ति व स्वामीभक्ति की भावना का विकास, अमली धन्धों के संबंध में आवश्यक ज्ञान की प्राप्ति । अनुशासन का पाठ पढ़ाने के लिये कई स्कूलों में फौजी कवायद सिखाई जाती थी । बच्चों को सदा प्रसन्नचित रखा जाता था और उन्हें नैतिकता, देशभक्ति, राजभक्ति तथा मानव-संबंधों की शिक्षा दी जाती थी । " जापान में विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर कठोर परिश्रम करते थे और उनका जीवन बड़ा सादा होता था ।
श्री विश्वेश्वरैया जी का मत था ----- " राष्ट्रीय चरित्र के विकास की नीति सरकार की दीर्घकालीन नीतियों में होनी चाहिए । जो भारतीय यह चाहते हैं कि भारत का, संसार के अन्य राष्ट्रों में अपनी कुशलता और उच्च राष्ट्रीय चरित्र के लिए नाम हो, उन्हें उचित है कि वे इस नीति को पूरा प्रोत्साहन दें । "
चरित्र और कुशलता से ही उच्च कार्यक्षमता, सुखमय जीवन और दीर्घायु प्राप्त होती है ।
उन्होंने जापान का उदाहरण देते हुए कहा ------ " जापान के ' टोकियो विश्वविद्दालय ' में के अन्यशिक्षा-सिद्धांतों में जो सुधार किये गये, वे इस प्रकार वर्णित हैं ---- नैतिक चरित्र का विकास, देशभक्ति व स्वामीभक्ति की भावना का विकास, अमली धन्धों के संबंध में आवश्यक ज्ञान की प्राप्ति । अनुशासन का पाठ पढ़ाने के लिये कई स्कूलों में फौजी कवायद सिखाई जाती थी । बच्चों को सदा प्रसन्नचित रखा जाता था और उन्हें नैतिकता, देशभक्ति, राजभक्ति तथा मानव-संबंधों की शिक्षा दी जाती थी । " जापान में विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर कठोर परिश्रम करते थे और उनका जीवन बड़ा सादा होता था ।
श्री विश्वेश्वरैया जी का मत था ----- " राष्ट्रीय चरित्र के विकास की नीति सरकार की दीर्घकालीन नीतियों में होनी चाहिए । जो भारतीय यह चाहते हैं कि भारत का, संसार के अन्य राष्ट्रों में अपनी कुशलता और उच्च राष्ट्रीय चरित्र के लिए नाम हो, उन्हें उचित है कि वे इस नीति को पूरा प्रोत्साहन दें । "
चरित्र और कुशलता से ही उच्च कार्यक्षमता, सुखमय जीवन और दीर्घायु प्राप्त होती है ।
शुभ प्रभात मित्र
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