' भारतवर्ष में अभी तक दूध, दही, घी को आहार सामग्री का सर्वोत्तम अंग माना जाता है अत: जो लोग उत्तम और उपयोगी दूध देने वाले पशुओं के विनाश का कारण बनते हैं, वे नि:सन्देह समाज के बहुत बड़े अनीति कर्ता माने जाने चाहिए । '
'स्वामीजी का कहना था कि अहिंसा की द्रष्टि से तो सभी पशु सुरक्षा के अधिकारी हैं, किसी भी निरीह पशु कों बिना कारण मारना एक पापकर्म माना जायेगा पर गाय और भैंस जैसे सर्वोपयोगी पशुओं की हत्या तो पाप ही नहीं समाज का भी अनहित करना है ।
स्वामीजी ने ' गौ-करुणानिधि ' नामक पुस्तक में इस तथ्य का विस्तार से विवेचन किया है कि राजा-प्रजा की जितनी हानि गोहत्या से होती है उतनी किसी भी दूसरे कर्म से नहीं होती है । एक गाय के वध से चार लाख और एक भैंस के वध से बीस सहस्त्र मनुष्यों की हानि होती है ।
उनका मत था कि वास्तविक गौरक्षा तो यह है कि अधिकाधिक दूध देने वाली गायों और खेती का कार्य उत्तम रीति से कर सकने योग्य बैलों की संख्या में यथा शक्ति वृद्धि की जाये क्योंकि भारतवासियों के जीवन का आधार अन्न और दूध ये दो ही पदार्थ हैं ।
'जिससे अधिकांश मनुष्यों का अधिक उपकार हो उसका नाश कभी नहीं करना चाहिए । '
स्वामीजी के उपदेशों से प्रभावित होकर कई मुसलमानों ओर ईसाइयों ने गोमांस के त्याग की प्रतिज्ञा कर ली ।
'स्वामीजी का कहना था कि अहिंसा की द्रष्टि से तो सभी पशु सुरक्षा के अधिकारी हैं, किसी भी निरीह पशु कों बिना कारण मारना एक पापकर्म माना जायेगा पर गाय और भैंस जैसे सर्वोपयोगी पशुओं की हत्या तो पाप ही नहीं समाज का भी अनहित करना है ।
स्वामीजी ने ' गौ-करुणानिधि ' नामक पुस्तक में इस तथ्य का विस्तार से विवेचन किया है कि राजा-प्रजा की जितनी हानि गोहत्या से होती है उतनी किसी भी दूसरे कर्म से नहीं होती है । एक गाय के वध से चार लाख और एक भैंस के वध से बीस सहस्त्र मनुष्यों की हानि होती है ।
उनका मत था कि वास्तविक गौरक्षा तो यह है कि अधिकाधिक दूध देने वाली गायों और खेती का कार्य उत्तम रीति से कर सकने योग्य बैलों की संख्या में यथा शक्ति वृद्धि की जाये क्योंकि भारतवासियों के जीवन का आधार अन्न और दूध ये दो ही पदार्थ हैं ।
'जिससे अधिकांश मनुष्यों का अधिक उपकार हो उसका नाश कभी नहीं करना चाहिए । '
स्वामीजी के उपदेशों से प्रभावित होकर कई मुसलमानों ओर ईसाइयों ने गोमांस के त्याग की प्रतिज्ञा कर ली ।
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