' कर्म के फल से कोई बच नहीं सकता । '
राजा के यहां चोरी हुई तो ऋषि मांडव्य के आश्रम में छिपे डाकू पकड़े गये । डाकुओं के साथ राज्य के अधिकारी आश्रय दिये जाने के कारण ऋषि को भी पकड़कर ले गये । न्यायालय में वहां के नियम के अनुसार सभी को सूली पर चढ़ाने का दंड मिला । अन्य ऋषियों ने राजा के दरबार मे आकर मांडव्य ऋषि की निर्दोषिता बताई । राजा ने फाँसी तुरंत रुकवा दी और उन्हें तख्ते से नीचे उतार लिया गया । तब तक उन्हें काफी शारीरिक और मानसिक यातना मिल चुकी थी । राजा ने क्षमा मांगी । ऋषि मांडव्य ने कहा ------- "
जब मैं सूली पर था, तब ध्यान मे जाकर देखा------- पूर्व जन्म में मैंने अनेक पशु-पक्षियों को सताया था । उसी के कारण भारी यातनाओं के साथ मरना मेरे विधान में लिखा था, पर मेरी इस जन्म की तपस्या और सेवा ने उन कष्टों को घटा दिया । पूर्णत: शमन तों किसी पापकर्म का नहीं हो सकता । आप परेशान न हों, जितना भुगतना था, उतना मैंने भुगत लिया । '
राजा के यहां चोरी हुई तो ऋषि मांडव्य के आश्रम में छिपे डाकू पकड़े गये । डाकुओं के साथ राज्य के अधिकारी आश्रय दिये जाने के कारण ऋषि को भी पकड़कर ले गये । न्यायालय में वहां के नियम के अनुसार सभी को सूली पर चढ़ाने का दंड मिला । अन्य ऋषियों ने राजा के दरबार मे आकर मांडव्य ऋषि की निर्दोषिता बताई । राजा ने फाँसी तुरंत रुकवा दी और उन्हें तख्ते से नीचे उतार लिया गया । तब तक उन्हें काफी शारीरिक और मानसिक यातना मिल चुकी थी । राजा ने क्षमा मांगी । ऋषि मांडव्य ने कहा ------- "
जब मैं सूली पर था, तब ध्यान मे जाकर देखा------- पूर्व जन्म में मैंने अनेक पशु-पक्षियों को सताया था । उसी के कारण भारी यातनाओं के साथ मरना मेरे विधान में लिखा था, पर मेरी इस जन्म की तपस्या और सेवा ने उन कष्टों को घटा दिया । पूर्णत: शमन तों किसी पापकर्म का नहीं हो सकता । आप परेशान न हों, जितना भुगतना था, उतना मैंने भुगत लिया । '
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