' जो विद्वान अपने ज्ञान भण्डार और परिश्रम पूर्वक अर्जित किये अनुभव को जन - साधारण के हितार्थ प्रस्तुत करते हैं वे वास्तव में समाज के बहुत बड़े हितकारी हैं | सद्गुणों और सत्कार्यों की प्रशंसा पढ़कर मनुष्य का चित उनकी तरफ आकर्षित होता है और वह भी उनका अनुकरण करके वैसा ही यश और प्रशंसा प्राप्त करने की अभिलाषा करने लगता है । इस प्रकार सत्कर्मो की श्रंखला आगे बढ़ती है और समाज अधिक सुसंस्कृत बनता जाता है । '
तामिल - भाषा के महाकवि कम्बन ( जन्म 1200 के लगभग ) इसी तथ्य के उदाहरण थे ।
ये बचपन में ही अनाथ हो गये थे । इनके रिश्तेदार इन्हें नल्लूर गाँव में एक किसान के घर के पास छोड़ आये , उसी के घर इनकी परवरिश हुई | ये बचपन से ही प्रतिभाशाली थे और काव्य - रचना करने लगे । इनकी काव्य - प्रतिभा से चोल - राजा बहुत खुश हुए और उन्हें राजकवि बना दिया | कुछ समय बद राज ने उनसे तमिल - भाषा में वाल्मीकि - रामायण की तरह रामचरित्र लिखने का आग्रह किया । उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया ।
कुछ वर्ष बाद बारह हजार पदों का सुन्दर ग्रन्थ लिखकर तैयार हो गया । यह ग्रन्थ बहुत लोकप्रिय हुआ | जैसे उत्तर भारत में तुलसीदासजी की रामचरितमानस घर - घर पढ़ी जाती है उसी तरह दक्षिण भारत में ' कम्ब रामायण ' का सर्वत्र सम्मान के साथ पाठ किया जाता है । उनकी महान कृति पर मुग्ध होकर विद्वानों व महाराजाओं ने उन्हें ' कवि - सम्राट ' की पदवी दे दी ।
' कम्ब रामायण ' में उन्होंने राम -वनवास में उनके सर्वप्रथम सहायक निषादराजगुह जो कि नीची जाति के शूद्र थे , का वर्णन बहुत उच्च और उदात्त रूप में किया है । कम्बन ने उसको एक स्वाभिमानी और बहादुर सरदार के रूप में चित्रित किया है |
कम्बन ने निषाद जैसी नीच कहलाने वाली जाति के व्यक्ति को ऊँचा उठाकर , उसे राम का प्रिय मित्र बनाकर ऊँची - नीची जाति के मिथ्या अहंकार की जड़ पर कुठाराघात किया है । उनके इस काव्य - प्रवाह का पाठक के अंतर्मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है और वह जाति के बजाय चरित्र की उच्चता के सिद्धांत का कायल हो जाता है ।
कम्बन ने अपनी रचना द्वारा हर तरह से सदभावों को अपनाने एवं उनकी वृद्धि की प्रेरणा की है , जो एक सच्चे साहित्यकार का धर्म है |
तामिल - भाषा के महाकवि कम्बन ( जन्म 1200 के लगभग ) इसी तथ्य के उदाहरण थे ।
ये बचपन में ही अनाथ हो गये थे । इनके रिश्तेदार इन्हें नल्लूर गाँव में एक किसान के घर के पास छोड़ आये , उसी के घर इनकी परवरिश हुई | ये बचपन से ही प्रतिभाशाली थे और काव्य - रचना करने लगे । इनकी काव्य - प्रतिभा से चोल - राजा बहुत खुश हुए और उन्हें राजकवि बना दिया | कुछ समय बद राज ने उनसे तमिल - भाषा में वाल्मीकि - रामायण की तरह रामचरित्र लिखने का आग्रह किया । उन्होंने इसे सहर्ष स्वीकार किया ।
कुछ वर्ष बाद बारह हजार पदों का सुन्दर ग्रन्थ लिखकर तैयार हो गया । यह ग्रन्थ बहुत लोकप्रिय हुआ | जैसे उत्तर भारत में तुलसीदासजी की रामचरितमानस घर - घर पढ़ी जाती है उसी तरह दक्षिण भारत में ' कम्ब रामायण ' का सर्वत्र सम्मान के साथ पाठ किया जाता है । उनकी महान कृति पर मुग्ध होकर विद्वानों व महाराजाओं ने उन्हें ' कवि - सम्राट ' की पदवी दे दी ।
' कम्ब रामायण ' में उन्होंने राम -वनवास में उनके सर्वप्रथम सहायक निषादराजगुह जो कि नीची जाति के शूद्र थे , का वर्णन बहुत उच्च और उदात्त रूप में किया है । कम्बन ने उसको एक स्वाभिमानी और बहादुर सरदार के रूप में चित्रित किया है |
कम्बन ने निषाद जैसी नीच कहलाने वाली जाति के व्यक्ति को ऊँचा उठाकर , उसे राम का प्रिय मित्र बनाकर ऊँची - नीची जाति के मिथ्या अहंकार की जड़ पर कुठाराघात किया है । उनके इस काव्य - प्रवाह का पाठक के अंतर्मन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है और वह जाति के बजाय चरित्र की उच्चता के सिद्धांत का कायल हो जाता है ।
कम्बन ने अपनी रचना द्वारा हर तरह से सदभावों को अपनाने एवं उनकी वृद्धि की प्रेरणा की है , जो एक सच्चे साहित्यकार का धर्म है |
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