बाबा राघवदास सच्चे जनसेवक थे । उनकी बातें केवल भाषण देने वालों की तरह श्रोताओं से तालियाँ पिटवाने की युक्ति मात्र नहीं थीं, वरन उन्होंने गरीब से गरीब लोगों के बीच रहकर कार्य किया ।
गोरखपुर क्षेत्र में तो वह देवता की तरह पूजे जाते थे ।
अनेक व्यक्तियों की तरह वे कुर्सीनशीन नेता न थे । जनता पर जहाँ कहीं भी संकट आया, वे भाषण देने के बजाय स्वयं सेवा के लिए दौड़े । 15 जनवरी 1934 को जब बिहार में भूकम्प आया तो राघवदास जी अपनी विशेष टोली के साथ टूटे हुए मकानों के मलबे को हटाक र उसमे से लाशों को निकालने, घायलों की चिकित्सा करने, भूख-प्यास से पीड़ित लोगों को खाद्य सामग्री और वस्त्र पहुँचाने का कार्य करने लगे । वे निरन्तर बचाव कार्य में लगे रहे औ र एक महीने के भीतर हजारों लोगों के कष्ट दूर किये |
बिहार का काम पूरा नहीं हुआ कि गोरखपुर में जल-प्रलय की स्थिति आ गई । 1938 की बाढ़ में 2250 गाँव बह गये , और भी हजारों गांवों में पानी भरा था । उस समय बाबा जी का सेवा कार्य देखने लायक था । बहते मनुष्यों और पशुओं को बचाने के लिए जल में कूद पड़े । वे स्वयं चना खा लेते थे पर बाढ़ पीड़ितों के लिए अक्षय भण्डार खोल दिया । उनकी अपील पर बर्मा, इन्डोचीन, श्याम, अराकान, फारस तक से प्रवासी भारतीयों ने सहायता भेजी । गाँधीजी ने उनको अहमदाबाद से 70 गाँठ कम्बल भिजवाया । मालवीयजी ने निराश्रित मवेशियों के लिए मिर्जापुर के जंगलों में आश्रय मिलने की व्यवस्था की ।
1935-36 चुनावों की घोषणा होने पर सवारी ने होने पर वे 'पैदल ' ही ' तुलसी दल ' बाँटने निकले और 800 मील की पैदल यात्रा की । नतीजा यह हुआ कि बड़े-बड़े राजाओं को इस लंगोटी वाले साधु के मुकाबले में हारना पड़ा । इस प्रकार उन्होंने यह दिखा दिया कि सच्चे सेवा भाव के सम्मुख धन-बल
ओर रौब-दाब की शक्ति प्रभाव रहित हो जाते हैं ।
गोरखपुर क्षेत्र में तो वह देवता की तरह पूजे जाते थे ।
अनेक व्यक्तियों की तरह वे कुर्सीनशीन नेता न थे । जनता पर जहाँ कहीं भी संकट आया, वे भाषण देने के बजाय स्वयं सेवा के लिए दौड़े । 15 जनवरी 1934 को जब बिहार में भूकम्प आया तो राघवदास जी अपनी विशेष टोली के साथ टूटे हुए मकानों के मलबे को हटाक र उसमे से लाशों को निकालने, घायलों की चिकित्सा करने, भूख-प्यास से पीड़ित लोगों को खाद्य सामग्री और वस्त्र पहुँचाने का कार्य करने लगे । वे निरन्तर बचाव कार्य में लगे रहे औ र एक महीने के भीतर हजारों लोगों के कष्ट दूर किये |
बिहार का काम पूरा नहीं हुआ कि गोरखपुर में जल-प्रलय की स्थिति आ गई । 1938 की बाढ़ में 2250 गाँव बह गये , और भी हजारों गांवों में पानी भरा था । उस समय बाबा जी का सेवा कार्य देखने लायक था । बहते मनुष्यों और पशुओं को बचाने के लिए जल में कूद पड़े । वे स्वयं चना खा लेते थे पर बाढ़ पीड़ितों के लिए अक्षय भण्डार खोल दिया । उनकी अपील पर बर्मा, इन्डोचीन, श्याम, अराकान, फारस तक से प्रवासी भारतीयों ने सहायता भेजी । गाँधीजी ने उनको अहमदाबाद से 70 गाँठ कम्बल भिजवाया । मालवीयजी ने निराश्रित मवेशियों के लिए मिर्जापुर के जंगलों में आश्रय मिलने की व्यवस्था की ।
1935-36 चुनावों की घोषणा होने पर सवारी ने होने पर वे 'पैदल ' ही ' तुलसी दल ' बाँटने निकले और 800 मील की पैदल यात्रा की । नतीजा यह हुआ कि बड़े-बड़े राजाओं को इस लंगोटी वाले साधु के मुकाबले में हारना पड़ा । इस प्रकार उन्होंने यह दिखा दिया कि सच्चे सेवा भाव के सम्मुख धन-बल
ओर रौब-दाब की शक्ति प्रभाव रहित हो जाते हैं ।
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