खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले ,
खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है ।
इकबाल की दार्शनिक - विचारधारा में आध्यात्मिकता के सनातन सिद्धांत और विज्ञान के नवीनतम निष्कर्षों का अभूतपूर्व समन्वय मिलता है । उनकी कृतियों की चर्चित विशेषता रही है ----- इस्लाम का आधुनिकीकरण ।
उनके अनुसार पांच सौ वर्षों से इस्लाम के दार्शनिक विचार मृत पड़े हुए हैं और कुरान की व्याख्या निर्जीव आध्यात्मिक परिभाषा की शैली में ही होती है । जबकि आवश्यक यह है कि इस्लाम अपने को समय के अनुसार ढाले । आज के समय में मानवीय सभ्यता ने इतनी प्रगति कर ली है कि कोई भी विचार या जीवन - दर्शन यदि समय की गति से कदम मिलाकर नहीं चल पाता तो उसे निष्प्राण हो जाना पड़ता है । यह तथ्य इकबाल की द्रष्टि से भी ओझल नहीं हो पाया था और इसलिए उन्होंने मुसलमानों को आधुनिक सभ्यता की अच्छी बातें विवेकपूर्ण सजग - द्रष्टि से परखकर अपनाने की सलाह दी थी | उनकी मान्यता थी कि एक बार हमें अपने पूर्वजों की परंपरा को भी आधुनिक - सभ्यता के अनुकूल बनने के लिए तोड़ना पड़े तो उसमे हिचकिचाना नहीं चाहिए ।
इकबाल की उच्च शिक्षा जर्मनी में हुई थी , वहां से लौटकर उन्होंने लाहौर महाविद्दालय में प्राध्यापक पद स्वीकार किया । क्रन्तिकारी विचारों का प्रतिपादन उन्होंने अपने व्याख्यानों में किया ।
खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है ।
इकबाल की दार्शनिक - विचारधारा में आध्यात्मिकता के सनातन सिद्धांत और विज्ञान के नवीनतम निष्कर्षों का अभूतपूर्व समन्वय मिलता है । उनकी कृतियों की चर्चित विशेषता रही है ----- इस्लाम का आधुनिकीकरण ।
उनके अनुसार पांच सौ वर्षों से इस्लाम के दार्शनिक विचार मृत पड़े हुए हैं और कुरान की व्याख्या निर्जीव आध्यात्मिक परिभाषा की शैली में ही होती है । जबकि आवश्यक यह है कि इस्लाम अपने को समय के अनुसार ढाले । आज के समय में मानवीय सभ्यता ने इतनी प्रगति कर ली है कि कोई भी विचार या जीवन - दर्शन यदि समय की गति से कदम मिलाकर नहीं चल पाता तो उसे निष्प्राण हो जाना पड़ता है । यह तथ्य इकबाल की द्रष्टि से भी ओझल नहीं हो पाया था और इसलिए उन्होंने मुसलमानों को आधुनिक सभ्यता की अच्छी बातें विवेकपूर्ण सजग - द्रष्टि से परखकर अपनाने की सलाह दी थी | उनकी मान्यता थी कि एक बार हमें अपने पूर्वजों की परंपरा को भी आधुनिक - सभ्यता के अनुकूल बनने के लिए तोड़ना पड़े तो उसमे हिचकिचाना नहीं चाहिए ।
इकबाल की उच्च शिक्षा जर्मनी में हुई थी , वहां से लौटकर उन्होंने लाहौर महाविद्दालय में प्राध्यापक पद स्वीकार किया । क्रन्तिकारी विचारों का प्रतिपादन उन्होंने अपने व्याख्यानों में किया ।
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