' चंद्रतल को अपने पैरों से रौंदने वाले मानव को वह अंत तक यही सन्देश देते रहे कि भूतल पर हाथ में हाथ मिला कर प्रेम से चलने का भी अब प्रत्येक व्यक्ति को प्रयत्न करना चाहिए । '
भेदभाव की जो रेखाए जमीन पर कहीं अंकित नहीं दिखाई नहीं देतीं उन्हें वह व्यक्ति के मन से भी मिटाना चाहते थे ।
रसेल मानते थे कि जब तक कोई व्यक्ति अच्छा नागरिक न हो तब तक वह अच्छा
जन-प्रतिनिधि या अच्छा राजनीतिज्ञ कैसे हो सकता है ? रसेल ने लिखा है -- " संसद और विधान सभा के सदस्य आराम से रहते हैं, मोटी-मोटी दीवारें और असंख्य पुलिस जन उनको जनता की आवाज से बचाए रखते हैं । जैसे - जैसे समय बीतता जाता है उनके मन में उन वचनों की धुंधली सी स्मृति रह जाती है जो निर्वाचन के समय जनता को दिए थे । दुर्भाग्य यह है कि समाज के व्यापक हित वास्तव में अमूर्त होते हैं और अंत में विधायकों के निजी , संकीर्ण -हितों को ही जनता का हित मान लिया जाता है । "
उन्होंने लिखा है कि--- " यह ठीक है कि हर मामले में प्रशासक का ज्ञान आम जनता की अपेक्षा अधिक होता है लेकिन वे केवल एक चीज नहीं जानते और यह कि जूता कहाँ काटता है , यानि की उनकी व्यवस्था सामान्य जनता को कहाँ कष्ट पहुंचाती है । "
जिस तरह मोची नहीं जनता कि जूता कहाँ काटता है , वह केवल पहनने वाला ही समझता है । उसी तरह प्रशासन भी ज्ञान के दंभ में रहता है । लोकतंत्र में केवल ज्ञान के दंभ की आवश्यकता नहीं वरन उन लोगों की आवाज का अधिक महत्व है जो शासन और प्रशासन की नीतियों के परिणाम भोगते हैं ।
समग्र मानवता की पीड़ा को हरना उनका उद्देश्य था और इसी प्रयत्न में वे अंत तक लगे रहे ।
भेदभाव की जो रेखाए जमीन पर कहीं अंकित नहीं दिखाई नहीं देतीं उन्हें वह व्यक्ति के मन से भी मिटाना चाहते थे ।
रसेल मानते थे कि जब तक कोई व्यक्ति अच्छा नागरिक न हो तब तक वह अच्छा
जन-प्रतिनिधि या अच्छा राजनीतिज्ञ कैसे हो सकता है ? रसेल ने लिखा है -- " संसद और विधान सभा के सदस्य आराम से रहते हैं, मोटी-मोटी दीवारें और असंख्य पुलिस जन उनको जनता की आवाज से बचाए रखते हैं । जैसे - जैसे समय बीतता जाता है उनके मन में उन वचनों की धुंधली सी स्मृति रह जाती है जो निर्वाचन के समय जनता को दिए थे । दुर्भाग्य यह है कि समाज के व्यापक हित वास्तव में अमूर्त होते हैं और अंत में विधायकों के निजी , संकीर्ण -हितों को ही जनता का हित मान लिया जाता है । "
उन्होंने लिखा है कि--- " यह ठीक है कि हर मामले में प्रशासक का ज्ञान आम जनता की अपेक्षा अधिक होता है लेकिन वे केवल एक चीज नहीं जानते और यह कि जूता कहाँ काटता है , यानि की उनकी व्यवस्था सामान्य जनता को कहाँ कष्ट पहुंचाती है । "
जिस तरह मोची नहीं जनता कि जूता कहाँ काटता है , वह केवल पहनने वाला ही समझता है । उसी तरह प्रशासन भी ज्ञान के दंभ में रहता है । लोकतंत्र में केवल ज्ञान के दंभ की आवश्यकता नहीं वरन उन लोगों की आवाज का अधिक महत्व है जो शासन और प्रशासन की नीतियों के परिणाम भोगते हैं ।
समग्र मानवता की पीड़ा को हरना उनका उद्देश्य था और इसी प्रयत्न में वे अंत तक लगे रहे ।
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