' हर कर्म का एक उद्देश्य होता है l यह उद्देश्य ही मनुष्य को क्षुद्र और महान बना देता है । जहाँ व्यक्तिगत स्वार्थ और सुख के लिए कुछ किया जाता है वहां क्षुद्रता और जहाँ किसी आदर्श के लिए काम किया जाता है वहां महानता की बात होती है । ' मार्क्स श्रेष्ठ सिद्धांत और पवित्र लक्ष्य तथा जन-कल्याण की भावना लेकर कार्य के प्रति समर्पित थे । इसलिए अभाव भरे जीवन से भी उन्हें कोई शिकायत नहीं थी |
' मार्क्स ने अपनी समस्त योग्यता और शक्ति को मानव जाति के हितार्थ लगा दिया । वह स्वयं जन्म भर गरीबी और अभावग्रस्त दशा में रहा , पर उसने करोड़ों दीन - हीन लोगों के लिए उद्धार का रास्ता खोल दिया । '
कार्ल मार्क्स लन्दन में निर्वासित जीवन जी रहे थे । फ्रांस और जर्मनी की सरकारों ने उन्हें क्रांतिकारी घोषित कर देश निकाला दे दिया था । यहीं रहकर उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ
' दास कैपिटल ' की रचना की । लन्दन प्रवास के दौरान उन्हें घोर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा , गरीबी और भूख के कारण उनके दो बच्चों की मृत्यु हो गई । समय पर किराया न चुका पाने के कारण मकान मालिक ने उन्हें घर से निकाल दिया , रोटी के लिए बिस्तर भी बेचने पड़े । किन्तु श्रमिकों के उद्धार का संकल्प उन्होंने उठाया था , उसे भूखों रहकर आजीवन निभाया, उसमे राई - रत्तीभर शिथिलता नहीं आने दी ।
उन्ही दिनों जर्मनी में बिस्मार्क का प्रभुत्व था । पूंजीवादी राष्ट्रों में जर्मनी अग्रणी था । बिस्मार्क को डर था कि यदि मार्क्स के विचार समाज में फैल गये तो मजदूरों को काबू में रख पाना संभव न होगा | पूंजीवाद की नींव जर्मनी से सदा के लिए उखड़ जाएगी ।
बिस्मार्क को एक उक्ति सूझी । क्यों न मार्क्स को प्रलोभन देकर खरीद लिया जाये और उसके बढ़ते प्रभाव को समाप्त कर दिया जाये । मार्क्स के पुराने साथी बूचर को लालच देकर अपने पक्ष में कर लिया | उसके हाथों गुप्त पत्र भिजवाया , जिसमे कार्ल मार्क्स को सरकारी समाचार पत्र का सम्पादक बनने की बात कही थी तथा सुरक्षा का भी पूरा आश्वासन दिया गया था । पत्र के अंत में कहा गया था कि सरकार के समर्थन से राष्ट्र की सेवा और अच्छी तरह हो सकती है ।
किन्तु मार्क्स खरीदे नहीं जा सके । बिस्मार्क अपने कुटिल इरादों में असफल रहा |
यह प्रलोभनों पर आदर्शों की महान विजय थी , जो मार्क्स को सदा के लिए महान बना गई ।
' मार्क्स ने अपनी समस्त योग्यता और शक्ति को मानव जाति के हितार्थ लगा दिया । वह स्वयं जन्म भर गरीबी और अभावग्रस्त दशा में रहा , पर उसने करोड़ों दीन - हीन लोगों के लिए उद्धार का रास्ता खोल दिया । '
कार्ल मार्क्स लन्दन में निर्वासित जीवन जी रहे थे । फ्रांस और जर्मनी की सरकारों ने उन्हें क्रांतिकारी घोषित कर देश निकाला दे दिया था । यहीं रहकर उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ
' दास कैपिटल ' की रचना की । लन्दन प्रवास के दौरान उन्हें घोर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा , गरीबी और भूख के कारण उनके दो बच्चों की मृत्यु हो गई । समय पर किराया न चुका पाने के कारण मकान मालिक ने उन्हें घर से निकाल दिया , रोटी के लिए बिस्तर भी बेचने पड़े । किन्तु श्रमिकों के उद्धार का संकल्प उन्होंने उठाया था , उसे भूखों रहकर आजीवन निभाया, उसमे राई - रत्तीभर शिथिलता नहीं आने दी ।
उन्ही दिनों जर्मनी में बिस्मार्क का प्रभुत्व था । पूंजीवादी राष्ट्रों में जर्मनी अग्रणी था । बिस्मार्क को डर था कि यदि मार्क्स के विचार समाज में फैल गये तो मजदूरों को काबू में रख पाना संभव न होगा | पूंजीवाद की नींव जर्मनी से सदा के लिए उखड़ जाएगी ।
बिस्मार्क को एक उक्ति सूझी । क्यों न मार्क्स को प्रलोभन देकर खरीद लिया जाये और उसके बढ़ते प्रभाव को समाप्त कर दिया जाये । मार्क्स के पुराने साथी बूचर को लालच देकर अपने पक्ष में कर लिया | उसके हाथों गुप्त पत्र भिजवाया , जिसमे कार्ल मार्क्स को सरकारी समाचार पत्र का सम्पादक बनने की बात कही थी तथा सुरक्षा का भी पूरा आश्वासन दिया गया था । पत्र के अंत में कहा गया था कि सरकार के समर्थन से राष्ट्र की सेवा और अच्छी तरह हो सकती है ।
किन्तु मार्क्स खरीदे नहीं जा सके । बिस्मार्क अपने कुटिल इरादों में असफल रहा |
यह प्रलोभनों पर आदर्शों की महान विजय थी , जो मार्क्स को सदा के लिए महान बना गई ।
No comments:
Post a Comment