अपने भाग्य को स्वयं बन जाने राह देखना भूल ही नहीं मूर्खता भी है । यह संसार इतना व्यस्त है कि लोगों को अपनी परवाह से ही फुरसत नहीं । यदि कोई थोड़ा सा सहारा देकर आगे बढ़ा भी दे और उतनी योग्यता भी न हो तो फिर पश्चाताप , अपमान ,और अवनति का ही मुँह देखना पड़ता है । स्वयं की मौलिक सूझ - बूझ और परिश्रम से बनाये हुए भाग्य में इस तरह की कोई आशंका नहीं रहती , क्योंकि वैसी स्थिति में अयोग्य सिद्ध होने का कोई कारण ही नहीं होता ।
जितनी योग्यता बढ्ती चले , सफलता की मंजिल उतनी ही प्राप्त करता चले , रास्ता सबके लिए खुला है , उस पर चलकर कितना पार कर सकता है , यह व्यक्ति की अपनी लगन , साहस और विश्वास पर निर्भर है |
जितनी योग्यता बढ्ती चले , सफलता की मंजिल उतनी ही प्राप्त करता चले , रास्ता सबके लिए खुला है , उस पर चलकर कितना पार कर सकता है , यह व्यक्ति की अपनी लगन , साहस और विश्वास पर निर्भर है |
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 19 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!