गोर्की ( जन्म 1858 ) के बचपन का नाम था अलेक्सी । ' कोकेशस ' नामक पात्र में जब उनकी पहली कहानी ' माकार- चंद्रा ' प्रकाशित हुई तो उसने लेखक के रूप में अपना नाम दिया ---- ' गोर्की ' | जिसका अर्थ होता है --- ' तेज ' । उन्होंने अपने मित्र से कहा --- " मैं तेजी से समाज की विवशताओं के बन्धन काटना चाहता हूँ , इसलिए गोर्की बना । एक साहित्यकार के रूप में आज मेरा जन्म हुआ है और जन्मदाता है कूड़े का ढेर । "
अलेक्सी का बचपन बहुत गरीबी व दुःख में बीता । आठ वर्ष की उम्र में वह परिवार का कर्ता बन गया । वह मिल जाती तो मजदूरी करता नहीं तो कूड़े - कचरे के ढेर में से कोई काम की चीज खोजकर उसकी मरम्मत कर बाजार में बेच आता और जो कुछ पैसे मिलते उससे अपना व नानी का पेट भरता । स्कूल में पढ़ना नहीं हो सका । कूड़े का ढेर उसका बहुत दिनों का साथी था ।
यहीं से फटे कागजों को उठाकर तुड़े - मुड़े , सड़े - गले अक्षरों को जोड़कर उसने पढ़ना सीखा । यही उसकी पाठशाला थी । पढ़ने का शौक इतना था कि जब कभी किसी के पास अच्छी पुस्तक का पता चलता तो उसके घर पहुँच जाता , उसकी मजदूरी करता , बदले में एक - आध दिन के लिए किताब मांग कर पढ़ लेता । युवा होने पर रेल्वे स्टेशन पर चौकीदारी करता और दिन भर बदबू और सीलन भरी कोठरी में पढ़ता - लिखता रहता | सर्दी के लिए उनके पास पहनने - ओढ़ने के लिए कपड़े भी नहीं थे । गोर्की ने आभाव सहे पर पढ़ना - लिखना नहीं छोड़ा ।
भूखे - नंगे निराश्रित अलेक्सी ने परिस्थितियों से जो लड़ाई लड़ी , साथ ही विकृतियों से जो संघर्ष किया यह तथ्य उन्हें मेक्सिम गोर्की बनाने में सहायक रहा ।
साहित्य - जगत में आने पर पहले कई वर्षों तक गोर्की को कड़ा संघर्ष करना पड़ा । प्रारंभिक संघर्ष के बाद सफलता गोर्की के चरण चूमने लगी । गोर्की ने एक सफल लेखक और साहित्यकार के रूप में पीड़ित मानवता की सेवा की थी । उनकी रचनाओं में गिरे हुए को ऊँचा उठाने की प्रेरणाएं भरी होती थीं । वे कहते थे मेरी एक ही साध है कि मैं मानव का दर्द साहित्य के माध्यम से मानव को समझा सकूँ । गोर्की ने कीचड़ में रहते हुए भी अपने को कमल की तरह विकसित करके यह प्रमाणित कर दिया कि व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में क्यों न रहे , यदि उसमे आगे बढ़ने की भावना - शक्ति और कर्मणा शक्ति है तो वह प्रगति कर सकता है ।
अलेक्सी का बचपन बहुत गरीबी व दुःख में बीता । आठ वर्ष की उम्र में वह परिवार का कर्ता बन गया । वह मिल जाती तो मजदूरी करता नहीं तो कूड़े - कचरे के ढेर में से कोई काम की चीज खोजकर उसकी मरम्मत कर बाजार में बेच आता और जो कुछ पैसे मिलते उससे अपना व नानी का पेट भरता । स्कूल में पढ़ना नहीं हो सका । कूड़े का ढेर उसका बहुत दिनों का साथी था ।
यहीं से फटे कागजों को उठाकर तुड़े - मुड़े , सड़े - गले अक्षरों को जोड़कर उसने पढ़ना सीखा । यही उसकी पाठशाला थी । पढ़ने का शौक इतना था कि जब कभी किसी के पास अच्छी पुस्तक का पता चलता तो उसके घर पहुँच जाता , उसकी मजदूरी करता , बदले में एक - आध दिन के लिए किताब मांग कर पढ़ लेता । युवा होने पर रेल्वे स्टेशन पर चौकीदारी करता और दिन भर बदबू और सीलन भरी कोठरी में पढ़ता - लिखता रहता | सर्दी के लिए उनके पास पहनने - ओढ़ने के लिए कपड़े भी नहीं थे । गोर्की ने आभाव सहे पर पढ़ना - लिखना नहीं छोड़ा ।
भूखे - नंगे निराश्रित अलेक्सी ने परिस्थितियों से जो लड़ाई लड़ी , साथ ही विकृतियों से जो संघर्ष किया यह तथ्य उन्हें मेक्सिम गोर्की बनाने में सहायक रहा ।
साहित्य - जगत में आने पर पहले कई वर्षों तक गोर्की को कड़ा संघर्ष करना पड़ा । प्रारंभिक संघर्ष के बाद सफलता गोर्की के चरण चूमने लगी । गोर्की ने एक सफल लेखक और साहित्यकार के रूप में पीड़ित मानवता की सेवा की थी । उनकी रचनाओं में गिरे हुए को ऊँचा उठाने की प्रेरणाएं भरी होती थीं । वे कहते थे मेरी एक ही साध है कि मैं मानव का दर्द साहित्य के माध्यम से मानव को समझा सकूँ । गोर्की ने कीचड़ में रहते हुए भी अपने को कमल की तरह विकसित करके यह प्रमाणित कर दिया कि व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में क्यों न रहे , यदि उसमे आगे बढ़ने की भावना - शक्ति और कर्मणा शक्ति है तो वह प्रगति कर सकता है ।
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