' प्रवचन और उपदेशों द्वारा ही नहीं , लेखनी और क्रियाओं द्वारा भी उन्होंने मानव मूल्यों के प्रतिपादक धर्म का प्रचार किया । ' उनकी मान्यता थी कि पूजा पाठ तब तक अधूरा ही है , जब तक ह्रदय में सेवा और सदभावनाएँ नहीं जागें । उन्होंने गिरे हुए को ऊँचा उठाया और दीन- दुःखियों के प्रति सेवा - सहयोग करने के लिए लोगों को प्रेरित किया । कई संपन्न व्यक्ति उन्हें जो धन - सम्पदा अर्पित कर देते थे उन्हें वे दीन - दुःखियों की सेवा में लगाने के लिए वापस कर देते थे । उनकी रचित ' ज्ञानेश्वरी गीता ' आध्यात्मिक साहित्य की अमूल्य सम्पदा मानी जाती है ।
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