गिरिजाघर के बाहर निकलने वाले व्यक्तियों को बाहर बरामदे में ही रुक जाना पड़ा । बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी । ऐसा लगता था मानो प्रलय की घड़ी आ पहुंची हो । प्रख्यात साहित्यकार मार्क ट्वेन से उनके निकट ही खड़े एक मित्र ने पूछा ----- " मार्क , तुम्हारा क्या ख्याल
है ? कभी यह बंद भी होगी ? "
मार्क के चेहरे पर गंभीरता छा गई और दृढ़ विश्वास के स्वर में वे बोले ----- " क्यों नहीं , शुरू से ही तो ऐसा होता आया है । "
अस्थायी और नश्वर विश्व में भला कौन सी वस्तु स्थायी रही है ? कोई भी ऐसी बुराई नहीं , कोई भी ऐसी दुःखद घड़ी नहीं जिसे विश्वास , द्रढ़ता एवं सच्चाई से जीता न जा सके ।
है ? कभी यह बंद भी होगी ? "
मार्क के चेहरे पर गंभीरता छा गई और दृढ़ विश्वास के स्वर में वे बोले ----- " क्यों नहीं , शुरू से ही तो ऐसा होता आया है । "
अस्थायी और नश्वर विश्व में भला कौन सी वस्तु स्थायी रही है ? कोई भी ऐसी बुराई नहीं , कोई भी ऐसी दुःखद घड़ी नहीं जिसे विश्वास , द्रढ़ता एवं सच्चाई से जीता न जा सके ।
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