एक बार एक महिला जिज्ञासु ने रामकृष्ण परमहंस से पूछा ---- " क्या पंडित लोग ग्रहों की पूजा - प्रार्थना करके उनकी प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदल सकते हैं ? "
परमहंस जी ने कहा ---- " ग्रह - नक्षत्र इतने क्षुद्र नहीं हैं , जो किसी पर अकारण उलटे - सीधे होते रहे और न उनकी प्रसन्नता - अप्रसन्नता ऐसी है , जो छिटपुट कर्मकांडों से बदलती रहे और पंडितों के पास उनकी ऐजेंसी भी नहीं कि उन्हें दक्षिणा देने पर ग्रहों को जैसा चाहे नाच नचाया जा सके । "
चूँकि ग्रहों का मानव - जीवन पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ता है इसलिए किसी भी शुभ कार्य के आरम्भ में ग्रहों की शान्ति के लिए प्रार्थना की जाती है |
परमहंस जी ने कहा ---- " ग्रह - नक्षत्र इतने क्षुद्र नहीं हैं , जो किसी पर अकारण उलटे - सीधे होते रहे और न उनकी प्रसन्नता - अप्रसन्नता ऐसी है , जो छिटपुट कर्मकांडों से बदलती रहे और पंडितों के पास उनकी ऐजेंसी भी नहीं कि उन्हें दक्षिणा देने पर ग्रहों को जैसा चाहे नाच नचाया जा सके । "
चूँकि ग्रहों का मानव - जीवन पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ता है इसलिए किसी भी शुभ कार्य के आरम्भ में ग्रहों की शान्ति के लिए प्रार्थना की जाती है |
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