संत परम्परा के यथार्थ उद्देश्य , स्वरुप की एक झाँकी कराने वाले सन्यासियों में एक नाम है ----- स्वामी कृष्णानंद जी | स्वामी जी का जन्म उत्तर प्रदेश के किसी गाँव में हुआ था , फिर बाद में वे विश्व नागरिक के रूप में ही विकसित हो गये ।
उन्होंने मानवी गरिमा को ऊँचा उठाने में अपनी क्षमता को समर्पित किया । हिमालय साधना से लौट कर वे सेवा कार्यों में लग गये | गुजरात के जम्बुसर क्षेत्र में गजेरा ग्राम से उन्होंने सेवा सहित शिक्षा कार्य आरम्भ किया | उन्होंने हर घर से एक - एक रुपया एकत्रित कर नेत्र दान यज्ञों की व्यवस्था की और हर रोगी का आपरेशन मुफ्त कराया साथ ही आपरेशन कराने वाले के लिए बिना मूल्य आवास की व्यवस्था की । प्रथम शिविर में 600 नेत्र आपरेशन हुए | ऐसे कई नि:शुल्क शिविरों की उन्होंने व्यवस्था की और सेवाभावी डाक्टरों और अस्पतालों को प्रभावित करके उस क्षेत्र के रोग पीड़ितों की सेवा करने का कार्य सफलता पूर्वक संपन्न किया l
शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने मादणा नामक ग्राम में जन - सहयोग से एक कॉलेज खड़ा कर दिया और कितने ही अन्य छोटे - बड़े शिक्षा - संस्थान खड़े किये ।
उनका प्रधान कार्य क्षेत्र मौरीशस द्वीप बन गया । यहाँ उन्होंने घर - घर में जन - संपर्क कर सेवा शिविर संगठन संस्था के अंतर्गत हजारों युवकों को मानवीय उत्कर्ष की विविध प्रवृतियों में लगा दिया । भारतीय संस्कृति के मूल उद्देश्य से वहां के लोगों को परिचित कराने के लिए उन्होंने एक लाख रामायण की पुस्तकें भारत से ले जा कर वहां के घर - घर में पहुंचाई । हिन्दी को लोग भूल न जाएँ , इसके लिए प्रयाग महिला विद्दा पीठ , हिन्दी साहित्य सम्मलेन , राष्ट्र भाषा प्रचार समिति के परीक्षा केंद्र खुलवाये और उनमे पढने के लिए सभी भारतीयों में उत्साह की नयी उमंग पैदा की ।
प्रार्थना की नियमितता के प्रशिक्षण से स्वामी जी का सेवा कार्य अधिक होता था । वे जन - साधारण को भी उपासना के साथ लोकसेवा की दिशा में कुछ न कुछ करने के लिए प्रेरित करते थे l वे गुजराती, पंजाबी , नेपाली , मराठी आदि अनेक भारतीय भाषाएँ जानते थे , यह शिक्षण उन्होंने सेवा - साधना के साथ पूरा किया ।
उन्होंने मानवी गरिमा को ऊँचा उठाने में अपनी क्षमता को समर्पित किया । हिमालय साधना से लौट कर वे सेवा कार्यों में लग गये | गुजरात के जम्बुसर क्षेत्र में गजेरा ग्राम से उन्होंने सेवा सहित शिक्षा कार्य आरम्भ किया | उन्होंने हर घर से एक - एक रुपया एकत्रित कर नेत्र दान यज्ञों की व्यवस्था की और हर रोगी का आपरेशन मुफ्त कराया साथ ही आपरेशन कराने वाले के लिए बिना मूल्य आवास की व्यवस्था की । प्रथम शिविर में 600 नेत्र आपरेशन हुए | ऐसे कई नि:शुल्क शिविरों की उन्होंने व्यवस्था की और सेवाभावी डाक्टरों और अस्पतालों को प्रभावित करके उस क्षेत्र के रोग पीड़ितों की सेवा करने का कार्य सफलता पूर्वक संपन्न किया l
शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने मादणा नामक ग्राम में जन - सहयोग से एक कॉलेज खड़ा कर दिया और कितने ही अन्य छोटे - बड़े शिक्षा - संस्थान खड़े किये ।
उनका प्रधान कार्य क्षेत्र मौरीशस द्वीप बन गया । यहाँ उन्होंने घर - घर में जन - संपर्क कर सेवा शिविर संगठन संस्था के अंतर्गत हजारों युवकों को मानवीय उत्कर्ष की विविध प्रवृतियों में लगा दिया । भारतीय संस्कृति के मूल उद्देश्य से वहां के लोगों को परिचित कराने के लिए उन्होंने एक लाख रामायण की पुस्तकें भारत से ले जा कर वहां के घर - घर में पहुंचाई । हिन्दी को लोग भूल न जाएँ , इसके लिए प्रयाग महिला विद्दा पीठ , हिन्दी साहित्य सम्मलेन , राष्ट्र भाषा प्रचार समिति के परीक्षा केंद्र खुलवाये और उनमे पढने के लिए सभी भारतीयों में उत्साह की नयी उमंग पैदा की ।
प्रार्थना की नियमितता के प्रशिक्षण से स्वामी जी का सेवा कार्य अधिक होता था । वे जन - साधारण को भी उपासना के साथ लोकसेवा की दिशा में कुछ न कुछ करने के लिए प्रेरित करते थे l वे गुजराती, पंजाबी , नेपाली , मराठी आदि अनेक भारतीय भाषाएँ जानते थे , यह शिक्षण उन्होंने सेवा - साधना के साथ पूरा किया ।
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