एक समय था वह बालक जिसे स्कूल के प्रबंधक बुद्धिहीन करार देकर भर्ती करने से इन्कार कर दें , कुछ वर्षों बाद ही चार भाषाओँ की जानकारी तथा मातृभाषा का अधिकारिक ज्ञान रखने वाला बन जाये ---- इस बात का सहज विश्वास नहीं होता । एंटन चेखव से जब किसी ने पूछा कि इतने कम समय में आप इतना विकास कैसे कर सके तो उनका एक ही उत्तर था ------ केवल प्रयत्न और पुरुषार्थ के बल पर ।
काम के प्रति उनके मन में ऐसी लगन जागी कि जब लिखने बैठते तो तब तक लिखते चले जाते जब तक कि उनकी उँगलियाँ दर्द के कारण काम करने से इन्कार न कर दें | ऐसी स्थिति में वे थक कर सो नहीं जाते थे पढने लगते थे । धैर्य इतना था कि प्रकाशक रचनाएँ वापस कर देते तो बिना परेशान हुए दुबारा लिखने बैठ जाते और सुधार कर फिर से लिखते । इस प्रकार उन्हें एक ही रचना को कई बार लिखना पड़ता था ।
एंटन चेखव का एक नाटक ' वार्ड नं. 6 ' बहुत लोकप्रिय हुआ । बुद्धिजीवी वर्ग की नपुंसक अकर्मण्यता पर तीव्र प्रहार करने वाला यह नाटक जब लेनिन ने देखा तो वे इतने व्यग्र हो उठे कि अपने स्थान पर बैठ न सके । उन्ही के शब्दों में उन्होंने ऐसा अनुभव किया कि जैसे वे स्वयं भी इस नाटक के एक पात्र हों । इस नाटक में इस तथ्य को उभरा गया है कि प्रतिकूलताओं के विरुद्ध लड़ने का साहस होना चाहिए । हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए निष्क्रिय विरोध , उपेक्षा व उदासीनता से काम नहीं चलता । उसे रोकने के लिए अदम्य और कठोर संघर्ष की आवश्यकता है तभी उसमे सफल हुआ जा सकता है ।
एंटन चेखव , उन्नीसवीं शताब्दी के उन गिने - चुने साहित्यकारों में से हैं जिनकी रचनाएँ समाज पर अपना प्रभाव डाल सकीं और अब भी वे उतनी ही जीवन्त और स्फूर्त बनी हुई हैं ।
काम के प्रति उनके मन में ऐसी लगन जागी कि जब लिखने बैठते तो तब तक लिखते चले जाते जब तक कि उनकी उँगलियाँ दर्द के कारण काम करने से इन्कार न कर दें | ऐसी स्थिति में वे थक कर सो नहीं जाते थे पढने लगते थे । धैर्य इतना था कि प्रकाशक रचनाएँ वापस कर देते तो बिना परेशान हुए दुबारा लिखने बैठ जाते और सुधार कर फिर से लिखते । इस प्रकार उन्हें एक ही रचना को कई बार लिखना पड़ता था ।
एंटन चेखव का एक नाटक ' वार्ड नं. 6 ' बहुत लोकप्रिय हुआ । बुद्धिजीवी वर्ग की नपुंसक अकर्मण्यता पर तीव्र प्रहार करने वाला यह नाटक जब लेनिन ने देखा तो वे इतने व्यग्र हो उठे कि अपने स्थान पर बैठ न सके । उन्ही के शब्दों में उन्होंने ऐसा अनुभव किया कि जैसे वे स्वयं भी इस नाटक के एक पात्र हों । इस नाटक में इस तथ्य को उभरा गया है कि प्रतिकूलताओं के विरुद्ध लड़ने का साहस होना चाहिए । हिंसा और अत्याचार को रोकने के लिए निष्क्रिय विरोध , उपेक्षा व उदासीनता से काम नहीं चलता । उसे रोकने के लिए अदम्य और कठोर संघर्ष की आवश्यकता है तभी उसमे सफल हुआ जा सकता है ।
एंटन चेखव , उन्नीसवीं शताब्दी के उन गिने - चुने साहित्यकारों में से हैं जिनकी रचनाएँ समाज पर अपना प्रभाव डाल सकीं और अब भी वे उतनी ही जीवन्त और स्फूर्त बनी हुई हैं ।
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