दास बाबू ने अपने एक भाषण में कहा था ----- " अपने देश में विदेशी राज्य विस्तार होने के साथ - साथ हमने यूरोप की कुछ बुराइयों को अपना लिया है और हम अपने प्राचीन आडम्बर रहित जीवन को त्याग कर सुख और विलासिता के जीवन की ओर अग्रसर होते जा रहे हैं | अगर विचार किया जाये तो हमारे सभी राजनीतिक आन्दोलन यथार्थता से दूर हैं क्योंकि इनमे उन लोगों का कोई हाथ नहीं , जो इस देश की असली रीढ़ हैं l "
यहाँ उनका आशय सामान्य जनता से था , जिसके नाम पर सब आन्दोलन उठाये जाते हैं पर उनका लाभ प्राय: शक्तिशाली और संपन्न वर्ग के लोग ही उठाते हैं l
दास बाबू का यह भाषण इतना मार्मिक था कई बंगाल के तत्कालीन गवर्नर लार्ड रोनाल्डरो ने अपनी एक पुस्तक ' दी हार्ट ऑफ़ आर्यावर्त ' में उसकी प्रशंसा की और लिखा है कि एक ऋषि के सामान अपने देशवासियों को सच्ची प्रगति का मार्ग दिखलाया है l
यहाँ उनका आशय सामान्य जनता से था , जिसके नाम पर सब आन्दोलन उठाये जाते हैं पर उनका लाभ प्राय: शक्तिशाली और संपन्न वर्ग के लोग ही उठाते हैं l
दास बाबू का यह भाषण इतना मार्मिक था कई बंगाल के तत्कालीन गवर्नर लार्ड रोनाल्डरो ने अपनी एक पुस्तक ' दी हार्ट ऑफ़ आर्यावर्त ' में उसकी प्रशंसा की और लिखा है कि एक ऋषि के सामान अपने देशवासियों को सच्ची प्रगति का मार्ग दिखलाया है l
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