राजा जसवंतसिंह जोधपुर के राजा थे । उन्हें अपनी वीरता पर आवश्यकता से अधिक गर्व हो गया था । इतिहास इस बात का साक्षी है कि राजपूत चरित्र , वीरता , साहस , शौर्य और आन -बान में मुगलों से हजार गुना अच्छे थे । उनकी वीरता , कर्तव्यपरायणता और जांबाजी के किस्सों से इतिहास इतिहास के पृष्ठ रंगे पड़े हैं किन्तु यही सब कुछ नहीं होता शक्ति के सदुपयोग और एकता की भावना का उनमे सर्वथा अभाव था ।
राजपूत राजाओं के इस मिथ्याभिमान और अविवेक का लाभ मुगलों ने उठाया था |
औरंगजेब ने जब राजा जसवंतसिंह से मित्रता का हाथ बढ़ाया तो उन्होंने सब कुछ भुलाकर उसे स्वीकार कर लिया । जसवंतसिंह ने यह सोचने का प्रयास भी नहीं किया कि यह क्रूर , निर्दयी , अन्यायी औरंगजेब जब अपने पिता को कैद कर सकता है , भाइयों को क़त्ल करवा सकता है तो समय आने पर उन्हें भी दगा दे सकता है । ।
जसवंतसिंह की वीरता और पराक्रम से औरंगजेब ने जी भरकर लाभ उठाया । शंकालु प्रवृति का औरंगजेब उनसे भीतर ही भीतर भयभीत रहता था । औरंगजेब में दया तो थी नहीं , न्याय भी नहीं था । उसने जसवंतसिंह को और उसके पुत्रों को धोखे से मरवा दिया । उसकी रानी और नवजात अजीतसिंह को स्वामिभक्त दुर्गादास राठौर ने औरंगजेब के पंजे से बचाया नहीं तो उनका वंश ही मिट जाता ।
राजा जसवंतसिंह के पास जो बल विक्रम था वह स्वयं उनके लिए , उनके परिवार के लिए तथा हिन्दू जाति के लिए निरुपयोगी सिद्ध हुआ , उसका लाभ उठाकर औरंगजेब ने अपना स्वार्थ सिद्ध किया । सच्चे लोगों को संगठित होना चाहिए । यह भी देखना चाहिए कि उसके लाभ गलत व्यक्ति तो नहीं उठा रहे हैं । नहीं तो ये अच्छाइयाँ भी राजा जसवंतसिंह के पराक्रम की तरह निरर्थक चली जायेंगी ।
राजपूत राजाओं के इस मिथ्याभिमान और अविवेक का लाभ मुगलों ने उठाया था |
औरंगजेब ने जब राजा जसवंतसिंह से मित्रता का हाथ बढ़ाया तो उन्होंने सब कुछ भुलाकर उसे स्वीकार कर लिया । जसवंतसिंह ने यह सोचने का प्रयास भी नहीं किया कि यह क्रूर , निर्दयी , अन्यायी औरंगजेब जब अपने पिता को कैद कर सकता है , भाइयों को क़त्ल करवा सकता है तो समय आने पर उन्हें भी दगा दे सकता है । ।
जसवंतसिंह की वीरता और पराक्रम से औरंगजेब ने जी भरकर लाभ उठाया । शंकालु प्रवृति का औरंगजेब उनसे भीतर ही भीतर भयभीत रहता था । औरंगजेब में दया तो थी नहीं , न्याय भी नहीं था । उसने जसवंतसिंह को और उसके पुत्रों को धोखे से मरवा दिया । उसकी रानी और नवजात अजीतसिंह को स्वामिभक्त दुर्गादास राठौर ने औरंगजेब के पंजे से बचाया नहीं तो उनका वंश ही मिट जाता ।
राजा जसवंतसिंह के पास जो बल विक्रम था वह स्वयं उनके लिए , उनके परिवार के लिए तथा हिन्दू जाति के लिए निरुपयोगी सिद्ध हुआ , उसका लाभ उठाकर औरंगजेब ने अपना स्वार्थ सिद्ध किया । सच्चे लोगों को संगठित होना चाहिए । यह भी देखना चाहिए कि उसके लाभ गलत व्यक्ति तो नहीं उठा रहे हैं । नहीं तो ये अच्छाइयाँ भी राजा जसवंतसिंह के पराक्रम की तरह निरर्थक चली जायेंगी ।
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