एक भाषण में पराड़कर जी ने यह द्रष्टान्त देकर कहा था ----- " सत्य के लिए बड़े से बड़े व्यक्ति का भी विरोध अवश्य करेंगे | " अनाचारी को प्रश्रय देने वाले बड़े लोग भी अक्षम्य है । "
यह द्रष्टान्त था ------ जन्मेजय ने नाग यज्ञ किया था , सारी पृथ्वी को सांप के विष से रहित कर देने के लिए । एक सांप जो जन्मेजय के इस संकल्प का ही मूल कारण था , इन्द्रासन के नीचे छुप बैठा । इंद्र से अनुनय - विनय की गई परन्तु उनने एक न सुनी । इन्द्रासन समेत ही सांप को यज्ञाग्नि में भस्म करने की बात सोची गई ।
जन्मेजय ने इंद्र से उठने के लिए बार - बार कहा परन्तु वे टस से मस नहीं हुए । अत: जन्मेजय ने सुरपति की परवाह छोड़ी और मन्त्र पढ़ा ----- ' स इन्द्राय तक्षकाय स्वाहा ' -----
इसी तरह कोई कितना ही गणमान्य क्यों न हो अनाचारी को प्रश्रय देने के कारण उसका विरोध अवश्य करें ।
स्वतंत्रता के बाद देश और सत्ताधीशों को उनके आदर्शों से हटते देख वे बड़े क्षुब्ध रहने लगे कहते थे ----- पत्रकार बनकर मैंने कुछ नहीं पाया , मेरी आत्मा कराह उठती है ।
यह द्रष्टान्त था ------ जन्मेजय ने नाग यज्ञ किया था , सारी पृथ्वी को सांप के विष से रहित कर देने के लिए । एक सांप जो जन्मेजय के इस संकल्प का ही मूल कारण था , इन्द्रासन के नीचे छुप बैठा । इंद्र से अनुनय - विनय की गई परन्तु उनने एक न सुनी । इन्द्रासन समेत ही सांप को यज्ञाग्नि में भस्म करने की बात सोची गई ।
जन्मेजय ने इंद्र से उठने के लिए बार - बार कहा परन्तु वे टस से मस नहीं हुए । अत: जन्मेजय ने सुरपति की परवाह छोड़ी और मन्त्र पढ़ा ----- ' स इन्द्राय तक्षकाय स्वाहा ' -----
इसी तरह कोई कितना ही गणमान्य क्यों न हो अनाचारी को प्रश्रय देने के कारण उसका विरोध अवश्य करें ।
स्वतंत्रता के बाद देश और सत्ताधीशों को उनके आदर्शों से हटते देख वे बड़े क्षुब्ध रहने लगे कहते थे ----- पत्रकार बनकर मैंने कुछ नहीं पाया , मेरी आत्मा कराह उठती है ।
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