लोकमान्य तिलक कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए लखनऊ आये । लखनऊ काँग्रेस में कार्यक्रम अत्यंत व्यस्त था । अधिवेशन में एक दिन लोकमान्य बहुत तड़के से व्यस्त रहे और दोपहर तक एक क्षण के लिए भी अवकाश न पा सके । बड़ी कठिनाई से उन्हें भोजन के लिए उठाया जा सका । भोजन के समय परोसने वाले स्वयंसेवक ने कहा ---- " महाराज ! आज तो आपको बिना पूजा किये ही भोजन करना पड़ा ।
लोकमान्य गम्भीर हो गये , बोले ----- " अभी तक जो हम कर रहे थे , क्या वह पूजा नहीं थी ?
घन्टी-शंख बजाना और चन्दन घिसना ही पूजा है ? समाज - सेवा से बढ़कर और कौन सी पूजा हो सकती है । "
लोकमान्य गम्भीर हो गये , बोले ----- " अभी तक जो हम कर रहे थे , क्या वह पूजा नहीं थी ?
घन्टी-शंख बजाना और चन्दन घिसना ही पूजा है ? समाज - सेवा से बढ़कर और कौन सी पूजा हो सकती है । "
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