एक बार महाकवि रविन्द्रनाथ टैगोर लन्दन में कहीं जा रहे थे । जेब में छोटा सिक्का न होने से स्टेशन के एक कुली को एक आने के बदले एक शिलिंग ( 12 आना ) दे दिया तो वह कुछ देर बाद उसे लौटाने आया क्योंकि वह अपनी नियत मजदूरी के सिवाय और कुछ लेना बुरा समझता था ।
इसी तरह एक दिन लन्दन की सड़क पर ठण्ड से ठिठुरते व्यक्ति के हाथ पर एक गिन्नी ( सुवर्ण मुद्रा ) रखकर आगे चल दिए । एक मिनट बाद ही वह दौड़ता हुआ इनके पास आया और कहने लगा - --- " महोदय आपने मुझे भूल से गिन्नी दे दी है । " यह कहकर वह उसे वापस करने लगा । जब रवि बाबू ने उसे आश्वासन दिया तब वह उसे लेकर गया ।
इस घटना से यह विदित होता है कि इंग्लैंड जैसे धन को महत्व देने वाले देश के निवासी कितने ईमानदार और सत्य व्यवहार करने वाले हैं । जबकि यहाँ के सफेदपोश बाबू व धनी व्यक्ति भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और भूल से किसी से कुछ अधिक पा जायें तो उसे जेब के हवाले कर देते हैं और झूठ व्यवहार व गलत तरीके से धन कमाने को 'चतुरता ' कहते हैं ।
इसी तरह एक दिन लन्दन की सड़क पर ठण्ड से ठिठुरते व्यक्ति के हाथ पर एक गिन्नी ( सुवर्ण मुद्रा ) रखकर आगे चल दिए । एक मिनट बाद ही वह दौड़ता हुआ इनके पास आया और कहने लगा - --- " महोदय आपने मुझे भूल से गिन्नी दे दी है । " यह कहकर वह उसे वापस करने लगा । जब रवि बाबू ने उसे आश्वासन दिया तब वह उसे लेकर गया ।
इस घटना से यह विदित होता है कि इंग्लैंड जैसे धन को महत्व देने वाले देश के निवासी कितने ईमानदार और सत्य व्यवहार करने वाले हैं । जबकि यहाँ के सफेदपोश बाबू व धनी व्यक्ति भी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और भूल से किसी से कुछ अधिक पा जायें तो उसे जेब के हवाले कर देते हैं और झूठ व्यवहार व गलत तरीके से धन कमाने को 'चतुरता ' कहते हैं ।
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