इस संबंध में टालस्टाय ने बड़ी स्पष्टता और साहस के साथ अपना अनुभव बताया है , उन्होंने लिखा है ---- " मैं ह्रदय से इस बात की खोज में था कि किसी प्रकार नेक तथा अच्छा मनुष्य बनूँ परन्तु इस नेकी की खोज में मैं अकेला था । जब मैंने अपने इष्टमित्रों व परिचितों के सम्मुख अपने नेक बनने की हार्दिक इच्छा प्रकट की , तो लोगों ने मेरी हंसी उड़ाई , इसे सनकीपन कहा किन्तु जब मैंने पाशविक वृत्तियाँ प्रकट कीं तो लोगो ने मेरी प्रशंसा की । मैंने अपने उच्चवंशीय समाज में सांसारिक वासनाओं , विषयभोग , घमण्ड, क्रोध , बदला लेना आदि का ही अधिक सम्मान होते देखा । मैंने युद्धों में नर हत्या की , जुआ खेला , लोगों को धोखा दिया , दुराचारिणी स्त्रियों से संबंध रखा , मिथ्याभाषण , लूटमार , मद्दपान , निर्दयता आदि सब कुछ किया । कदाचित ही कोई ऐसा बुरा कर्म हो जो मुझसे बचा हो । इस पर भी मैं दूसरे लोगों की द्रष्टि में भद्रपुरुष -- सज्जन समझा जाता था । उस समय जो लेख आदि लिखे वे भी नाम व धन के लिए । पद और धन उपार्जन करने के विचार से मैंने अपने उच्च भावों पर पर्दा डाल दिया था , फिर भी जब में रूस की राजधानी सेंटपीटर्सबर्ग गया तो प्रसिद्ध लेखकों ने मेरा बड़ा जोर - शोर से स्वागत किया , मेरी पुस्तकों की प्रशंसा की । "
आगे चलकर टालस्टाय ने बताया कि इस प्रकार की सफलता से मनुष्य के भीतर झूठा अहंकार पैदा हो जाता है और मनुष्य अपने दोषों पर पर्दा डालकर उलटे - सीधे तर्कों द्वारा अपने मार्ग को ही युक्तियुक्त समझने लग जाता है ।
टालस्टाय आध्यात्मिक जीवन की ओर क्यों मुड़े ? टालस्टाय के पास जीवन के सारे सुख , वैभव , यश , अच्छा स्वास्थ्य सब कुछ था लेकिन पचास वर्ष की आयु में जीवन सम्बन्धी अनेक प्रश्नों ने उनके ह्रदय को व्याकुल कर दिया , वे धर्म और ईश्वर की वास्तविकता जानने के लिए व्याकुल हो गये । जिस दिन उन्होंने समझा कि कोई एक सूक्ष्म शक्ति है जिसकी इच्छा के अनुसार संसार का जीवन चल रहा है । सूक्ष्म शक्ति पर विश्वास किया तब से उनके जीवन की कायापलट हो गई । उन्होंने जिस - जिस बात को दूषित और अपने तथा दूसरों के लिए अहितकर समझा उसे तुरंत छोड़ दिया । निरंतर आत्म निरीक्षण और आत्म - सुधार किया । उन्हें जो दैवी प्रकाश प्राप्त हुआ उसका उपयोग उन्होंने मानवता की सेवा के लिए किया ।
आगे चलकर टालस्टाय ने बताया कि इस प्रकार की सफलता से मनुष्य के भीतर झूठा अहंकार पैदा हो जाता है और मनुष्य अपने दोषों पर पर्दा डालकर उलटे - सीधे तर्कों द्वारा अपने मार्ग को ही युक्तियुक्त समझने लग जाता है ।
टालस्टाय आध्यात्मिक जीवन की ओर क्यों मुड़े ? टालस्टाय के पास जीवन के सारे सुख , वैभव , यश , अच्छा स्वास्थ्य सब कुछ था लेकिन पचास वर्ष की आयु में जीवन सम्बन्धी अनेक प्रश्नों ने उनके ह्रदय को व्याकुल कर दिया , वे धर्म और ईश्वर की वास्तविकता जानने के लिए व्याकुल हो गये । जिस दिन उन्होंने समझा कि कोई एक सूक्ष्म शक्ति है जिसकी इच्छा के अनुसार संसार का जीवन चल रहा है । सूक्ष्म शक्ति पर विश्वास किया तब से उनके जीवन की कायापलट हो गई । उन्होंने जिस - जिस बात को दूषित और अपने तथा दूसरों के लिए अहितकर समझा उसे तुरंत छोड़ दिया । निरंतर आत्म निरीक्षण और आत्म - सुधार किया । उन्हें जो दैवी प्रकाश प्राप्त हुआ उसका उपयोग उन्होंने मानवता की सेवा के लिए किया ।
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