कमाल पाशा कोई साधु - संत या त्यागी दानी मनुष्य नहीं था पर उसने अपने अत्याचार पीड़ित भाइयों के अधिकारों की रक्षा की प्रतिज्ञा की । इस कार्य में उसने न तो कभी प्राणों का मोह किया और न ही वह किसी प्रलोभन में फंसकर कर्तव्य - विमुख हुआ । कमाल पाशा का चरित्र सिद्ध करता है कि जो व्यक्ति वास्तव में सेवा भावना रखते हैं , परोपकार के मार्ग पर चलना चाहते हैं वे प्रत्येक परिस्थिति में बहुत कुछ कर सकते हैं ।
टर्की का शासन जब कमाल पाशा ने संभाला तो उसने अपने मंत्रियों से पूछा ---- ' टर्की को राजभाषा बनने में कितना समय लगेगा ? '
बहुत सोच - विचारकर उन्होंने उत्तर दिया ---- ' कम से कम दस वर्ष । '
कमाल पाशा ने मंत्रियों की ओर नजर तरेरी और फैसला घोषित करते हुए कहा ---- ' समझ लीजिये दस वर्ष पूरे हो गये और कल सबेरे से ' तुर्की ' राजभाषा हो गई । '
तुर्की भाषा में से अरबी और फारसी के शब्दों को निकलवा दिया । कुरान का तुर्की में अनुवाद करा के उसी को पढ़ने की आज्ञा दी । मस्जिदों में नमाज भी तुर्की में ही पढ़ी जाने लगी । स्कूल , कॉलेज , दफ्तर , ओद्दोगिक संस्थान में सर्वत्र तुर्की भाषा का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया ।
फिर उसने तुर्की भाषा की लिपि का सुधार करने का निश्चय किया । अभी तक वह अरबी अक्षरों में लिखी जाती थी । मुस्तफा कमाल ने स्वयं तुर्की भाषा को लैटिन लिपि में लिखने की योजना बनायीं और कुछ लोगों को स्वयं तुर्की भाषा को नयी लिपि में लिखने की विधि समझाई । लोगों ने इस परिवर्तन को पसंद किया । मुस्तफा कमाल स्वयं लोगों को नयी लिपि की शिक्षा देता और जो लोग परीक्षा में पास हो जाते उनको इनाम भी दिया जाता । कैदियों के लिए हुक्म दिया गया कि जब तक वे नई लिपि को सीख न लेंगे उन्हें रिहा नहीं किया जायेगा ।
कमाल पाशा ने अनेक सामाजिक सुधार किये ---- भीख माँगना रोका गया , पागल तथा विकृत व्यक्तियों पर हँसना अपराध माना जाने लगा । विवाह के पहले वर - वधु के अच्छे स्वास्थ्य का डॉक्टरी प्रमाण - पत्र पेश करने का नियम बनाया गया जिससे रोगी तथा दूषित शरीर वालों की संख्या घटती जाये । उसने अपनी समस्त शक्ति का उपयोग देश , समाज और राष्ट्र वासियों के उद्धार तथा प्रगति के लिए किया , इसलिए तुर्की ही नहीं वरन संसार के अन्य लोगों ने भी उसे एक महान पुरुष स्वीकार किया ।
टर्की का शासन जब कमाल पाशा ने संभाला तो उसने अपने मंत्रियों से पूछा ---- ' टर्की को राजभाषा बनने में कितना समय लगेगा ? '
बहुत सोच - विचारकर उन्होंने उत्तर दिया ---- ' कम से कम दस वर्ष । '
कमाल पाशा ने मंत्रियों की ओर नजर तरेरी और फैसला घोषित करते हुए कहा ---- ' समझ लीजिये दस वर्ष पूरे हो गये और कल सबेरे से ' तुर्की ' राजभाषा हो गई । '
तुर्की भाषा में से अरबी और फारसी के शब्दों को निकलवा दिया । कुरान का तुर्की में अनुवाद करा के उसी को पढ़ने की आज्ञा दी । मस्जिदों में नमाज भी तुर्की में ही पढ़ी जाने लगी । स्कूल , कॉलेज , दफ्तर , ओद्दोगिक संस्थान में सर्वत्र तुर्की भाषा का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया ।
फिर उसने तुर्की भाषा की लिपि का सुधार करने का निश्चय किया । अभी तक वह अरबी अक्षरों में लिखी जाती थी । मुस्तफा कमाल ने स्वयं तुर्की भाषा को लैटिन लिपि में लिखने की योजना बनायीं और कुछ लोगों को स्वयं तुर्की भाषा को नयी लिपि में लिखने की विधि समझाई । लोगों ने इस परिवर्तन को पसंद किया । मुस्तफा कमाल स्वयं लोगों को नयी लिपि की शिक्षा देता और जो लोग परीक्षा में पास हो जाते उनको इनाम भी दिया जाता । कैदियों के लिए हुक्म दिया गया कि जब तक वे नई लिपि को सीख न लेंगे उन्हें रिहा नहीं किया जायेगा ।
कमाल पाशा ने अनेक सामाजिक सुधार किये ---- भीख माँगना रोका गया , पागल तथा विकृत व्यक्तियों पर हँसना अपराध माना जाने लगा । विवाह के पहले वर - वधु के अच्छे स्वास्थ्य का डॉक्टरी प्रमाण - पत्र पेश करने का नियम बनाया गया जिससे रोगी तथा दूषित शरीर वालों की संख्या घटती जाये । उसने अपनी समस्त शक्ति का उपयोग देश , समाज और राष्ट्र वासियों के उद्धार तथा प्रगति के लिए किया , इसलिए तुर्की ही नहीं वरन संसार के अन्य लोगों ने भी उसे एक महान पुरुष स्वीकार किया ।
No comments:
Post a Comment