' इतिहास इस बात का साक्षी है कि संसार में अनेक युद्ध और क्रांतियाँ साहित्यिक रचनाओं में सन्निहित उच्चतम प्रेरणाओं द्वारा ही जीते गये हैं । ' बंकिम बाबू की साहित्य - सेवा का लक्ष्य राष्ट्र को जाग्रत करके देश भक्ति के मार्ग पर अग्रसर करना था ।
उन्होंने अनेक उपन्यास लिखे पर जिस उपन्यास के कारण उनका नाम देशभक्तों में अमर हो गया है , वह है ----- ' आनन्दमठ ' । इसमें देशभक्ति का एक ऐसा आदर्श उपस्थित किया गया है , जिसने 1905 से आरम्भ होने वाले राजनीतिक आन्दोलन में हजारों व्यक्तियों को पक्का देशभक्त और स्वाधीनता - संग्राम का निर्भीक सैनिक बना दिया । इसी उपन्यास में सबसे पहले ' वंदेमातरम् ' शब्द और उसका गीत लिखा गया है ।
' आनन्दमठ ' यद्दपि एक मनोरंजक शैली पर लिखा उपन्यास ही है पर इसमें आदि से अंत तक देश - प्रेम की भावना भरी हुई है और जगह - जगह वार्तालाप के द्वारा समाज - सेवा की प्रेरणा दी गई
है । इस उपन्यास में मठ का एक संन्यासी ---- भवानंद , महेंद्रसिंह नाम के बड़े जमीदार को देश - सेवा के लिए प्रेरणा देते हुए कहता है -------- " महेंद्रसिंह, मेरी धारणा थी कि तुममे कुछ वास्तविक मनुष्यत्व होगा , पर अब देखता हूँ कि सब जैसे हैं , वैसे ही तुम भी हो । देखो , साँप जमीन पर छाती के बल रेंगता है , पर उस पर पैर पड़ जाने से वह भी फन उठाकर काटने को दौड़ता है । क्या तुमको किसी तरह धर्म और देश की दुर्दशा दिखाई नहीं पड़ती ? तनिक मगध , मिथिला , कांची , काशी , कश्मीर ---- किसी भी स्थान को देखो , सर्वत्र दुर्दशा ही जान पड़ेगी । किस अन्य देश के आदमी खाने के अभाव में घास , पत्तियां आदि खाते हैं ? किस देश के आदमी सियार , कुत्ता , गाय, घोड़ा तक खाते हैं ? लड़की - बहू की इज्जत का ठिकाना नहीं ? धर्म गया , जाति गई , मान गया , अब तो प्राण भी जा रहे हैं । "
एक समय था जब अंग्रेज अधिकारी इस पुस्तक से ऐसे ही डरते थे जैसे बम के गोले से । उस समय देश के युवा , वृद्ध इस पुस्तक को छुपकर , गुप्त रूप से पढ़ते थे । बंकिम बाबू ने स्वयं उसी समय यह भविष्यवाणी कर दी थी कि ------- " एक दिन ' वंदेमातरम् ' की ध्वनि से सारा भारत गूँज उठेगा । "
उन्होंने अनेक उपन्यास लिखे पर जिस उपन्यास के कारण उनका नाम देशभक्तों में अमर हो गया है , वह है ----- ' आनन्दमठ ' । इसमें देशभक्ति का एक ऐसा आदर्श उपस्थित किया गया है , जिसने 1905 से आरम्भ होने वाले राजनीतिक आन्दोलन में हजारों व्यक्तियों को पक्का देशभक्त और स्वाधीनता - संग्राम का निर्भीक सैनिक बना दिया । इसी उपन्यास में सबसे पहले ' वंदेमातरम् ' शब्द और उसका गीत लिखा गया है ।
' आनन्दमठ ' यद्दपि एक मनोरंजक शैली पर लिखा उपन्यास ही है पर इसमें आदि से अंत तक देश - प्रेम की भावना भरी हुई है और जगह - जगह वार्तालाप के द्वारा समाज - सेवा की प्रेरणा दी गई
है । इस उपन्यास में मठ का एक संन्यासी ---- भवानंद , महेंद्रसिंह नाम के बड़े जमीदार को देश - सेवा के लिए प्रेरणा देते हुए कहता है -------- " महेंद्रसिंह, मेरी धारणा थी कि तुममे कुछ वास्तविक मनुष्यत्व होगा , पर अब देखता हूँ कि सब जैसे हैं , वैसे ही तुम भी हो । देखो , साँप जमीन पर छाती के बल रेंगता है , पर उस पर पैर पड़ जाने से वह भी फन उठाकर काटने को दौड़ता है । क्या तुमको किसी तरह धर्म और देश की दुर्दशा दिखाई नहीं पड़ती ? तनिक मगध , मिथिला , कांची , काशी , कश्मीर ---- किसी भी स्थान को देखो , सर्वत्र दुर्दशा ही जान पड़ेगी । किस अन्य देश के आदमी खाने के अभाव में घास , पत्तियां आदि खाते हैं ? किस देश के आदमी सियार , कुत्ता , गाय, घोड़ा तक खाते हैं ? लड़की - बहू की इज्जत का ठिकाना नहीं ? धर्म गया , जाति गई , मान गया , अब तो प्राण भी जा रहे हैं । "
एक समय था जब अंग्रेज अधिकारी इस पुस्तक से ऐसे ही डरते थे जैसे बम के गोले से । उस समय देश के युवा , वृद्ध इस पुस्तक को छुपकर , गुप्त रूप से पढ़ते थे । बंकिम बाबू ने स्वयं उसी समय यह भविष्यवाणी कर दी थी कि ------- " एक दिन ' वंदेमातरम् ' की ध्वनि से सारा भारत गूँज उठेगा । "
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